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अयोध्या में राम मंदिर निर्माण के लिए 18 सालों से नंगे पैर हैं बिहार के देवदास

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Published : Nov 12, 2019, 12:36 PM IST

2001 में इंटर की परीक्षा पास करने के बाद किशनगंज के समाजसेवी देवदास उर्फ देबुदा ने शपथ ली थी कि जब तक राम मंदिर निर्माण का मार्ग प्रशस्त नहीं हो जाता है, वे चप्पल नहीं पहनेंगे.

किशनगंजः जिले में एक व्यक्ति 18 सालों से नंगे पैर रहकर जीवन गुजार रहे हैं. उन्होंने अयोध्या में राम मंदिर निर्माण होने तक चप्पल नहीं पहने का संकल्प लिया था. सुप्रीम कोर्ट के फैसले के बाद राम मंदिर निर्माण का रास्ता तो साफ हो गया है. लेकिन मंदिर निर्माण में अभी भी कुछ साल लगेगा, तब तक किशनगंज के ये 38 वर्षीय देवदास उर्फ देबुदा नंगै पैर ही जीवन व्यतीत करेंगे.

समाजसेवी देवदास उर्फ देबुदा

ब्रह्मचारी का जीवन व्यतीत कर रहे हैं देवदास
सुप्रीम कोर्ट ने फैसला तो अयोध्या मामले में दिया है लेकिन इसका असर बिहार की सीमांचल के किशनगंज के एक व्यक्ति के जीवन पर पड़ेगा. अब 18 साल बाद जल्द ही वह चप्पल-जूता पहन सकेंगे. सालों से नंगे पैर घूम रहे देबुदा का कहना है कि जिस दिन भव्य मंदिर का निर्माण पूरा हो जायेगा और उद्घाटन होकर मंदिर का दरवाजा सबके लिए खुल जायेगा, उस दिन से हम जुता चप्पल पहना शूरू करेंगे. समाज सेवा को अपना जीवन का मूल मंत्र बनाने वाले देवदास उर्फ देबुदा ब्रह्मचारी का जीवन व्यतीत कर रहे हैं.

नंगे पैर देवदास

राम मंदिर निर्माण के लिए ली थी शपथ
2001 में इंटर की परीक्षा पास करने के बाद देबुदा ने शपथ ली थी कि जब तक राम मंदिर निर्माण का मार्ग प्रशस्त नहीं हो जाता है, वे चप्पल नहीं पहनेंगे. देबुदा को समाज सेवा का जुनून ऐसा है कि वे रक्तदान के प्रति लोगों को जागरूक करने के साथ-साथ स्वयं भी रक्तदान करते हैं. समाज में जिस परिवार से उन्हें शादी विवाह और जन्मदिन के अवसर पर आमंत्रण मिलता है, उस परिवार के सदस्यों से कम से कम पांच पौधारोपण आवश्य करवाते हैं.

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बच्चे से लेकर बुजुर्ग तक जानते हैं देबुदा को
इतना ही नहीं देबूदा अब तक 1800 से ज्यादा लोगों के दाह-संस्कार में शामिल हो कर खुद काम करते हैं. शहर हो या गांव देबुदा को मौत की खबर मिलते ही वह खुद उनके घर पहुंच जाते हैं और अंतिम संस्कार में लग जाते हैं. सिर्फ इतना ही नहीं जिले में किसी अज्ञात शव मिलने पर वे उनके दाह संस्कार कर रीति रिवाज के साथ उनका अंतिम क्रिया भी खुद करवाते हैं. किशनगंज जिला मुख्यालय से लेकर सातों प्रखंड के एक-एक गांव में बच्चे से लेकर बुजुर्ग तक देवदास उर्फ देबू को देबुदा के नाम से जानते हैं.

संवाददाता से बात करते देवदास

सैकड़ों युवाओं को कर चुके हैं नशामुक्त
देबुदा युवाओं के बीच नशामुक्त की मुहीम भी चलाते हैं. चाहे कोइ भी युवा नशा करते नजर आ जाए देबुदा उनका नशा छुड़ाकर ही दम लेते हैं. ये आज तक सैकड़ों युवाओं को नशामुक्त करने में सफल रहे हैं. शहर के हर मजहब के लोग देबुदा को पंसद करते हैं. लोगों के दुख की घड़ी में सबसे पहले पहुंचने वाले व्यक्ति देबुदा होते हैं. यही कारण है कि हर लोग देबुदा को चाहते हैं. देबुदा की शहर के रोलबाग चौक पर एक किराना दुकान है. किशनगंज में यह युवाओं के लिए प्रेरणास्रोत माने जाते हैं.

