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सैम्युअल हैनीमेन होम्योपैथी के जनक नहीं, सिर्फ नया रूप दिया: डॉ. पारिक - World Homeopathy Day 2024

By ETV Bharat Uttar Pradesh Team

Published : Apr 10, 2024, 4:58 PM IST

सैम्युअल हैनीमेन होम्योपैथी चिकित्सा पद्धति के जनक नहीं, बल्कि उन्होंने होम्योपैथी को नया रूप दिया है. हमारे वेदों और ग्रंथों में इस पद्धति के बारे में पहले से ही जिक्र है. यह कहना है कि मशहूर चिकित्सक पदमश्री डॉ. राधे श्याम पारिक का. देखें विस्तृत खबर

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विश्व होम्योपैथी दिवस पर जानकारी देते पदमश्री डॉ. राधे श्याम पारिक.

आगरा/वाराणसी :विश्व होम्योपैथी दिवस पर ईटीवी भारत ने मशहूर होम्योपैथी के चिकित्सक पदमश्री डॉ. राधे श्याम पारिक (डॉ. आरएस पारिक) से एक्सक्लुसिव बातचीत की. उन्होंने कहा कि जिस तरह से होम्योपैथी अपना सफर तय कर रही है. इससे साफ है कि जल्द ही होम्योपैथी में भारत विश्व गुरु बनने वाला है. क्योंकि, मैं जिस होम्योपैथी की पढ़ाई के लिए लंदन गया था. आज इंग्लैंड, अमेरिका, रूस समेत कई देशों के डाॅक्टरों को होम्योपैथी की पढ़ाई करने आगरा आते हैं. होम्योपैथी जड़ से बीमारी का इलाज करती है. मैंने शिकागो सम्मेलन में कहा था कि होम्योपैथी के जनक सैम्युअल हैनिमेन नहीं हैं. इस पद्धति के बारे में हमारे वेदों और ग्रंथों में जिक्र है. सैम्युअल हैनिमेन ने होम्योपैथी को नया रूप दिया है.

विश्व होम्योपैथी दिवस.


बता दें, भारतीय होम्योपैथिक पद्धति को विश्व पटल पर 91 वर्षीय डॉ. आरएस पारीक ने नई पहचान दिलाई है. डाॅ. पारिक 21 वर्ष की उम्र में रॉयल कॉलेज ऑफ लंदन से होम्योपैथी पढ़ाई करके आगरा लौटे और एक छोटे से क्लीनिक से बेलनगंज में होम्योपैथी पद्धति से मरीजों का इलाज करना शुरू किया. साथ ही उन्होंने आगरा में कैंसर सहित अन्य बीमारियों का होम्योपैथी से इलाज किया और शोध किए. बीते सात दशक से डॉ. आरएस पारिक होम्योपैथी पद्धति से मरीजों का इलाज कर रहे हैं.


विश्व होम्योपैथी दिवस.

मूलतः राजस्थान के नवलगढ़ निवासी डॉ. आरएस पारिक का जन्म सन 1933 में हुआ था. उन्होंने महज 21 वर्ष की उम्र में आगरा के बेलनगंज में एक छोटे क्लीनिक से अपनी होम्याेपैथी की प्रैक्टिस शुरू की थी. वो समय ऐसा था, जब होम्योपैथी के बारे में लोग कम जानते थे. उन्होंने होम्योपैथी की दवाओं से चर्म रोग, कैंसर, गुर्दे समेत कई बीमारियों का इलाज किया. डॉ. आरएस पारीक बताते हैं कि हर पैथी का अपना महत्व है, मगर मेरे पास जो तमाम ऐसे मरीज आए. जिन्होंने होम्योपैथी पर विश्वास जताया.




लंदन से पढ़ाई की, आगरा में क्लीनिक खोला : पदमश्री डॉ. आरएस पारिक ने बताया कि लंदन में होम्योपैथी की वैज्ञानिक तरीके से पढ़ाई कराई जाती थी. इसलिए मैंने 1956 में रॉयल कॉलेज ऑफ लंदन से होम्योपैथी में ग्रेजुएशन किया. इसके बाद मुझे वहां पर ही अच्छी नौकरी मिल गई थी. पिता को नौकरी के बारे में बताया तो उन्होंने कहा था कि जब तुम वहां पर ही रहोगे तो मैं और आपकी मां आगरा में क्या करेंगी. इसलिए हम भी राजस्थान अपने गांव जा रहे हैं. इससे मुझे लगा कि पिता मेरे से नाराज हैं. इस पर मैंने अगले दिन ही प्लेन की टिकट लेकर आगरा आ गया था. यहां पर पहले क्लीनिक खोला. इसके बाद पारिक होम्योपैथिक रिसर्च सेंटर शुरू किया.


