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डिजिटल बनती बिहार पुलिस, आंकड़ों के जरिए जानिए अब तक की पूरी स्थिति

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Published : Nov 28, 2020, 1:26 PM IST

Updated : Nov 28, 2020, 1:53 PM IST

दूसरे विभागों की तुलना में बिहार में पुलिस विभाग पूर्ण रूप से डिजिटल अब तक नहीं हो पाया है. इसके पीछे कई कारण हैं. इसको लेकर हमने एक विस्तृत रिपोर्ट बनायी है. पढ़ें

Bihar police
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पटना : क्राइम एंड क्रिमिनल ट्रैकिंग नेटवर्क सिस्टम यानी सीसीटीएनएस परियोजना. वैसे तो 2012 में पूरे देश में सीसीटीएनएस योजना की शुरुआत हुई. लेकिन बिहार में यह कछुए की चाल में रेंग रहा है. तभी तो राज्य के आधे थाने ही अबतक पूरी तरीके से डिजिटाइज्ड हो पाये हैं.

क्यों बिहार रह गया पीछे?

बिहार में 1064 थाने हैं, इसमें से सिर्फ 535 थाने डिजिटाइज्ड हैं. काम तो शुरू हुआ वर्ष 2012 में, लेकिन 8 साल बीत गए अबतक पूरा नहीं हुआ. स्टेट क्राइम रिकॉर्ड ब्यूरो (एससीआरबी) के आईजी कमल किशोर सिंह ने बताया कि 2012 में जिस कंपनी को यह काम सौंपा गया था उसका कार्य संतोषजनक नहीं होने के कारण उच्चस्तरीय बैठक निर्णय के बाद उसके कॉन्ट्रैक्ट को कैंसिल कर दिया गया था. 2015 में उस कंपनी के द्वारा उसके अनुबंध को रद्द के खिलाफ माननीय उच्च न्यायालय में रिट दायर किया गया था. जिसका फैसला 2017 दिसंबर में आया. जिस वजह से इस पर आगे की कार्रवाई हम लोग नहीं कर पाए. यही कारण है कि दूसरे राज्यों के तुलना में हम पिछड़ गए हैं.

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अब तक पूर्ण रूप से बिहार के सभी थानों को सीसीटीएनएस से नहीं जुड़ पाए हैं. एससीआरबी के आईजी कमल किशोर सिंह ने बताया कि नए सिरे से नए वेंडर का चयन कर सितंबर 2018 में टीसीएस के साथ कांट्रैक्ट साइन हुआ. जिसके तहत पुलिस कार्यालय समेत बिहार के थानों को डिजिटलीकरण करने की दिशा में धीरे-धीरे हम लोग बढ़ रहे हैं. करोना काल ने भी इस पर काफी असर डाला है.

बिहार के लगभग आधे थाने डिजिटाइज्ड

कमल किशोर सिंह ने बताया कि सीसीटीएनएस परियोजना में 894 थानों को जोड़ने का लक्ष्य रखा गया था. अब तक कुल 535 थानों को डिजिटाइज्ड किया गया है. जिन 535 थानों को डिजिटाइजेशन किया गया है, उन थानों में हुए एफआईआर अब आईसीजी के तहत ऑनलाइन माध्यम से न्यायालय तक पहुंच रहा है. हालांकि राज्य सरकार के द्वारा बाद में लिए गए निर्णय के बाद बिहार के सभी कुल 1064 जोड़ने का लक्ष्य रखा गया है. जिसमें से 535 थाने पूर्ण रूप से डिजिटाइज हो चुके हैं. उन सभी थानों के डाक्यूमेंट्स को ऑनलाइन के माध्यम से कोर्ट में प्रस्तुत किया जा रहा है.

