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बिहार में दलितों और महादलितों के नाम पर होती है सिर्फ राजनीति, उनकी स्थिति बहुत खराब: प्रशांत किशोर

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Published : Nov 4, 2022, 5:28 PM IST

Prashant Kishor

प्रशांत किशोर ने दलित बस्तियों के हालात पर (condition of Dalits and Mahadalits in Bihar) चिंता व्यक्त की. उन्होंने कहा कि आज भी लोग जमीन पर अपनी झोपड़ी या मिट्टी के घर में सोते हैं. अगर बरसात में या किसी वजह से घर में पानी घुस गया तो 3-4 महीने चाचर लगा कर ही सोना पड़ता है. यह तब है जब दलित-महादलित के नाम पर यहां 12-15 साल से राजनीति हो रही है.

पश्चिम चंपारणःजन सुराज पदयात्रा के 34वें दिन शुक्रवार काे प्रशांत किशोर ने योगापट्टी प्रखंड के नरसिंह नारायण सिंह स्टेडियम स्थित पदयात्रा शिविर में मीडिया से बात की. जहां उन्होंने जिले की समस्याओं का जिक्र किया, साथ हीं दलित बस्तियों के हालात पर (condition of Dalits and Mahadalits in Bihar) चिंता व्यक्त की. प्रशांत किशोर ने कहा कि दलित-महादलित टोलों में स्थिति इतनी विकराल है कि ज्यादातर घरों में चौकी-खटिया भी नहीं है. आज भी लोग जमीन पर अपनी झोपड़ी या मिट्टी के घर में सोते हैं. अगर बरसात में या किसी वजह से घर में पानी घुस गया तो 3-4 महीने चाचर लगा कर ही सोना पड़ता है. और यह तब है जब दलित-महादलित के नाम पर यहां 12-15 साल से राजनीति हो रही है.

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बेतिया में अधिवेशन होगाः प्रशांत किशोर ने बताया कि जन सुराज पदयात्रा के माध्यम से वो हर रोज़ लगभग 20 से 25 किमी की दूरी तय कर रहे हैं. 3-4 दिन पर वो एक दिन रुक कर पदयात्रा के दौरान जिन गांवों और पंचायतों से वो गुजर रहे हैं, वहां की समस्याओं का संकलन करते हैं. उन्होंने बताया कि 12 नवंबर को जन सुराज अभियान के पश्चिम चंपारण जिले का अधिवेशन बेतिया (Jan Suraj Abhiyan meeting in Bettiah) में होगा. जहां जिले के जन सुराज अभियान से जुड़े सदस्य उपस्थित रहेंगे और लोकतांत्रिक तरीके से वोटिंग के माध्यम से तय करेंगे की दल बनना चाहिए या नहीं. साथ ही पश्चिम चंपारण जिले के सभी बड़ी समस्याओं पर भी मंथन कर उसकी प्राथमिकताएं और समाधान पर निर्णय होगा. पंचायत स्तर पर समस्याओं और समाधान का ब्लूप्रिंट भी तैयार किया जाएगा.

बिहार में पलायन की समस्या गंभीरः जन सुराज पदयात्रा का अनुभव साझा करते हुए प्रशांत किशोर ने बताया कि बिहार में पलायन की समस्या गंभीर है. ये मुझे पहले से पता था, लेकिन ये इतनी भयावह है, इसका अंदाजा नहीं था. अब जब मैं गांवों में जा रहा हूं तो मुझे केवल बच्चे और महिलाएं दिखते हैं. सारे काम करने वाले लोग दूसरे राज्यों मजबूरी में रह रहे हैं. इसके अलावा जो लोग गांव में बचे हुए हैं उनमें गरीबी इतनी है कि ज्यादातर बच्चों के तन पर कपड़ा नहीं है. मैं देखता हूं कि ज्यादातर बच्चे और महिलाएं कुपोषण की शिकार हैं. गरीबी और असामनता इतनी है कि बड़ी संख्या में लोगों के पास खेती करने के लिए जमीन नहीं है. कम लोगों के पास बहुत अधिक जमीन और बड़ी संख्या में लोगों के पास कोई जमीन नहीं है.

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"गरीबी और बदहाली की वजह से लोग दयनीय स्थिति में रहने को मजबूर हैं. दलित-महादलित टोलों में स्थिति इतनी विकराल है की ज्यादातर घरों में चौकी-खटिया भी नहीं है। आज भी लोग जमीन पर अपनी झोपड़ी या मिट्टी के घर में सोते हैं और अगर बरसात में या किसी वजह से पानी घर में घुस गया तो 3-4 महीने चाचर लगा कर ही सोना पड़ता है. उनके जीवन की पूरी कमाई उनके बच्चे, लेवा-लुब्री, बक्शा-अटैची या जो भी उनके पास सामान है, उनकी पूरी दुनिया उसी चाचर पर सिमट जाती है. और ये तब है जब दलित-महादलित के नाम पर यहां 12-15 साल से राजनीति हो रही है"-प्रशांत किशोर, चुनावी रणनीतिकार

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