विदेशी चिकित्सकों को देते हैं ट्रेनिंग :पदमश्री डॉ. आरएस पारीक बताते हैं कि मैंने प्रैक्टिस के दौरान देखा कि देश और विदेश से मरीजों की संख्या को लेकर कैंसर, चर्म रोग सहित गंभीर और सामान्य बीमारियों पर भी शोध करना शुरू किया. हर बीमारी की केस स्टडी विदेशों में होने वाली कार्यशाला में प्रस्तुत की. भारतीय होम्योपैथी पद्धति से बेहतर उपचार करने की रिसर्च से दुनिया में इस पैथी को अलग पहचान मिली. जिससे ऐसा सिलसिला शुरू हुआ कि विदेश से होम्योपैथी पढ़ाई और प्रशिक्षण लेने को विदेशों से डॉक्टर्स उनके रिसर्च सेंटर पर आने लगे. आज होम्योपैथी की पढ़ाई के लिए लंदन, रूस, अमेरिका और अन्य देशों से डॉक्टर आते हैं. अपने रिसर्च सेंटर पर हर साल 50 विदेशी चिकित्सकों को होम्योपैथिक पद्धति से उपचार भी सिखाते हैं. डॉ. आरएस पारिक ने होम्योपैथिक से कैंसर का उपचार करने को लेकर जर्मन भाषा में पुस्तक लिखी है.


100 से ज्यादा रिसर्च पेपर प्रकाशित : पदमश्री डॉ. आरएस पारीक बताते हैं कि मैं भारत से पानी के जहाज से इंग्लैंड पढ़ने गया था. सन 1956 में होम्योपैथी में स्नातक की उपाधि प्राप्त की. इसके बाद सन 1957 में लंदन में अपनी पहली विश्व कांग्रेस में भाग लिया. इसके बाद से अब तक विदेशों के सम्मेलनों में करीब 117 से अधिक मूल शोध और केस स्टडी पेपर प्रस्तुत किए हैं. सरकारी विश्वविद्यालय से चिकित्सा के लिए मानद डीएससी (कॉसा ऑनोरिस) प्राप्त करने वाले एकमात्र होम्योपैथ चिकित्सक हूं. साथ ही टुबिंगन, जर्मनी में हैनिमैन पुरस्कार सहित असंख्य पुरस्कार और सम्मान मिला है. पेरिस में विश्व सम्मेलन में होम्योपैथिक प्रैक्टिस में उनकी 60वीं हीरक जयंती के लिए विशेष सम्मान, कई मीडिया हाउसों द्वारा सिटीजन ऑफ द ईयर पुरस्कार से नवाजा जा चुका है. इस साल केंद्र सरकार ने पदमश्री से सम्मानित किया है.





पदमश्री डॉ. आरएस पारिक के परिवार में तीन बेटियां और डॉ. आलोक पारिक और डॉ. राजू पारिक बेटा है. डॉ. आलोक पारिक इंटरनेशनल होम्योपैथी संघ के पहले भारतीय अध्यक्ष रहे हैं. जबकि, डॉ. राजू पारिक प्रसिद्ध सर्जन हैं. बड़े पौत्र डॉ. प्रशांत पारिक सर्जन हैं. छोटे पौत्र डॉ. आदित्य पारिक होम्योपैथिक चिकित्सक हैं. डॉ. आदित्य पारिक अमेरीका से प्रकाशित होने वाले द होम्योपैथी फिजिशियन जर्नल के सम्पादकीय मंडल के सदस्य हैं. उनकी दोनों पौत्र वधुएं प्रियंका पारिक और नितिका पारिक भी चिकित्सक हैं.


डॉक्टर की मुस्कान से बीमारी हो जाती है छू मंतर : डॉ. आरएस पारिक कहते हैं कि डॉक्टर की एक मुस्कान से मरीज की आधी बीमारी गायब हो जाती है. डॉक्टर के प्रेम से मरीज का हाल पूछने भर से मरीज खुद को दुरुस्त समझने लगता है. डॉ. आरएस पारिक ने मरीजों से आत्मीय रिश्ता बनाया है. दुनिया के लगभग सभी प्रमुख देशों में व्याख्यान के लिए आमंत्रित किए जा चुके. उन्हें देश के साथ ही विदेश में भी कई सम्मानों से नवाजा जा चुका है.


