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सुप्रीम कोर्ट में फंस गया था चीतों को लाने का पेंच

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Published : Sep 20, 2022, 7:48 PM IST

MP Kuno cheeta
चीतों को लाने का पेंच

अफ्रीका से लाए गए चीते भारत के मध्य प्रदेश स्थित कूनो नेशनल पार्क में (MP Kuno cheeta) छोड़ दिए गए हैं. हालांकि चीतों का इस तरह भारत लाया जाना आसान नहीं रहा. चीतों को लाने की प्रक्रिया को कानूनी कसौटी से भी गुजरना पड़ा. पढ़िए पूरी खबर.

नई दिल्ली :प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने नामीबिया से लाए गए आठ चीतों को शनिवार को मध्य प्रदेश के कूनो राष्ट्रीय उद्यान (Kuno National Park) में छोड़ा. लेकिन आपको शायद ही पता हो कि इस प्रोजेक्ट पर पहले सुप्रीम कोर्ट ने रोक लगा दी थी.

2012 में सुप्रीम कोर्ट के न्यायमूर्ति केएस राधाकृष्णन और न्यायमूर्ति सीके प्रसाद की खंडपीठ ने अफ्रीका से भारत में चीतों को लाने के सरकार के प्रस्ताव को ठुकरा दिया था, क्योंकि वन्यजीव विशेषज्ञों के मुताबिक ऐसा करना उचित नहीं था. उस प्रस्ताव में शेरों को भी लाया जाना था. इस पर एक याचिका आने के बाद शीर्ष अदालत ने प्रस्ताव को ठुकरा दिया था.

भारत में चीते 1950 के दशक में विलुप्त हो गए थे. पर्यावरण मंत्रालय ने 2010 में बाहर से चीते लाने का प्रस्ताव दिया था. सरकार अफ्रीकी चीतों को लाकर उनकी आबादी को पुनर्जीवित करने की कोशिश कर रही थी. हालांकि, एससी ने योजना पर रोक लगा दी थी. बताया जाता है कि सरकार ने तब राष्ट्रीय वन्यजीव बोर्ड के साथ चर्चा नहीं की थी. विशेषज्ञों द्वारा किए गए अध्ययनों से पता चला था कि दो अलग-अलग महाद्वीप आनुवंशिक रूप से भिन्न हैं, ऐसे में अफ्रीकी चीतों को यहां जिंदा रहने के लिए संघर्ष करना पड़ सकता है.

बाद में 2017 में राष्ट्रीय बाघ संरक्षण प्राधिकरण (NTCA) ने अफ्रीकी चीतों को लाने पर प्रतिबंध लगाने के फैसले की समीक्षा के लिए शीर्ष अदालत का रुख किया था. एनटीसीए ने अदालत के समक्ष प्रस्ताव दिया कि चीतों को 'प्रायोगिक आधार पर सावधानीपूर्वक चुने हुए क्षेत्र में रखा जाएगा और उनका पालन-पोषण किया जाएगा. इस दौरान यह देखा जाएगा कि क्या वह भारतीय परिस्थितियों के अनुकूल रह सकते हैं. यदि स्थान चीतों के अनुकूल नहीं होता है, तो उन्हें दूसरे जंगल में स्थानांतरित कर दिया जाएगा.

अदालत ने तब एक समिति का गठन किया. इस समिति को जिम्मेदारी दी गई कि चीतों के लिए सर्वोत्तम स्थान का सर्वेक्षण कर चार महीने में रिपोर्ट दे कि उनके लायक अनुकूल आबोहवा है या नहीं. इसकी व्यवहारिकता जांचे कि वह सर्वाइव कर सकेंगे या नहीं. हालांकि 2020 के बाद से कोई सुनवाई नहीं हुई. 2020 में तत्कालीन सीजेआई एसए बोबडे, जस्टिस बीआर गवई और जस्टिस सूर्यकांत ने मामले की सुनवाई की थी.

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