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गोल्डन ऑर में इलाज मिल जाए तो बढ़ सकती है स्ट्रोक से ठीक होने की संभावना

By ETV Bharat Hindi Team

Published : Feb 28, 2024, 7:41 PM IST

Golden Hour Treatment For Stroke Cases : स्ट्रोक की गंभीरता तथा उसके जानलेवा या आजीवन विकलांग करने वाले प्रभावों के बारे में ज्यादातर लोग जानते हैं. लेकिन चिकित्सकों की माने तो यदि स्ट्रोक की गंभीरता के आधार पर पहले एक , छः या 24 घंटों में पीड़ित को सही इलाज मिल जाए तो पीड़ित के ठीक होने की संभावना को बढ़ाया जा सकता है. पढ़ें पूरी खबर..

Golden Hour Treatment
Golden Hour Treatment

हैदराबाद :हाल ही में तथाकथित तौर पर स्वस्थ व सक्रिय जीवनशैली का पालन करने वाले फिनटेक कंपनी जिरोथा के फाउंडर नितिन कामथ को पहले स्ट्रोक आने व फिर ह्रदयघात होने की घटना ने आमजन को युवा आबादी में बढ़ती इन जटिल जानलेवा आपात समस्याओं को लेकर चेताया है. जानकारों की मानें तो पहले के समय में स्ट्रोक के ज्यादातर मामले 50 वर्ष से ज्यादा आयु वाले लोगों में ही देखने में आते थे. लेकिन पिछले कुछ सालों में खराब जीवनशैली, खानपान में गड़बड़ी, कोमोरबीटी के बढ़ते मामले, अलग-अलग कारणों से हर उम्र के लोगों में बढ़ता तनाव तथा जरूरी मात्रा में या सही तरीके से आराम व स्वास्थ्य देखभाल में कमी सहित बहुत से कारणों के चलते कम आयु वाले लोगों में भी स्ट्रोक के मामले देखने में आ रहे हैं. गौरतलब है कि हाल ही में प्रसिद्ध अभिनेता मिथुन चक्रवर्ती भी स्ट्रोक के शिकार हो गए थे.

कहते हैं शोध व आंकड़े
वर्ष 2018 में स्ट्रोक इंडिया की एक रिपोर्ट में कहा गया था कि स्ट्रोक युवा आबादी में मृत्यु दर का तीसरा सबसे बड़ा कारण और बीमारी की दर का चौथा सबसे बड़ा कारण बन गया है. रिपोर्ट में कहा गया था कि विकसित देशों के मुकाबले भारत जैसे विकासशील देशों में युवा आबादी (25 से 40 की उम्र वाले) में स्ट्रोक के मामले ज्यादा देखने में आ रहे हैं. वहीं पिछले साल ग्लोबल बर्डन ऑफ डिजीज (जीबीडी) की एक रिपोर्ट में कहा गया था कि स्ट्रोक के कुल मामलों में भारत में सबसे ज्यादा मामले (हर साल लगभग 2 लाख ) देखने में आते हैं. जिनमें से लगभग 31% मामले युवाओं में देखने में आ रहे हैं. गौरतलब है कि भारत में स्ट्रोक को मृत्यु का चौथा सबसे बड़ा कारण माना जाता है.

क्यों होता है स्ट्रोक
चिकित्सकों के अनुसार स्ट्रोक एक जानलेवा स्थिति है. दरअसल कई बार किसी दुर्घटना-चोट, अवस्था या समस्या के कारण मस्तिष्क के किसी हिस्से में पर्याप्त मात्रा में रक्त प्रवाह नहीं हो पाता है या बाधित हो जाता है. ऐसे में उस क्षेत्र में ऑक्सीजन की कमी होने लगती है जिसके कारण प्रभावित मस्तिष्क कोशिकाएं ठीक से काम करना बंद कर देती हैं. यह स्ट्रोक का कारण बनता है. स्ट्रोक को कारणों के आधार पर दो प्रकार का माना जाता है, इस्केमिया तथा रक्तस्रावी स्ट्रोक.

इनमें इस्केमिया उस अवस्था को माना जाता है जब रक्त के थक्के या थ्रोम्बस के चलते मस्तिष्क में रक्त वाहिकाएं अवरुद्ध हो जाती हैं. यह उच्च रक्तचाप, उच्च कोलेस्ट्रॉल या टाइप 2 मधुमेह सहित कई चिकित्सीय अवस्थाओं के कारण हो सकता है. इसके अलावा कई बार संक्रमण या मस्तिष्क में टीबी, कुछ आटोइम्यून रोग, मेटाबोलिक विकार तथा महिलाओं में प्रसव के उपरांत उत्पन्न कुछ विशेष परिस्थितियां भी स्ट्रोक का कारण बन सकती हैं. स्ट्रोक के कुल मामलों में से लगभग 80% इस्केमिक स्ट्रोक के मामले होते होते हैं.

वहीं रक्तस्रावी स्ट्रोक वह अवस्था है जब मस्तिष्क में रक्त वाहिका के फटने या क्षतिग्रस्त होने के कारण बहुत ज्यादा रक्तस्राव होने लगता है.

