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कोई व्यक्ति सिर्फ एक व्यक्ति नहीं, बल्कि पूरी किताब है -सुधा मूर्ति

By ETV Bharat Rajasthan Team

Published : Feb 4, 2024, 8:59 PM IST

जयपुर लिटरेचर फेस्टिवल में सुधा मूर्ति ने अपने जीवन के कई पहलुओं पर खुलकर बात की. उन्होंने कहा कि वह कोई आध्यात्मिक गुरु नहीं बल्कि एक सिंपल पर्सन हैं, जो विभिन्न सिचुएशंस को ऑब्जर्व करते हुए लिखती हैं.

जयपुर लिटरेचर फेस्टिवल में सुधा मूर्ति
जयपुर लिटरेचर फेस्टिवल में सुधा मूर्ति

जयपुर लिटरेचर फेस्टिवल में सुधा मूर्ति

जयपुर.कोई व्यक्ति सिर्फ एक व्यक्ति नहीं, बल्कि पूरी किताब है, जिनसे कुछ सीखा जा सकता है. ये कहना है इंफोसिस फाउंडेशन की अध्यक्ष, समाजसेवी और लेखिका सुधा मूर्ति का. जेएलएफ के चौथे दिन कॉमन यट अनकॉमन सेशन में सुधा मूर्ति ने अपनी लाइफ के बारे में बताते हुए कहा कि "उन्हें लोगों के बारे में जानना अच्छा लगता है. वो जिन लोगों से मिलीं, उनसे काफी कुछ सीखने को मिला. दो लोगों के बीच यदि लड़ाई हो रही है, तो वो भी एक सिचुएशन है, जिसे ऑब्जर्व किया जा सकता है. जिस दिन वो ये ऑब्जर्व करना छोड़ देंगी, उसी दिन बूढ़ी हो जाएंगी."

जयपुर लिटरेचर फेस्टिवल के चारबाग में हुए सत्र में मेरु गोखले से बात करते हुए सुधा मूर्ति ने अपने जीवन के कई पहलुओं पर खुलकर बात की. उन्होंने कहा कि वह कोई आध्यात्मिक गुरु नहीं बल्कि एक सिंपल पर्सन हैं, जो विभिन्न सिचुएशंस को ऑब्जर्व करते हुए लिखती हैं. उन्हें ये जानने में दिलचस्पी रहती है कि दो लोग आपस में झगड़ क्यों रहे हैं. वो शादियों में जाकर नोटिस करती हैं कि दो लड़का-लड़की, एक दूसरे को कैसे देखते हैं. ये सभी अनुभव उन्होंने अपनी किताब में भी साझा किए हैं, हालांकि किताब के आखिरी हिस्से में उनकी नारायण मूर्ति से मुलाकात का किस्सा सच्चा नहीं है.

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बताई इंजीनियर बनने की कहानी : सुधा मूर्ती ने बताया कि वो खुश या उदास होने पर नहीं लिखती. पढ़ने वालों को सिर्फ कहानियां बताना चाहती हैं, इसलिए लिखती हैं. सुधा मूर्ति अपने पति नारायण मूर्ति और दामाद ऋषि सुनक के बारे में सवाल न पूछने की बात कही. साथ ही अपने बचपन के दिनों को याद करते हुए कहा कि जब छोटी थी तब इंजीनियर बनना चाहती थी. इसे लेकर अपने पिता से बात की, तो उन्होंने इस संबंध में किसी से सजेशन मांगा. तो उसने कहा कि हर साल 800 इंजीनियर बनते हैं, ये मत करवाओ, लेकिन उनके पिता ने उन्हें आगे बढ़ाया. इसके बाद वो इंजीनियर बनने के साथ ही टाटा कंपनी की पहली महिला इंजीनियर बनी. ये अवसर देने के लिए उन्होंने रतन टाटा का आभार भी जताया.

सुधा मूर्ती ने कहा कि उनकी लाइफ में दो रिग्रेट हैं, एक तो उन्हें स्विमिंग नहीं आती, क्योंकि जिस क्षेत्र से वो आती हैं वहां पीने का पानी भी कम है, ऐसे में स्विमिंग की सोचना तो बेमानी है. दूसरा उन्हें खेल और योग बहुत पसंद हैं, लेकिन वो कभी इसमें पार्टिसिपेट नहीं कर पाईं, जबकि योग, स्पोर्ट्स और स्विमिंग व्यक्ति के लाइफ के स्ट्रेस को कम करता है, इसलिए उन्होंने श्रोताओं को सजेस्ट किया कि उन्हें तो समय मिल नहीं पाया, लेकिन वो अपने लिए समय निकालकर बच्चे बनकर खेलना शुरू कर दें.

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