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ट्रेन में मृत आत्माओं के नाम से बुक की जाती है टिकट, पिंडदानी बच्चों की तरह पितृदंड का रखते हैं ख्याल

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Published : Sep 16, 2022, 7:07 AM IST

Updated : Sep 16, 2022, 11:33 AM IST

Train berth book for souls
Train berth book for souls ()

बिहार के गया में विश्व प्रसिद्ध पितृपक्ष (Pitru Paksha 2022) मेला चल रहा है. इस दौरान अनोखी आस्था भी देखने को मिल रही है. काफी संख्या में पिंडदानी पितृदंड के साथ भी गयाजी पहुंच रहे हैं. ट्रेनों में आत्माओं के लिए टिकट बुक किए जाते हैं. क्या है यह परंपरा पढ़ें.

गया:पितृ पक्ष 2022 के मौके पर बड़ी संख्या में पिंडदानी तर्पण के लिए गयाजी पहुंचते हैं. यहां पितरों की मोक्ष की प्राप्ति के लिए विधि विधान से पिंडदान किया जाता है. लेकिन गया में पिंडदान की एक अनोखी परंपरा भी है. यहां आत्माओं का रिजर्वेशन किया जाता है. पिंडदानी पितृदंड को बोगियों में सुलाकर लाते हैं.

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ट्रेन में मृत आत्माओं के नाम पर सीट: पितृ पक्ष (Pitru Paksha 2022) के दौरान अपने पितरों की मोक्ष प्राप्ति (Pind Daan in Gayaji) के लिए सनातन धर्मावलंबी गयाजी आते हैं. यहां आने वाले पिंडदानी के कंधे पर एक दण्ड में लाल या पीले कपड़े में नारियल बंधा रहता है. उस दण्ड को पितृदंड कहते हैं. पिंडदानी, पितृदण्ड को एक बच्चे की तरह घर से गया जी लाते हैं. गया जी आने वाले पिंडदानियों की आस्था को इसी बात से समझा जा सकता है कि वे पितृदंड को वाहन या ट्रेन में सीट बुक करके लाते हैं.

पिंडदानी पितृदंड का बच्चों की तरह रखते हैं ख्याल: बिहार के गया में विश्व प्रसिद्ध पितृपक्ष मेला चल रहा है. इस दौरान कच्चा बांंस का 13 पोर से बने पितृ स्वरूप पितृदंड को लेकर तीर्थयात्रियों की आस्था का बड़ा जुड़ाव है. खास बात यह है कि पितृदंंड लाते वक्त मृत आत्माओं के नाम पर रिजर्वेशन होता है. यदि ट्रेन में पितृदंड लाते हैं, तो उसके लिए रिजर्वेशन भले ही किसी व्यक्ति के नाम पर होता है, लेकिन उसमें पितृदंड को पूरा स्थान दिया जाता है. वहीं बस यात्रा में भी यही स्थिति रहती है. पितृ दंड को पूरी आस्था के साथ सुलाकर नैवेद भोग लगाकर लाया जाता है.

पितृदंड का क्या है महत्व:दरअसल पितरों को मोक्ष दिलाने के लिए देश-विदेश से श्रद्धालु गया जी आते हैं. गयाजी में मोक्षधाम में पितरों का वास होता है. ऐसी मान्यता है कि जो सनातन धर्म को मानने वाले लोग होते हैं, जिनकों पितरों के प्रति श्रद्धा होती है, वही गया जी मे श्राद्ध करने आते हैं. पिंडदानी का पूरा कर्मकांड श्रद्धा पर निर्भर होता है. पितृपक्ष के दौरान एक ऐसी परंपरा है जो पिंडदानियों की श्रद्धा को प्रस्तुत करता है. हजारों सालों से चलती आ रही गया जी में पितृदण्ड लाने की परंपरा आज के आधुनिक युग में भी जिंदा है.पितृदण्ड एक ऐसी परंपरा है, जिसमें पितरों का आह्वान करके लाल,सफेद और पीले कपड़े में बांधकर पितरों को नारियल वास कराया जाता है. घर से निकलने से लेकर पिंडदानी की समाप्ति तक उसको स्वच्छता और सुरक्षित रखा जाता है.

पितृदंड की सेवा: गयाजी पितृदण्ड बहुत कम पिंडदानी लाते हैं.सबसे ज्यादा पितृदण्ड उड़ीसा राज्य से आनेवाले पिंडदानी गया जी मे लाते हैं. पितृदण्ड को लाने के लिए संपन्न लोग ट्रेन में सीट तक बुक करके लाते हैं. हालांकि यह दृश्य बहुत कम ही देखने को मिलता है. वैदिक मंत्रालय पाठशाला के पंडित राजाचार्य ने बताया कि गया जी 15 से 17 दिवसीय त्रेपाक्षिक कर्मकांड करनेवाले पिंडदानी पितृदण्ड को लेकर काफी सजग रहते हैं.

पितरों को कराया जाता है भोजन:घर से निकलने से लेकर गया जी आने और पिंडदान के संपन्न होने तक पितृदण्ड की पवित्रता से कोई छेड़छाड़ नहीं की जाती है. उड़ीसा या छत्तीसगढ़ से पिंडदानी ट्रेन में यात्रा करने के दौरान पितृदण्ड को कंधे पर नहीं रखते हैं, बल्कि पितृदण्ड को रखने के लिए ट्रेन में उसका कंफर्म टिकट करवा कर गया जी लाते हैं. गया जी आने के दौरान आवासन स्थल पर उनके लिए एक निर्धारित स्थान होता है. जहां पिंडदानी हर सुबह और शाम उनकी आराधना करते हैं और रतजगा करके उनकी रखवाली भी करते हैं. पितृदण्ड लेनेवाले पिंडदानी खाने के पहले पितरों को भोजन करवाते हैं और सोने के पहले उन्हें सुलाते हैं.

"पितृदंड को पितृ स्वरूप मानकर गयाजी लाया जाता है. सीट रिजर्व कर विधिवत तरीके से बनारस से पुनपुन और फिर गयाजी को लाते हैं. 17 दिन परिपूर्ण श्राद्ध करते हैं. यह अनंत चतुर्दशी से शुरू होती है. 54 जगह का श्राद्ध होता है. ट्रेन में पितृ को पितृदंड जो कि पितर हैं, हम लोग अलग नाम से ट्रेन में रिजर्वेशन करते हैं."-रामाशास्त्री, छत्तीसगढ़ से आए पिंडदानी

"पितृ मोक्ष के लिए गयाजी आए हैं. पितर जहां गुजरे थे, वहां से श्मशान घाट से मिट्टी लाते हैं और फिर विधि पूर्वक भागवत कथा सुनकर गयाजी को आते हैं."-पुष्पा अग्रवाल, श्रद्धालु

"17 दिन का श्राद्ध करते हैं. इसके बाद 17 दिन का पिंडदान पूर्ण कर पुरी जाते हैं. फिर वहां से लौटने के बाद घर में भंडारा करते हैं."-श्याम सुंदर अग्रवाल, छत्तीसगढ़ से आए पिडदानी

"बर्थ पितृदंड के लिए ही रिजर्व होता है. जिस प्रकार मनुष्य सोकर यात्रा करता है, पितृदंड को उसी तरह से सुलाकर लाते हैं. नैवेद भोग भी लगाया जाता है. एक तरह से बच्चे की जिस तरह से देखरेख की जाती है, ठीक उसी प्रकार से पितृदंड को देखरेख में गयाजी को लाया जाता है."-बबीता अग्रवाल, श्रद्धालु




Last Updated :Sep 16, 2022, 11:33 AM IST

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