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पूर्णिया: लॉकडाउन में पूर्व CM का परिवार दाने-दाने को मोहताज, भूख से बिलख रहे बच्चे

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Published : Jun 2, 2020, 3:55 PM IST

Updated : Jun 3, 2020, 11:54 AM IST

बिहार के पूर्व सीएम भोला पासवान शास्त्री की अपनी कोई औलाद नहीं थी. इसलिए वे भतीजे विरंची पासवान को ही अपना बेटा मानते थे. इनके दिवगंत होने पर भतीजे विरंची पासवान ने उनका दाह संस्कार किया और मुखाग्नि दी.

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पूर्णियाःलॉकडाउन ने रोजाना खाने-कमाने वाले परिवारों के सामने रोजी रोटी की गंभीर समस्या पैदा कर दी. आपको जानकर ये हैरानी होगी इस लॉकडाउन में एक पूर्व सीएम का परिवार भी दाने-दाने को मोहताज हो गया है. 60 के दशक में बिहार के तीन बार मुख्यमंत्री रहे भोला पासवान शास्त्री के परिवार की जिंदगी किसी तरह मुफलिसी में कट रही थी. लेकिन इस कोरोना काल में घर के कमाने वालों की कमाई ऐसी छिनी कि अब इस घर के बच्चे भूख से रोते बिलखते नजर आ रहे हैं.

मदद की राह ताकते चेहरे पर आ गईं झुर्रियां
जिले के बैरगाछी में रहने वाले इस परिवार की माली हालत इतनी बुरी हो चली है कि अब इस परिवार के सामने भुखमरी की नौबत आ गई है. हैरत की बात है कि भोला पासवान शास्त्री को दिवगंत हुए 3 दशक से ज्यादा गुजर गए. गुजरते वक़्त के साथ सरकारी मदद की टकटकी लगाए उनके परिजनों के चेहरे पर झुर्रियां भी आ गईं. मगर भोला पासवान के परिवार की तंगहाली दूर ना हो सकी.

खाना बनाती घर की बुजुर्ग महिला

लॉकडाउन ने किया और भी बदतर हालत
लॉकडाउन में रोजाना खाने-कमाने वाले इस परिवार के सामने दो वक्त की रोटी का जुगाड़ करना भी मुश्किल हो गया. जिसके बाद विरंची के तीन बेटे समेत परिवार की बहू और बच्चों के सामने भुखमरी की नौबत है. मजदूरी कर खाने कमाने वाले विरंची के बेटों को शहर जाकर वापस लौटना पड़ रहा है. चौका-बर्तन का काम न मिलने से घर की बहुएं परेशान हैं. 25 सदस्यों वाले इस परिवार को आज तक कोई बड़ी मदद नहीं मिली.

ईटीवी भारत की रिपोर्ट

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चावल का माड़ तक नहीं हो रहा नसीब
विरंची के बेटे असंत पासवान कहते हैं कि लॉकडाउन की शुरुआत में एक महीने किसी तरह बच्चों और मां-बाबा की दूध-दवाई के लिए ग्रुप से पैसे उठाए. मजदूरी की छूट मिलने के बाद वो काम की तलाश में शहर तो गए मगर घण्टों इंतेजार के बाद भी उन्हें खाली हाथ लौटना पड़ रहा है. कोरोना के डर से पहले ही घर की बहुओं के चौका-बर्तन का काम ठप पड़ा है. लिहाजा नौबत इतनी खराब हो चली है कि दूध तो दूर घर वालों के सामने चावल के माड़ तक की किल्लत आन पड़ी है.

25 सदस्य पर सिर्फ एक राशन कार्ड
इस 25 सदस्य वाले परिवार का एक ही राशन कॉर्ड है. जिस पर मिलने वाला अनाज दो सप्ताह भी नहीं चल पाया. घर के रखे सारे पैसे भी खर्च हो गए. जिसे विरंची के तीनों बेटों और बहुओं ने टूटे घर की मरम्मती के लिए रखे थे. घर की महिला सदस्य कहती हैं कि सभी बेटों का राशन कार्ड अलग होना चाहिए था. मगर अलग-अलग राशन कार्ड को लेकर मुखिया से लेकर वार्ड सदस्य तक अपील कर चुके हैं. मगर अब तक हमारी कोई सुनने को नहीं आया.

टूटे फूटे घर में सीएम का परिवार

भतीजे विरंची पासवान को ही मानते थे बेटा
दरअसल भोला पासवान शास्त्री की अपनी कोई संतान नहीं थी. इसलिए वे भतीजे विरंची पासवान को ही अपना बेटा मानते थे. इनके दिवगंत होने पर भतीजे विरंची पासवान ने उनका दाह संस्कार किया और मुखाग्नि दी. 60 के दशक में जब देश जात-पात के दलदल में फंसा था. जिले के नगर प्रखंड स्थित बैरगाछी ने बिहार को पहला दलित मुख्यमंत्री दिया. गणेशपुर पंचायत की गलियों में ही भोला पासवान शास्त्री का बचपन बीता. मुख्यमंत्री रहते हुए भी उनके पास अपनों को देने के लिए मामूली सी चटाई, खूब सारे आदर-सत्कार और उसूलों भरी बातों के अलावा कुछ नहीं था. इसी ईमानदारी का नतीजा रहा कि एक दो नहीं बल्कि 3 बार बिहार ने इन्हें सीएम बनाकर सर आखों पर बिठाया.

पूर्व सीएम के भतीजे विरंची पासवान

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जानें कैसे थे 3 बार मुख्यमंत्री रहे भोला पासवान
अक्सर लोग जीतन राम मांझी को बिहार का पहला दलित मुख्यमंत्री मानते हैं, बहुत कम लोग ही यह जानते हैं कि भोला पासवान शास्त्री बिहार के पहले दलित मुख्यमंत्री थे. 1968 में वे पहली बार बिहार के मुख्यमंत्री बनाए गए. इसके बाद वो 1969 में दोबारा मुख्यमंत्री बने. तीसरी बार 1971 में फिर से सीएम बनने का अवसर मिला. इस तरह 3 बार बिहार को एक ईमानदार मुख्यमंत्री का साथ मिला. जनता के प्रति उनके समर्पण और सक्रियता का ही असर रहा कि सियासी सफर तय करते हुए वे केंद्रीय मंत्री ,राज्य सभा में नेता प्रतिपक्ष और 4 बार विधानसभा में नेता प्रतिपक्ष चुने गए.

पूर्व सीएम का गांव

कर्मठता और ईमानदारी की थे मिसाल
इन्हें सियासी जगत में इनकी सादगी, कर्मठता और ईमानदारी के लिए जाना जाता है. दलित समाज से आने वाले वे एक ऐसा व्यक्तित्व थे, जो हमेशा उसूलों के पक्के और बेदाग रहे. इनकी ईमानदारी का अंदाजा इसी से लगाया जा सकता है, कि जब वे कैंसर से पीड़ित हुए तो इलाज तक के लिए उनके पास पैसे नहीं थे. मृत्यु के बाद जब श्राद्धकर्म की जरूरत पड़ी तो चंदा इकट्ठा करना पड़ा.

Last Updated :Jun 3, 2020, 11:54 AM IST

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