Intro:किशनगंज के एक व्यक्ति 18 वर्षों से नंगे पैर जीवन जी रहे हैं। उन्होंने अयोध्या में राम मंदिर निर्माण होने तक चप्पल नहीं पहने का संकल्प लिया था। सुप्रीम कोर्ट के फैसले के बाद राम मंदिर निर्माण का रास्ता साफ हो गया है।लेकिन मंदिर निर्माण में अभी भी वर्षों समय लगेगा और तब तक बिहार के सीमांचल के किशनगंज का 38 वर्षीय देवदास उर्फ देवुदा नंगै पैर जीवन व्यतीत करंगे। बताया जिस दिन भव्य मंदिर का निर्माण पूरा हो जायेगा और उद्घाटन हो कर मंदिर का दरवाजा सबके लिए खुल जायेगा उस दिन से हम जुता चप्पल पहना शूरू करंगे।

बाइटः देवदास उर्फ देबुदा


Body:सुप्रीम कोर्ट ने फैसला तो अयोध्या मामले में दिया लेकिन इसका असर बिहार की सीमांचल के किशनगंज का एक युवक के जीवन पर गहरा पड़ा है। अब 18 साल बाद जल्द ही वह चप्पल-जूता पहन सकेगा। देबूदा 18 वर्षों से नंगे पैर जीवन जी रहे हैं उन्होंने अयोध्या में राम मंदिर निर्माण होने तक चप्पल नहीं पहने का संकल्प लिया था। सुप्रीम कोर्ट के फैसले के बाद राम मंदिर निर्माण का रास्ता साफ हो गया है। अब देवदास 18 वर्ष के बाद जिस दिन मंदिर निर्माण होकर तैयार हो जाएगा उसदिन अयोध्या जाकर चप्पल पहनेंगे।


Conclusion:समाज सेवा को अपना जीवन का मूल मंत्र बनाने वाले 38 वर्षीय देवदास उर्फ देवुदा ब्रह्मचारी का जीवन व्यतीत कर रहे हैं। 2001 में इंटर की परीक्षा पास करने के बाद देवुदा शपथ ली थी कि जब तक राम मंदिर निर्माण का मार्ग प्रशस्त नहीं हो जाता है, वे चप्पल नहीं पहनेंगे। सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई होने के बाद खुशियां जताते हुए देवदास बताते हैं कि उनका शपथ अब जल्द पूरा हो जायेगा। देबुदा को समाज सेवा का जुनून ऐसा है कि वे रक्तदान के प्रति लोगों को जागरूक करने के साथ-साथ स्वयं भी रक्तदान करते हैं और इसे अपना ड्यूटी समझते हैं। समाज में जिस परिवार से उन्हें शादी विवाह और जन्मदिन के अवसर पर आमंत्रण मिलता है उस परिवार के सदस्यों द्वारा कम से कम पांच पौधारोपण आवश्य करवाने का प्रयास करते हैं। साथ ही देबूदा अब तक 1800 से ज्यादा लोगों का दाह-संस्कार मे शामिल हो कर खूद काम करते है। शहर हो या गांव जहां खबर मिल जाये देबुदा को मौत की तो वह खूद उनके घर पहुंच जाते हैं और अंतिम संस्कार के काम मे लग जाते हैं।सिर्फ इतना ही नहीं जिले में किसी अज्ञात शव मिलने पर वे उनके दाह संस्कार कर रीति रिवाज के साथ उनका अंतिम क्रिया भी खुद करवाते हैं किशनगंज जिला मुख्यालय से लेकर सातों प्रखंड में के एक एक गांव मे छोटे से लेकर बुजुर्ग तक देवदास उर्फ देबू को देबुदा के नाम से जानते हैं।और रोजीरोटी के नाम पर शहर के रोलबाग चौक पर एक किराना दुकान है। वहीं किशनगंज मे युवाओं के लिए प्रेरणास्रोत माने जाते है और युवाओं के बीच नशामुक्त का मुहीम भी चलाते हैं। चाये कोइ भी युवा को नशा करते नजर आने पर देबुदा उनके नशा छुड़ाकर ही दम लेते हैं।आजतक सैकड़ों युवाओं को नशामुक्त करने में सफल रहे है। शहर के हर मजहब के लोग देबुदा को पंसद करते है। किसी भी लोगों के दुख के घड़ी मे सबसे पहले पहुचने वाले व्यक्ति देबुदा होते है।ऐही कारन है हर लोग देबुदा का चाहते है।

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