वाराणसी :आध्यात्मिक शहर बनारस को शिक्षा की राजधानी के रूप में जाना जाता है. यहां पर सर्व विद्या की राजधानी के रूप में स्थापित अलग-अलग भाषाओं के शिक्षण संस्थान भी संचालित होते हैं. सबसे बड़ी बात यह है कि आज भी वाराणसी में सदियों पुरानी गुरुकुल परंपरा कायम है. बनारस की संकरी गलियों में सनातन धर्म की एक पहचान रखने वाले गुरुकुल का संचालन अभी भी किया जाता है. ऐसे ही कुछ गुरुकुल में संस्कृत, वेदांग और संगीत की शिक्षा के लिए छात्राएं आती हैं. संस्कृत के प्रति लड़कियों का रुझान जबरदस्त है. काशी के गुरुकुल में पढ़ने वाली लड़कियां अपने भविष्य के साथ सनातन धर्म के प्रति भी काफी संवेदनशील हैं. शायद यही वजह है कि यहां शिक्षा लेने वाली छात्राएं डॉक्टर, इंजीनियर, आईएएस, आईपीएस बनने की इच्छा के साथ पंडित, पुरोहित, कथावाचक और भागवताचार्य भी बनना चाहती हैं. गुरुकुल में इसकी शिक्षा भी दी जा रही है. लड़कियां भी अपने भविष्य को कथावाचक और बड़े-बड़े भागवत आचार्य बने के लिए समर्पित करती दिखाई दे रही हैं.
द्वापर हो या त्रेता, हर युग में संस्कृत-शिक्षा के लिए गुरुकुल की परंपरा को महत्व दिया जाता रहा है. इसी गुरुकुल परंपरा के क्रम में आज भी वाराणसी के शिवाला क्षेत्र में श्री अनन्दा देवी कन्या गुरुकुल पाठशाला में बच्चियों के भविष्य को संवारने के लिए संस्कृत और वेद के साथ संगीत की शिक्षा दी जाती है. आधुनिक शिक्षा का भी यहां पर प्रबंध है.
संस्कृत की पाठशाला में गुरुकुल परंपरा को आगे बढ़ा रहीं इन लड़कियों को अपना भविष्य किसी मल्टीनेशनल कंपनी या किसी सरकारी नौकरी में नहीं बल्कि सनातन धर्म के प्रचार-प्रसार को आगे बढ़ाने में दिखाई दे रहा है. मध्य प्रदेश की रहने वाली अंतरा यहां पर संस्कृत की शिक्षा ले रहीं हैं. पिता भी नौकरी में हैं, लेकिन सनातन संस्कृति को आगे बढ़ाने के लिए अंतरा ने यहां पर एडमिशन लिया.
अंतरा के मन में डॉक्टर बनने का सपना है, लेकिन शिक्षा ग्रहण करने के दौरान वेद और संस्कृति की तरफ उसका रुझान उसे कथावाचक बनाने की तरफ भी लेकर जा रहा है. अंतरा का कहना है कि हमारी सनातन संस्कृति को अगर हम नहीं समझेंगे तो कौन समझेगा. अगर शिक्षा ग्रहण करने के बाद हम यह काम करते हैं तो हमारी जीविका भी अच्छे से चलेगी और तेजी से सनातन का प्रचार-प्रचार भी होगा.