आईजी कमल किशोर सिंह

40 जिलों में 37 जिलों में कार्य तेजी से प्रारंभ

एससीआरबी के आईजी ने बताया कि सभी थानों और पुलिस कार्यालयों में पुलिसकर्मियों और कर्मचारियों को प्रशिक्षण दिया जा रहा है. जैसे ही सभी लोग प्रशिक्षित हो जाएंगे तब पूरे राज्य के पुलिस डिजिटल मोड में ही काम करेगी. राज्य पुलिस के लगभग 50 प्रतिशत थाने डिजिटल मोड में काम करने लगे हैं. सीसीटीएनएस योजना के तहत पिछले 10 वर्षों के केस रिकॉर्ड को भी डिजिटाइज किया जा रहा है. राज्य के 40 जिलों में 37 जिलों में यह कार्य तेजी से प्रारंभ किए गए हैं आने वाले कुछ महीनों में पिछले 10 सालों के केस रिकॉर्ड को हम डिजिटाइज कर देंगे. हालांकि उच्च स्तरीय बैठक में यह निर्णय लिया गया है कि सिर्फ 10 वर्ष ही नहीं क्योंकि कोर्ट में पिछले कई वर्षों के मामले चलते आ रहे हैं जिस वजह से पिछले 20 वर्षों के केस रिकॉर्ड को डिजिटाइज करने का निर्णय लिया गया है.

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सिपाही से लेकर सीनियर आईपीएस अधिकारी तक को प्रशिक्षण की जरूरत

आईजी कमल किशोर के मुताबिक आने वाले कुछ ही महीनों में राज्य के सभी थाने सीसीटीएनएस योजना के तहत जुड़ जाएंगे. सभी थाने स्टेट डाटा सेंटर से जुड़ेंगे और हम खुद स्टेट डाटा सेंटर से नेशनल डाटा सेंटर से जुड़े हुए हैं. हमारी डाटा सीधे राष्ट्रीय स्तर पर अब जा रही है. आईसीजीएस के माध्यम से ही हम अपने डाटा को न्यायालय तक पहुंचा रहे हैं. आने वाले कुछ ही महीने में हम पूरी तरह से डिजिटललाइज हो जाएंगे. सिपाही से लेकर सीनियर आईपीएस अधिकारी तक को प्रशिक्षण की जरूरत पड़ रही है. सभी को प्रशिक्षण दिया जा रहा है. गृह विभाग से मिले निर्देश के बाद सेवा निर्मित कार्मिक को प्रशिक्षण देकर आईटी कैडर बनाया जाएगा. उसके लिए हमारा प्रस्ताव स्थापना प्रभाव में मंतव्य के लिए गया है.

देखें विशेष रिपोर्ट.
  • बिहार के सभी थाने डिजिटलाइज हो जाएंगे तो सबसे आसान पुलिसकर्मियों के लिए होगा.
  • अगर किसी अपराधी या किसी के बारे में कोई भी जानकारी लेनी होगी तो वह सीधे एक क्लिक बटन से उस कांड या उस अपराधी के बारे में आसानी से जानकारी जुटा सकेंगे.
  • सिर्फ बिहारी नहीं देश के किसी कोने से यह जानकारी लिया जा सकता है.
  • एसपी रैंक से लेकर डीजी रैंक के अधिकारियों के लिए खुद सुपरविजन के लिए भी काफी फायदेमंद साबित होगा.
  • जब सभी थाने और सभी पुलिस कार्यालय डिजिटलाइज हो जाएंगे तो आम जनता को सबसे ज्यादा फायदा होगा.
  • वह घर बैठे ही केस से रिलेटेड किसी तरह की जानकारी आसाहनी से प्राप्त कर सकेंगे.

बता दें कि सर्वोच्च न्यायालय के निर्देश के बाद नवंबर 2016 से ही किसी भी एफआईआर को 24 से 48 घंटे के अंदर पब्लिक डोमेन में डाल दिया जाता है. एनसीआरबी की वेबसाइट पर सभी एफआईआर लोड होते हैं. सिर्फ वही एफआईआर लोड नहीं किए जाते हैं जिसे डालने की अनुमति नहीं है. जैसे कि महिला के साथ उत्पीड़न, गैंगरेप, नेशनल सिक्योरिटी से जुड़े मामले, बच्चों के साथ उत्पीड़न, कम्युनल लॉ एंड ऑर्डर से रिलेटेड मामले को पब्लिक डोमेन में नहीं डालने की अनुमति है.

89 सेकंड में अपराधी की पहचान

कमल किशोर के मुताबिक जैसे ही पूर्ण रूप से बिहार पुलिस डिजिटलाइज हो जाएगी, भ्रष्टाचार से जुड़े लगभग सभी मामले पूर्ण रूप से खत्म हो जाएंगे. पब्लिक और पुलिस सिंह के लिए यह बहुत अच्छा फैसला है. आपको बता दें कि जब पुलिस के सभी कार्यालय और बिहार के सभी थाने डिजिटलाइज हो जाएंगे तब चरित्र सत्यापन, आवश्यक पुलिस अनुमति, लापता सामग्रियों की सूचना, खोए या चोरी हुए सामानों की जानकारी आदि भी ऑनलाइन मिलेगी. अपराधियों के फिंगरप्रिंट का डेटाबेस होगा. कहीं के भी अपराधी की जानकारी उसके फिंगरप्रिंट से हो सकेगी. फिंगरप्रिंट डेटाबेस से सिर्फ 89 सेकंड में अपराधी की पहचान हो सकेगी. थानों में गुंडा रजिस्टर, एफआईआर रिकॉर्ड भी डिस्टल होंगे.