क्या कहते हैं चिकित्सक
गोवा के न्यूरो चिकित्सक डॉक्टर एंटोनियो फेगुरेडो के अनुसार मस्तिष्क क्षति के तुरंत बाद का एक घंटा ,सुनहरा घंटा या गोल्डन ऑर कहलाता है. क्योंकि इस घंटे में यदि रोगी को जरूरी उपचार मिल जाए तो स्ट्रोक के प्रभावों को काफी हद तक नियंत्रण में किया जा सकता है. वहीं स्ट्रोक के बाद की रिकवरी स्ट्रोक की गंभीरता के साथ, उसके कारणों व पीड़ित की आयु सहित कुछ अन्य कारणों के चलते अलग-अलग हो सकती है. जैसे आमतौर पर 50 साल से कम आयु वालों में स्ट्रोक से रिकवरी में कम समय लगता है. वहीं अगर स्ट्रोक मेजर हो और उसके चलते लकवे ने शरीर के बड़े हिस्से को प्रभावित किया हो तो कई बार रिकवरी में लंबा समय लग सकता है. वहीं स्ट्रोक की गंभीरता के आधार पर कभी-कभी जनहानि के साथ मरीज आजीवन विकलांगता का शिकार भी बन सकता है.

स्ट्रोक की गंभीरता को लेकर जागरूकता फैलाने के उद्देश्य से एम्स दिल्ली की न्यूरोलॉजिस्ट डॉ. प्रियंका सहरावत ने भी अपने इंस्टाग्राम अकाउंट परस्ट्रोक के खतरे और इससे बचाव के उपायों से जुड़ी जानकारी सांझा की है. जिसमें उन्होंने स्ट्रोक को हमारे देश की सबसे प्रमुख न्यूरोलॉजिकल इमरजेंसी हेल्थ कंडीशन बताया है. उनके अनुसार स्ट्रोक के लिए उम्र व लिंग आदि जैसे गैर-परिवर्तनीय जोखिम कारकों के साथ विशेषतौर पर युवाओं में धूम्रपान व शराब का ज्यादा सेवन, उच्च कोलेस्ट्रॉल , तैलीय आहार व जंक फूड का ज्यादा सेवन , मोटापा , शारीरिक निष्क्रियता, मधुमेह तथा उच्च रक्तचाप विशेष जोखिम होते हैं.

कैसे रखें सेहत का ध्यान

  1. चिकित्सकों के अनुसार किसी भी उम्र में स्वास्थ्य कारणों के चलते होने वाले स्ट्रोक से बचने के लिए स्वास्थ्य देखभाल तथा कुछ बातों का ध्यान रखना फायदेमंद हो सकता है. जैसे ..
  2. ह्रदयरोग, मधुमेह, ओबेसिटी, उच्च रक्तचाप तथा कोलेस्ट्रॉल से पीड़ित लोगों में स्ट्रोक होने की आशंका अपेक्षाकृत ज्यादा होती हैं, इसलिए इन समस्याओं से पीड़ित लोग अपने स्वास्थ्य की नियमित मॉनिटरिंग रखें. जैसे समय-समय पर स्वास्थ्य जांच करवाते रहे तथा दवा, आहार व दिनचर्या को लेकर चिकित्सक के निर्देशों का पालन करें.
  3. धूम्रपान व शराब से दूरी बनाकर रखें.
  4. आहार में ज्यादा तैलीय, मसालेदार, प्रोसेस्ड़ फूड, ज्यादा शक्कर व प्रिजरवेटिव वाले आहार व पेय पदार्थ से परहेज करें या उनका कम से कम मात्रा में सेवन करें.
  5. जहां तक संभव हो ताजा व दालों, साबुत अनाज व हरी सब्जियों से भरपूर आहार का सेवन करें. तथा अपने खानपान में फलों तथा बेहद नियंत्रित मात्रा में कुछ विशेष सूखे मेवों को शामिल करें को शामिल करें.
  6. जरूरी मात्रा में व्यायाम, योग व ध्यान को दिनचर्या में शामिल करें.
  7. काम या किसी भी अन्य कारण से होने वाले स्ट्रेस या तनाव, जरूरत से ज्यादा चिंता तथा अवसाद से बचें. सोने के समय व आदतों को सही करें.

स्ट्रोक होने पर क्या करें
स्ट्रोक के लक्षणों को समझने के लिए चिकित्सक ‘BE FAST’ फार्मूला के बारे में ज्यादा से ज्यादा जागरूकता फैलाने की बात कहते हैं. दरअसल मस्तिष्क में होने वाली किसी भी प्रकार की क्षति या स्ट्रोक के प्रभाव या लक्षण हमारे शरीर के विभिन्न अंगों पर अलग-अलग नजर आने लगते हैं. BE FAST फार्मूला उन्हीं पर आधारित है. इस फार्मूले की व्याख्या चिकित्सक इस प्रकार करते हैं.

  1. B- बैलेंस- शरीर का बैलेंस या संतुलन बनाए रखने में समस्या.
  2. E- आइज- देखने में अचानक से परेशानी होना.
  3. F-फेस- चेहरे के एक तरफ के हिस्से का सुन्न हो जाना, लटक जाना या लकवा मार जाना.
  4. A-आर्म्स- हाथों-पैरों में ज्यादा कमजोरी महसूस करना या उनका सुन्न पड़ जाना.
  5. S- स्पीच- बोलने में कठिनाई होना.
  6. T- टाइम- इन लक्षणों के नजर आते ही तत्काल चिकित्सक को दिखाना या अस्पताल जाना बेहद जरूरी है.

ज्ञात हो कि स्ट्रोक का इलाज पिछले कुछ सालों में लगातार बेहतर हुआ है. एडवांस ट्रीटमेंट से आज के समय में स्ट्रोक का सफल इलाज संभव है बशर्ते स्ट्रोक के तत्काल बाद यानी गोल्डन ऑर (एक घंटे का समय ) में या माइल्ड स्ट्रोक की अवस्था में पहले 6 से 24 घंटों के समय में पीड़ित को सही इलाज मिल जाए. वहीं यदि स्ट्रोक के इलाज में देरी हो जाए तो पीड़ित को आजीवन विकलांगता या कई बार मृत्यु का सामना भी करना पड़ सकता है.

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