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बिहार विधानसभा उपचुनाव में नहीं बजी कन्हैया की 'मुरली'

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Published : Nov 2, 2021, 6:00 PM IST

Updated : Nov 2, 2021, 9:46 PM IST

विधानसभा की दो सीटों के लिए हुए उपचुनाव ने बिहार की राजनीति में बहुत कुछ बदल दिया. यहां तक की कांग्रेस और राजद का गठबंधन टूट गया. हाल ही में कांग्रेस में शामिल हुए कन्हैया कुमार से पार्टी को इस उपचुनाव में काफी उम्मीदें थीं लेकिन परिणाम बिल्कुल निराशाजनक रहा. कन्हैया का कोई असर नहीं दिखा.

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पटना: बिहार में 2 सीटों पर हुए उपचुनाव(By-Election) में कांग्रेस राजद गठबंधन से अलग होकर के चुनाव लड़ी. कांग्रेस (Congress) का तर्क यह था कि राजद (RJD) के साथ वह हर काम तो कर रही है जो गठबंधन धर्म के अनुसार है लेकिन राष्ट्रीय जनता दल ने गठबंधन के नियमों का पालन नहीं किया. यही वजह है कि कुशेश्वरस्थान और तारापुर दोनों विधानसभा सीटों पर कांग्रेस ने अपने उम्मीदवार उतार दिए.

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बात यहीं नहीं रुकी. सबसे बड़ी बात यह है कि इस बार कांग्रेस ने 2 सीटों के लिए हुए उपचुनाव में अपनी अपनी ताकत की आजमाइश की. कांग्रेस की लड़ाई में उसके तरकश के सबसे अहम तीर कन्हैया कुमार थे. इसके लिए यह बयान भी दिया गया था कि कन्हैया कुमार बिहार की राजनीति में कांग्रेस को बहुत कुछ बदल कर दे देंगे लेकिन हुआ इसका उल्टा. कांग्रेस की राजनीति में अगर कुछ बदला तो यह कि दोनों सीटों पर वह उस अंक तक भी नहीं पहुंच पाई जो एक सम्मानजनक स्थिति हो. साथ ही जिस राजनीतिक जमीन की बात हो रही थी, वह तो हाथ से निकल ही गई.

आरजेडी के साथ रहने पर जिस कुशेश्वरस्थान सीट पर 2020 के चुनाव में कांग्रेस को बढ़त मिली थी, हालांकि फिर भी वह तीसरे स्थान पर रही थी. इस बार कांग्रेस का पूरा स्वरूप ही डूब गया. कांग्रेस के कन्हैया कुमार ने चुनाव प्रचार में राजनीति की मुरली तो खूब बजाई लेकिन उसकी धुन इतनी भी मनभावन नहीं थी कि उस पर जनता उनकी ओर आकर्षित हो.

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बिहार में 2 सीटों के उपचुनाव के लिए जब तैयारियां चल रही था, उस समय यह तय किया जा रहा था कि कुशेश्वरस्थान कांग्रेस को दे दे और तारापुर में महागठबंधन के सहयोग से राजद चुनाव लड़ ले लेकिन बात नहीं बन पाई. दोनों पार्टियां अलग-अलग होकर चुनावी मैदान में उतरीं. अब कुशेश्वरस्थान की बात करें तो जेडीयू को 45.75 फीसदी वोट मिला है जबकि आरजेडी को 36 प्रतिशत. कांग्रेस की बात करें तो उसे महज 5603 वोट मिले. अगर इसे प्रतिशत में देखें तो लगभग 3.4 फीसदी है.

कांग्रेस अगर आरजेडी के साथ चुनावी मैदान में उतरती तो संभवत है कुछ वोट बैंक भटकता नहीं. अलग-अलग होने का खामियाजा एक बार फिर कांग्रेस और राजद को भुगतना पड़ा. अब इसके पीछे कांग्रेस का कन्हैया तर्क है या फिर कांग्रेस को ऐसा लगने लगा था कि अपनी राजनीतिक जमीन और जनाधार मजबूत करने के लिए उसे अलग रास्ता अख्तियार करना चाहिए.

