छपरा: जब मन में ठान लिया है ऊंची उड़ान का, फिर देखना बेफिजूल है कद आसमां का. छपरा जिले की सात वर्दी वाली बहनें, आज बेटियों के लिए किसी मिसाल से कम नहीं हैं. इन बेटियों के साथ-साथ इनके माता-पिता भी काबिले-तारीफ हैं, क्योंकि उन्होंने कभी इन बेटियों को बोझ नहीं समझा, बल्कि उन्हें पढ़ा-लिखा कर इस काबिल बनाया कि आज बिहार पुलिस की वर्दी उनकी शान बढ़ा रहा है.
7 वर्दी वाली बहनों की कहानी: आज भी कुछ ऐसे घर हैं, जहां बेटी का जन्म होता है तो माहौल गमगीन हो जाता है, लोगों को उनके भरण-पोषण की चिंता सताने लगती है. लेकिन छपरा जिले के एकमा के रहने वाले कमल सिंह ने एक या दो नहीं बल्कि सात बेटियों को जन्म दिया. जिसके बाद उन्हें समाज के ताने-बाने सुनने को मिलने लगे. उनके रिश्तेदार उन्हें खरी-खोटी सुनाते थे. बेटियों को अभिशाप कहते थे.
बेटियों के साथ गांव छोड़ने पर मजबूर: काफी सुनने के बाद उन्होंने अपनी बेटियों के साथ सारण जिले के मांझी थाना क्षेत्र के नाचाप का पैतृक घर छोड़ दिया और छपरा के एकमा में बस गए. उस वक्त उनकी परिस्थिति काफी नाजुक थी. सही से खाने का भी नहीं हो पाता था, लेकिन उनका सपना था कि बेटियों को काबिल बनाना है. बेटियों के लालन पालन के लिए आटा चक्की खोली. खूब मेहनत कर इन बच्चियों को अपने पैरों पर खड़ा किया.
एक-दूसरे की गाइड बनीं बहनें: वर्ष 2006 में बड़ी बहन का सशस्त्र सीमा बल (एसएसबी) में कांस्टेबल पद पर चयन हो गया, जिसके बाद अन्य बहनों का हौसला बढ़ा. दूसरी बहन रानी शादी के बाद 2009 में बिहार पुलिस में कांस्टेबल चुन ली गईं. इसके बाद अन्य पांच बहनें भी विभिन्न बल में नियुक्त हो गईं. बहनें ही एक-दूसरे की शिक्षक और गाइड बनीं. गांव के ही स्कूल में पढ़ीं, और मैदान में जाकर दौड़ की प्रैक्टिस भी करती थी.
एक-एक कर बिहार पुलिस में सातों बेटियां: हालांकि इस बीच भी कई लोगों और रिश्तेदारों ने बेटियों के हाथ पीले करने की बात कही, लेकिन ना तो पिता ने उनकी बातों पर ध्यान दिया और ना उनकी जिद्दी बेटियों ने हार मानी. सभी ने आखिरकार अपने मेहनत और लगन से उस मुकाम को हासिल कर लिया और समाज के लोगों को ये दिखा दिया कि बेटियां अभिशाप नहीं बल्कि वरदान होती हैं.
एक बेटी की हो चुकी है मृत्यु: कमल सिंह ने बताया कि उन्हें सात नहीं आठ बेटियां थी. पहले 5 बेटियां होने के बाद उन्हें दो जुड़वा बेटी हुई. फिर एक बेटा हुआ जिसके बाद एक और सबसे छोटी बेटी हुई. लेकिन एक बेटी की किसी कारणवश मौत हो गई. सभी को उन्होंने शिद्दत के साथ पाला-पोसा और पढ़ाया. किसी को कभी ये एहसास नहीं होने दिया कि वह बोझ हैं.
'अभिशाप नहीं वरदान हैं बेटियां':कमल सिंह की सातों बेटियां उनके लिए वरदान बनीं और इन बेटियों ने अपने मेहनत के बदौलत सबकी बोलती बंद कर दी. बता दें कि सातों बेटियों ने एसएसबी, जीआरपी, बिहार पुलिस, सीआरपीएफ, एक्साइज पुलिस में भर्ती होकर अपने पिता का मान बढ़ाया है. कमल सिंह ने कहा कि"मुझे तिरछी टोपी काफी अच्छी लगती थी. ऊपर वाले की कृपा से मेरी सभी बेटियां आज इस टोपी को पहनने के लायक हो गई हैं."