बिहार

bihar

ETV Bharat / city

UP की राजनीति: बिहार से 'पूर्वांचल एक्सप्रेस वे'

उत्तर प्रदेश विधानसभा का चुनाव अगले साल होना है. जेडीयू, हम, वीआईपी जैसी बिहार की राजनीतिक पार्टियां इस चुनाव में प्रतिद्वंद्विता करने के लिए कमर कस चुकी हैं. बिहार में सत्तारूढ़ एनडीए के करीब सभी घटक दल उत्तर प्रदेश में जाति समीकरण के आधार पर अपने लिए चुनावी समर में सफलता रास्ता खोज रहे हैं. पढ़ें यह विशेष रिपोर्ट.

purwanchal politcs
purwanchal politcs

By

Published : Sep 20, 2021, 11:13 AM IST

पटना:उत्तर प्रदेश में अगले साल होने वाले सत्ता के चुनावी संग्राम (UP Assembly Elections) के लिए बिहार के राजनीतिक दलों ने पूर्वांचल एक्सप्रेस-वे पर राजनीतिक रफ्तार बढ़ाना शुरू कर दिया है. बात नीतीश कुमार (Nitish Kumar) की पार्टी की हो या फिर मांझी की अथवा वीआईपी के मुकेश सहनी (Mukesh Sahni) की. सभी अपनी राजनीतिक रोटी सेकने के लिए उत्तर प्रदेश की राह पकड़ चुके हैं. मुकेश सहनी ने 100 से ज्यादा सीटों पर चुनाव लड़ने की अपनी मंशा जाहिर कर दी है. दूसरी ओर जीतनराम मांझी (Jitan Ram Manjhi) भी हम (HAM) को लेकर उत्तर प्रदेश जाने के लिए तैयार हैं. सभी दलों को ऐसा लग रहा है कि उत्तर प्रदेश में जाति की राजनीति उन्हें जीत दिला देगी.

ये भी पढ़ें: चांदी का मुकुट पहनकर गदगद हुए तेजस्वी, बोले- 'झारखंड के साथ केंद्र कर रहा सौतेला व्यवहार'

ये भी पढ़ें: अक्टूबर में मुख्यमंत्री नीतीश कुमार जाएंगे UP, चुनाव को लेकर करेंगे मंथन

उत्तर प्रदेश के जातिगत समीकरण को समझा जाए तो यहां सबसे ज्यादा ओबीसी वोट बैंक है. इसी वोट बैंक पर सभी दलों का राजनीतिक भविष्य और जीत की तैयारी टिकी हुई है. उत्तर प्रदेश में अगर जाति की राजनीति को समझा जाए यहां 20 फीसदी मुसलमान हैं. उनका लगभग 36 सीटाें पर सीधा प्रभाव है. यूपी में कुल 18 फीसदी सामान्य वोटर हैं. ब्राह्मणों की संख्या 10 फीसदी है. 12 फीसदी यादव, कुर्मी और कुशवाहा जोड़कर 8 से 12 फीसदी, जाट 5 फीसदी, मल्लाह 5 फीसदी और अनुसूचित जाति 25 फीसदी हैं.

दरअसल, इसी में बिहार के नेता अपने राजनीतिक भविष्य को तलाश रहे हैं. यहीं से नई राजनीतिक सियासत भी पूर्वांचल एक्सप्रेस वे के रास्ते से बिहार में जा रही है. बिहार से पूर्वांचल एक्सप्रेस-वे जो उत्तर प्रदेश की सियासत के लिए नया मानदंड बन रहा है, उसका रास्ता भी यहीं से जुड़ रहा है.

नीतीश का कुर्मी समुदाय
उत्तर प्रदेश के सोनभद्र, मिर्जापुर, उन्नाव, जालौन, फतेहपुर, प्रतापगढ़, कौशांबी, इलाहाबाद, सीतापुर, बहराइच, श्रावस्ती, बलरामपुर, सिद्धार्थनगर और बस्ती जिले में कुर्मी समुदाय का मजबूत वोट बैंक है. इन जिलों में 8 से 12 फीसदी कुर्मी वोट बैंक है. यही कारण है कि नीतीश कुमार की पार्टी जदयू (JDU) उत्तर प्रदेश में चुनाव लड़ने के दावे कर रही है. नीतीश कुमार की पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष ललन सिंह की बात करें तो उन्होंने साफ कह दिया है कि बीजेपी अगर हमारा साथ लेती है तो ठीक, नहीं तो हम अपने बूते ही उत्तर प्रदेश में चुनाव लड़ेंगे. इसके पीछे की मूल वजह भी इन जिलों में कुर्मी समुदाय का वोट बैंक है.

ये भी पढ़ें:झारखंड में पैठ जमाने की तैयारी में तेजस्वी, कैसे करेंगे 'बिहारीकरण'?

