पटना:बिहार में जातीय गणना पर हाईकोर्ट ने रोक (High Court stay on caste census in Bihar) लगा दिया है. कोर्ट के फैसले पर राजनीतिक दलों के बीच बयानबाजी भी हो रही है. सरकार के स्तर पर भी मुख्यमंत्री नीतीश कुमार मंथन कर रहे हैं. यह कोर्ट की ओर से अंतरिम रोक है. 3 जुलाई को इस मामले पर फिर से सुनवाई होगी और उसके बाद क्या होगा, यह देखने वाली बात होगी. बिहार सरकार ने जनवरी में जातीय गणना शुरू कराई है. पहले चरण में मकानों की गिनती हुई. उसे यूनिक नंबर दिया गया है और अब दूसरे चरण में 15 अप्रैल से जातियों की गणना हो रही है.
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215 जातियों की हो रही थी गणनाःजातीय गणना के दूसरे चरण में कुल 215 जातियों की गणना की जा रही है और सभी परिवार से 17 तरह की जानकारियां ली जा रही है. अभी तक जो जानकारी मिली है, दूसरे चरण में लगभग बिहार की आधी आबादी की गिनती हो गई है. ऐसे तो मुख्यमंत्री नीतीश कुमार लगातार कहते रहे हैं कि जाति आधारित गणना करने के पीछे एकमात्र उद्देश्य है. सभी जातियों का सही आंकड़ा प्राप्त करना और उनकी आर्थिक और सामाजिक स्थिति के बारे में जानकारी प्राप्त करना, फिर उस आधार पर हम लोग उनके लिए योजना बनाएंगे. कमोबेश उपमुख्यमंत्री तेजस्वी यादव भी यही कहते रहे हैं
नीतीश कुमार ने की पिछड़ा आरक्षण बढ़ाने की बातः फिर भी जिस प्रकार से आरजेडी नेताओं की बयानबाजी होती रही है और जदयू से लेकर महागठबंधन के घटक दलों और विपक्ष द्वारा कार्यक्रम आयोजित किए जाते रहे हैं. इसको लेकर राजनीतिक विशेषज्ञ कहते हैं यह सब कुछ अति पिछड़ा वोट बैंक की राजनीति है. मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने जब सवर्ण आरक्षण पर सुप्रीम कोर्ट की तरफ से मुहर लगी थी. उसी समय बयान दिया था कि अति पिछड़ा का आरक्षण बढ़ाना चाहिए. बिहार में पिछड़ा, अति पिछड़ा की आबादी सबसे अधिक है और यह 52 फीसदी के आसपास माना जाता है.
पिछड़ा वोट बैंक की हो रही राजनीतिःराजनीतिक विशेषज्ञ रवि उपाध्याय का कहना है कि जाति आधारित गणना कराने के पीछे मुख्य मकसद अति पिछड़ा वोट बैंक को साधने की कोशिश है. क्योंकि बिहार में पिछड़ा और अति पिछड़ा की आबादी 52 फीसदी के आसपास माना जाता है अति पिछड़ा में 114 जातियां शामिल है. नीतीश कुमार अति पिछड़ा वोट बैंक पर अपनी दावेदारी करते रहे हैं. इसलिए जातीय गणना होने के बाद यदि अति पिछड़ों की आबादी सही ढंग से सामने आ जाती तो उसके बाद आबादी के अनुरूप हिस्सेदारी की मांग शुरू हो जाएगी और लोकसभा चुनाव के साथ विधानसभा चुनाव में यह बड़ा मुद्दा बन सकता है. लेकिन जाति आधारित गणना का एक दूसरा पक्ष भी है यदि सरकार की मंशा सही रही जैसा कह रही है तो उन वर्गों के लिए सरकार विशेष योजना तैयार कर सकती है जो काफी पिछड़े हैं.
"जाति आधारित गणना कराने के पीछे मुख्य मकसद अति पिछड़ा वोट बैंक को साधने की कोशिश है. क्योंकि बिहार में पिछड़ा और अति पिछड़ा की आबादी 52 फीसदी के आसपास माना जाता है अति पिछड़ा में 114 जातियां शामिल है. नीतीश कुमार अति पिछड़ा वोट बैंक पर अपनी दावेदारी करते रहे हैं. इसलिए जातीय गणना होने के बाद यदि अति पिछड़ों की आबादी सही ढंग से सामने आ जाती तो उसके बाद आबादी के अनुरूप हिस्सेदारी की मांग शुरू हो जाएगी और लोकसभा चुनाव के साथ विधानसभा चुनाव में यह बड़ा मुद्दा बन सकता है"- रवि उपाध्याय, राजनीतिक विशेषज्ञ
नीतीश कुमार को लगा बड़ा झटका: कुल मिलाकर देखे हैं तो नीतीश कुमार के लिए हाई कोर्ट का फैसला फिलहाल बड़ा झटका है लेकिन नीतीश कुमार दूरदर्शी नेता माने जाते हैं और जानकारी यह भी कहते हैं कि नीतीश कुमार हाईकोर्ट में जब मामला गया था तो उसी समय से तैयारी करने में लग गए थे. लगातार बयान भी दे रहे थे. यह भी बयान दे रहे थे कि सभी राज्यों की दिलचस्पी है इसलिए केंद्र अगला जनगणना जाति आधारित ही करवाए. ऐसे में यह तय है लोकसभा चुनाव से पहले पूरी कोशिश उनकी होगी कि जाति आधारित गणना बिहार में पूरा हो जाए जिससे इसे एक मुद्दा बनाया जा सके.