  • राज्य और राष्ट्रीय स्तर पर भी एक थाना से दूसरे थाना में सूचना के आदान-प्रदान में बहुत सुविधा और पारदर्शिता होगी.
  • इससे पुलिस डायरी में हेरफेर करना मुमकिन ही नहीं नामुमकिन हो जाएगा.
  • स्थानीय पुलिस स्टेशन और जिला पुलिस मुख्यालय राज्य पुलिस मुख्यालय से जुड़ेंगे.
  • यह सभी स्टेट क्राईम रिकॉर्ड्स ब्यूरो और राष्ट्रीय स्तर पर नेशनल क्राईम रिकॉर्ड्स ब्यूरो से जुड़ेगा.
  • इस सिस्टम पर 250 करोड़ खर्च होंगे. जिसमें से 206 करोड़ बिहार सरकार देगी, बाकी केंद्र सरकार देगी.

दो भागों में बांटा गया सीसीटीवी परियोजना

स्टेट क्राइम रिकॉर्ड ब्यूरो (एससीआरबी) के डीआईजी राजीव रंजन ने बताया कि सीसीटीवी परियोजना को दो भागों में बांटा गया है. पहला स्टेट सिटी सर्विलांस सिस्टम है. जिसके तहत पटना समेत राज्य बड़े शहरों के चौक चौराहों पर सीसीटीवी कैमरे लगाया जाना और कंट्रोल रूम बनाकर मॉनिटर करना है. यह योजना कार्यरत है और नया स्मार्ट सिटी प्रोजेक्ट के तहत इसे मर्ज किया गया है.

दूसरा सर्वोच्च न्यायालय के निर्देश पर सभी थानों में सीसीटीवी कैमरा लगाया जाना, जिससे थानों में कैदियों के मानवाधिकार की रक्षा हो सके, थाना परिसर में सुरक्षा हो, भ्रष्टाचार पर लगाम लगे. इसके तहत कार्यालय कक्ष में, थाने के हाजत में और परिसर में सीसीटीवी कैमरे लगाए गए हैं.

डीआईजी राजीव रंजन

900 थानों में लगाए जा चुके हैं सीसीटीवी कैमरे

927 थानों को चिन्हित किया गया है जहां पर सीसीटीवी कैमरे लगाए जाने हैं. इसमें से अब तक कुल 900 थानों में सीसीटीवी कैमरे लगाए जा चुके हैं और यह पूरी तरह से कार्यरत हैं. 27 थाने जहां पर अब तक सीसीटीवी कैमरे नहीं लग पाए हैं उनमें समस्या नए भवन की आ रही है. कुछ भवन तैयार हो चुके हैं लेकिन पुराने भवन में ही चल रहे हैं. जल्द ही बचे 27 थाने सीसीटीवी कैमरे से लैस होंगे.

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डीआईजी राजीव रंजन की मानें तो सभी थानों को निर्देश दिया गया है कि थानों में लगे कैमरे के सीसीटीवी फुटेज को 45 दिनों तक सुरक्षित रखना अनिवार्य है. ताकि अगर कोई थाने में घटना होती है, आवश्यकता पड़ने पर हम उस थाने से मंगवा कर देख कर अनुसंधान कर सकते हैं.

कुल मिलाकर कहें तो बिहार के थानों में पेपर लेस वर्क को लेकर काम चल रहा है. सुरक्षा को लेकर सीसीटीवी कैमरे भी लगाए जा रहे हैं. पर जिस तरह का कार्य होना चाहिए ता वह अबतक नहीं दिखा है. खैर कहते प्रयासरत रहने से सफलता जरूर मिलती है, और बिहार पुलिस भी कुछ ऐसा ही कर रही है. अब देखने वाली बात यह होगी कि कबतक पूर्ण सफलता मिलती है.

Last Updated :Nov 28, 2020, 1:53 PM IST

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