पुस्तक में अनुभव का पिटारा समेटा : डॉ. आरएस पारिक ने बताया कि मैंने अपनी प्रैक्टिस के दौरान में इलाज के साथ ही रिसर्च पर भी जोर दिया. मैंने रिसर्च के रिजल्ट देश और दुनियां में आयोजित कांफ्रेंस में सबसे सामने रखे. अपने रिसर्च और अनुभव को होम्योपैथी फॉर एक्यूट्स एंड इमरजेंसीज पुस्तक में लिखा है. ये पुस्तक मेरी पूरी जिंदगी की मेहनत का निचोड़ है. जिसमें ब्रेन हैमरेज, बेहोशी, उल्टी दस्त, मानसिक विकार, एक्यूट पेन, किडनी व लीवर से संबंधित बीमारी व जोड़ों में दर्द से निजात के तरीके बताए गए हैं. साथ ही कौन सी दवा मरीजों को फायदा करेगी. इस विषय में भी बताया गया है. ये पुस्तक बेस्ट सेलर बुक हैं.


इन भ्रांतियों से रहें दूर :वाराणसी मंडल की होम्योपैथी मुख्य चिकित्सा अधीक्षक डाॅ. नीरज वर्मा बताती हैं कि हम लोग 10 अप्रैल को डॉ. क्रिश्चियन फ्रेडरिक सैमुअल हैनिमैन का 269वां जन्मदिवस मना रहे हैं. यह विश्व होम्योपैथी दिवस के रूप में मनाया जाता है. अगर हम बात करें लोगों में होम्योपैथी को लेकर फैली भ्रांतियों की तो हमारी पैथी बहुत ही सहज और सरल है. लोगों में जो भ्रांतियां थीं कि यह मीठी गोली है, इससे कैसे बीमारी ठीक होगी. वह अब धीरे-धीरे दूर हो रही है. लोगों का झुकाव दिनों-दिन होम्योपैथी की तरफ बढ़ता जा रहा है. हमारे बनारस मंडल में 15, जौनपुर में 40, चंदौली में 21 और गाजीपुर में 27 होम्योपैथिक की सरकारी डिस्पेंसरी हैं. यहां रोजाना मरीजों की संख्या में बढ़ोतरी होती जा रही है.


साध्य-असाध्य दोनों ही रोगों का होता है इलाज :वाराणसी जिला होम्योपैथी चिकित्साधिकारी डाॅ. रचना श्रीवास्तव बताती हैं कि होम्योपैथिक में असाध्य-साध्य रोगों का कोई बंटवारा नहीं है. इसमें दोनों ही तरीके की बीमारियों का इलाज बहुत ही सक्षम तरीके से होता है. असाध्य बीमारियों में मोटापा, इंफर्टिलिटी, कैंसर, यूटीआई, पीसीओडी समेत कई तरीके की बीमारियां हैं, जिनको लोग समझते हैं कि होम्योपैथी से ठीक नहीं हो सकती हैं, मगर जैसे-जैसे परिणाम आ रहे हैं हमें दिख रहा है कि मरीज ठीक हो रहे हैं और संतुष्ट हो रहे हैं. इनफर्टिलिटी भी असाध्य रोग माना जा रहा है, लेकिन हम लोगों ने आजमाया है कि इसमें भी होम्योपैथी का रोल बहुत ही अच्छा निकलकर आ रहा है. चाहे वह फैलोपियन ट्यूब में ब्लॉकेज हो रहा हो या पीसीओडी हो रही है, यूटीआई और स्ट्रेस की वजह से भी कभी-कभी महिलाओं में इनफर्टिलिटी पाई जा रही है, जो ठीक हो जाती है. इनफर्टिलिटी, मिस्कैरेज, अबॉर्शन, कंसीव करने समेत कई तरह के ट्रीटमेंट होम्योपैथी में हैं.






होम्योपैथी की दवाओं को लेकर भ्रांतियां और सच


- इसका इलाज सहज और सरल है. इसके कोई साइड इफेक्ट नहीं होते हैं.
- ये दवाएं समय से काम करती हैं. पुराने रोगों को ठीक करने में थोड़ा समय लगता है.
- इसका असर पूरे शरीर पर होता है. आजकल लोगों में ग्लैमर का चस्का है इस वजह से इन दवाओं पर भरोसा नहीं करते हैं.
- होम्योपैथी की दवाओें में किसी हैवी मेटल या स्टेरॉयड का प्रयोग नहीं होता है.
- इसकी लिक्विड और गोली दोनों की दवाएं समान होती हैं.
- इन दवाओं से किडनी के स्टोन भी ठीक किए जाते हैं. ये पेट के इलाज में भी काम आती हैं.
- होम्योपैथी की दवाएं सिर्फ चर्म रोग या पेट के लिए ही नहीं बल्कि असाध्य रोगों के इलाज में भी सहायक होती हैं.





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