वीआईपी का मल्लाह वोट बैंक
उत्तर प्रदेश में करीब 6 फीसदी मल्लाह समुदाय के लोग हैं. राज्य में निषाद, बिंद और कश्यप जैसी उप-जातियों के नाम से भी इन्हें जाना जाता है. उत्तर प्रदेश में गंगा के तराई क्षेत्र में मल्लाह जाति की अच्छी-खासी आबादी है. इसमें फतेहपुर, चंदौली, मिर्जापुर, गाजीपुर, बलिया, वाराणसी, गोरखपुर, भदोही, प्रयागराज, अयोध्या, जौनपुर, औराई जैसे जिले शामिल हैं. साथ ही बिहार से सटे वे जिले जिनमें सोन नदी और दूसरी छोटी नदियां जो गंगा में मिलती है, वहां पर इस समुदाय के लोग नाव के माध्यम से जीविकोपार्जन करते हैं. मछली पालन भी इनके रोजगार का प्रमुख साधन है. वीआईपी के मुकेश साहनी इस मल्लाह वोट बैंक को एकजुट करने में जुटे हुए हैं.

उत्तर प्रदेश में किसी पार्टी की जीत में ओबीसी वोट बैंक की बड़ी भूमिका होती है. इसमें मुसहर समाज के लोगों का अहम रोल है. जीतनराम मांझी को ओबीसी वोट बैंक को लेकर बीजेपी पर दबाव बनाने का मौका इसलिए भी मिल रहा है क्योंकि 2017 में लगभग 61 फीसदी ओबीसी वोट बीजेपी को मिला था. मांझी यह मानकर चल रहे हैं कि अगर बीजेपी उन्हें साथ लेकर चलती है तो इससे उसे ही फायदा होगा. साथ ही पूर्वांचल में मांझी ओबीसी के चेहरे के तौर पर भी स्थापित हो सकते हैं.

बिहार की राजनीति में बीजेपी ने जब रामविलास पासवान (Ram Vilas Paswan) को अपने साथ जोड़ा था तो वह इसी जाति को पूर्वांचल में साधना चाहती थी. अब रामविलास पासवान के नहीं रहने के बाद बीजेपी मांझी को उत्तर प्रदेश में चेहरा बनायेगी. हालांकि इसमें अभी शक है क्योंकि राजभर वोट को लेकर बीजेपी अपना दल के साथ जुड़ी है. अभी इस पर रस्साकशी जारी है कि इस परिस्थिति में मांझी को लाकर वह कोई दूसरा राजनीतिक प्रतिद्वंद्वी खड़ा करेगी. इधर, मांझी इसी आधार उत्तर प्रदेश के चुनाव में उतरने के लिए तैयार हैं.

ये भी पढ़ें: JDU में होंगे बड़े बदलाव: 2 दिनों की बैठक के बाद बोले ललन सिंह- शीर्ष नेताओं से करेंगे बात

बिहार के राजनीतिक दलों के लिए उत्तर प्रदेश जातिगत सियासत की एक प्रयोगशाला बनता जा रहा है. उसके वजह में यह राजनीतिक दलील है कि जो भी राजनीतिक दल बिहार से यूपी जा रहे हैं, उन्हें बिहार में जो मिला है उस पर कोई असर नहीं पड़ेगा. उत्तर प्रदेश में अगर उन्हें कुछ नहीं मिलता है तो भी उन्हें कोई असर नहीं पड़ेगा. लेकिन सवाल यह उठ रहा है कि जो राजनीतिक दल बीजेपी के साथ उत्तर प्रदेश में चुनाव लड़ने की तैयारी कर रहे हैं और बिहार में भी साथ हैं. अगर उत्तर प्रदेश में बीजेपी उन्हें अपने साथ नहीं लेती है तो उसे अपनों से ही लड़ना पड़ेगा.

बीजेपी के लिए सबसे सुकून की बात राष्ट्रीय जनता दल (Rashtriya Janata Dal) है जिसने पहले ही उत्तर प्रदेश चुनाव में नहीं जाने का ऐलान कर दिया है. दरअसल, मुलायम सिंह यादव (Mulayam Singh Yadav) और लालू यादव (Lalu Yadav) के बीच रिश्तेदारी इस कदर है कि तेजस्वी यादव प्रचार तो जरूर करेंगे लेकिन उनकी पार्टी राजद उत्तर प्रदेश में चुनाव नहीं लड़ेगी.

अब उत्तर प्रदेश की सियासत में जो राजनीतिक बिसात बिछ रही है, उसमें बिहार से पूर्वांचल एक्सप्रेस-वे को जोड़ करके पीएम नरेंद्र मोदी ने यूपी के सीएम योगी आदित्यनाथ (Yogi Adityanath) के सामने जिस समन्वय को रखा था, उसका समझौता अब उत्तर प्रदेश की सियासत में भारी पड़ता जा रहा है. नीतीश कुमार, जीतन राम मांझी, मुकेश साहनी एनडीए का हिस्सा हैं. अगर ये सभी उत्तर प्रदेश के चुनाव में उतर जाते हैं तो बीजेपी के लिए चुनौती बढ़ जाएगी.

ये भी पढ़ें: अगर NDA से नहीं बनी बात, तो JDU के साथ मिलकर लड़ेंगे यूपी चुनाव: HAM

ABOUT THE AUTHOR

...view details