शायद इसी नाते कन्हैया कुमार और दूसरे युवा चेहरे को शीर्ष नेतृत्व ने बिहार भेजा भी था. माना भी यह जा रहा था कि तेजस्वी और चिराग पासवान के साथ पुष्पम प्रिया चुनावी मैदान में जिस तरीके से राजनीतिक रंग बना रहे हैं, उसके लिए युवा चेहरा का होना जरूरी है. उसमें बिहार में अगर सबसे ज्यादा किसी नाम पर चर्चा हुई थी तो वह थे कन्हैया कुमार. माना यह भी जा रहा था कि कन्हैया कुमार के आने के बाद कांग्रेस एक नए रंग में दिखेगी. 2 सीटों पर होने वाले उपचुनाव में ही बदलाव की बयार बहती दिखेगी.

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कन्हैया कुमार वामदल छोड़कर कांग्रेस में आए थे. हालांकि जब कन्हैया ने बेगूसराय से लोकसभा का चुनाव लड़ा था तो वहां के वर्तमान सांसद और कट्टर हिंदूवादी छवि के नेता माने जाने वाले गिरिराज सिंह को कड़ी टक्कर भी दी थी. पहली बार राजनीति में उतरे कन्हैया कुमार ने जिस तरीके से गिरिराज सिंह को टक्कर दी थी, उससे एक बात लगने लगा था कि आने वाले समय में कन्हैया बिहार की राजनीति में एक अहम चेहरा होंगे.

कहा जा रहा था कि कन्हैया जिस दल के साथ होंगे, उसे फायदा मिलेगा. वामदल में बहुत कुछ फायदा होते नहीं देख कन्हैया कुमार ने पाला बदल लिया और कांग्रेस में आ गए. यह भी सही है कि जब कन्हैया कुमार आए तो बिहार में कांग्रेसियों में नई जान आ गई थी. उन्हें लगने लगा था कि कन्हैया कुमार राजनीतिक मैदान में मजबूती के साथ खड़ें होंगे लेकिन जिन मुद्दों को लेकर वे जनता के बीच आए, उसे बहुत जगह नहीं मिली.

इस बदतर चुनाव परिणाम के बाद कांग्रेस के विधान पार्षद प्रेमचंद्र मिश्रा ने कहा कि हार के लिए बिहार कांग्रेस अध्यक्ष को जिम्मेदार नहीं ठहराया जा सकता और ना ही किसी एक व्यक्ति पर जिम्मेदारी दी जा सकती है. लेकिन जवाबदेही तो तय करनी पड़ेगी क्योंकि जिस मुद्दे पर कांग्रेस जमीन मजबूत करने और जनाधार खड़ा करने के लिए अपने पुराने सहयोगी से नाता तोड़ लिया, उसका जवाब तो हर जगह देना ही पड़ेगा.

कांग्रेस के मनोबल को मजबूती देने में निश्चित तौर पर कन्हैया कुमार का एक बड़ा योगदान रहा है. यह माना भी जा रहा था कि कन्हैया कुमार बिहार की राजनीति में तेजस्वी के सामने बदलाव की एक कहानी लिख देंगे लेकिन इस चुनाव परिणाम ने एक बात तो साफ कर दिया कि कन्हैया को बिहार की राजनीति में अभी कड़ी मेहनत करनी होगी.

सियासी बांसुरी की तान इतनी मजबूत करनी पड़ेगी कि उसकी आवाज पर जनता भरोसा करना शुरू करे. तभी कोई रंग और कन्हैया की कोई लीला बिहार की राजनीति में रंग छोड़ पाएगी अन्यथा राजनीति जिस रंग को लेकर चल रही है, उसमें कांग्रेस छूटी हुई जमीन और जनाधार को शायद ही मजबूत कर पाए.

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Last Updated :Nov 2, 2021, 9:46 PM IST

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