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वरदान साबित होगा पितृपक्ष में समस्त जीव जंतुओं को भोजन देना

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Published : Sep 28, 2021, 5:29 AM IST

पितृ पक्ष के दौरान हम कई तरह की बंदिशें मानते हैं. खाने-पीने से लेकर रहन-सहन तक, लेकिन पंडित सचिन्द्रनाथ बताते हैं कि पितृपक्ष के निहितार्थ को समझ लेंगे तो ये श्राद्ध के 16 दिन भी हमें उत्सव की तरह लगेंगे और ये फलदायी भी होगा. पढ़िये कैसे खास होता है पितृ पक्ष, बता रहे हैं पंडित सचिन्द्रनाथ

pitru paksh
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हैदराबाद: इन दिनों पितृपक्ष चल रहा है, श्राद्ध या पितृपक्ष के 16 दिनों में पितरों-पूर्वजों की आत्मा की तृप्ति के लिए तर्पण करते किया जाता है. साथ ही ब्राह्मणों को भोजन कराकर सामर्थ्य के अनुसार उन्हें दान दक्षिणा देते हैं. पितर की तिथि पर गाय, कुत्ता और कौआ को भी भोजन देते हैं.

पंडित सचिन्द्रनाथ बताते हैं कि पितृपक्ष का एक चमत्कारिक और उत्सव सरीखा महत्व व उसकी विधि और प्रभाव को कम ही लोग जानते हैं. वास्तव में पितृपक्ष समस्त पृथ्वी, समस्त आकाश और समस्त जलराशि में रहने वाले जीव जंतुओं की क्षुधा तृप्ति का ऐसा अवसर है जिसमें आपका योगदान मिल गया तो उसका प्रभाव आपके लिए वरदान साबित होगा.

'उत्सव जैसा है पितृपक्ष'

पितृपक्ष एक ऐसी काल अवधि है जिसे हम कई कार्यों के लिए वर्जित अवधि मान लेते हैं. जबकि इसके निहितार्थ को हम समझ लेंगे तो यह हमें नवरात्र और दिवाली जैसा उत्सव लगने लगेगा. इसे समझना भी बेहद आसान है. पितृपक्ष में हमारा यह प्रयास होना चाहिए कि जल, थल और नभ का कोई भी जीव, जंतु चाहे व चींटी जैसा अत्यंत सूक्ष्म ही क्यों न हो, भूखा न रहने पाए. यदि इस पक्ष के प्रतिदिन हम धरती के जीवों, आकाश के पक्षियों और जलीय जीवों जैसे मछली, कछुआ आदि के लिए भोजन की व्यवस्था करते हैं तो श्रद्धा से किया गया यह सेवाकार्य हमारे लिए दस दिशाओं से वरदान का मार्ग प्रशस्त कर देता है.

'जीवों को भोजन देना मनोकामना पूर्ण करने वाला'

पंडित सचिन्द्रनाथ कहते हैं कि जीव जंतु आपको शब्दों में आशीर्वाद नहीं दे सकते हैं लेकिन उनकी तृप्ति से उनके रोम रोम से आपके लिए निकला आशीर्वाद आपकी समस्त मनोकामनाओं को पूर्ण करने वाला होता है. ये जानना भी आवश्यक है कि पितृपक्ष केवल अपने पुरखों की याद में जीवों की सेवा करने के लिए नहीं होता. हमारा कोई भी साथी, प्रिय जिसने कभी भी हमारा साथ दिया हो, उसके सहायता ऋण से मुक्त होने के लिए भी हमे पितृपक्ष में समस्त जीव जंतुओं की भोजन सेवा करनी चाहिए. आखिर हमारी वर्तमान उन्नति में उन दोस्तों, प्रियजनों का भी तो कहीं न कहीं योगदान होगा जो अब इस दुनिया में नहीं हैं. व्यक्ति दुनिया से भले ही चला जाता है लेकिन सूक्ष्म शरीर के माध्यम से वह हमारे हर कृत्य पर नजर रखता है और संपर्क में बना रहता है.

जीव जंतुओं की सेवा का यह क्रम वैसे तो पितृपक्ष में करना चाहिए, फिर भी यदि हम ऐसा न कर सकें तो इस पक्ष की अमावस्या तिथि को जीव जंतुओं को भोजन अवश्य करवाएं. पितरों को तर्पण देने की संस्कृति वास्तव में जीवों को प्रसन्न कर उनके सूक्ष्म शरीर को तृप्त करने के लिए ही है. ऐसा करके देखिए, नवरात्र के पूर्व इसे भी उत्सव रूप में लीजिए फिर देखिए अपने जीवन में इस पुण्य कार्य का फलदायी परिवर्तन.

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