उत्तराखंड

uttarakhand

जर्नलिस्ट से ब्यूरोक्रेसी के सबसे बड़े पद तक का सफर, राधा रतूड़ी के लिए आसान नहीं थी राह, पति रहे हैं उत्तराखंड DGP

By ETV Bharat Uttarakhand Team

Published : Jan 30, 2024, 1:55 PM IST

Updated : Jan 31, 2024, 12:13 PM IST

Success story of IAS Radha Raturi उत्तराखंड की नई मुख्य सचिव बनने जा रहीं राधा रतूड़ी एक लंबे सफर को तय करते हुए ब्यूरोक्रेसी के इस सबसे बड़े पद तक पहुंच रही हैं. पत्रकारिता से शुरू हुआ उनका सफर इंडियन इंफॉर्मेशन सर्विस और इंडियन पुलिस सर्विस के बाद इंडियन एडमिनिस्ट्रेटिव सर्विस तक पहुंचा है. मूल रूप से मध्य प्रदेश की रहने वाली राधा रतूड़ी महिला एवं बाल विकास को लेकर बेहद ज्यादा गंभीर रही हैं और इस क्षेत्र में उन्होंने अधिकतम काम करने का प्रयास भी किया. राधा रतूड़ी का मुख्य सचिव पद तक पहुंचने का कैसा रहा सफर. जानिए ईटीवी भारत की इस रिपोर्ट में...

RADHA RATURI
राधा रतूड़ी

देहरादून:अपर मुख्य सचिव राधा रतूड़ी उत्तराखंड में ब्यूरोक्रेसी के सबसे बड़े पद पर पहुंचने को लेकर चर्चाओं में हैं. लेकिन राधा रतूड़ी का मुख्य सचिव पद तक पहुंचने का यह सफर इतना आसान नहीं था. मूल रूप से मध्य प्रदेश के जबलपुर की रहने वालीं राधा श्रीवास्तव (शादी के बाद राधा रतूड़ी) पत्रकारिता के क्षेत्र में अपना भविष्य तलाशना चाहती थीं. अपनी स्कूलिंग पूरी करने के बाद राधा रतूड़ी ने मुंबई में पोस्ट ग्रेजुएशन मास कम्युनिकेशन से किया. पत्रकारिता के क्षेत्र में भविष्य तलाश रहीं राधा रतूड़ी ने इंडियन एक्सप्रेस बॉम्बे में ट्रेनिंग ली, जबकि इसके बाद इंडिया टुडे मैगजीन में भी उन्होंने काम किया. साल 1985 के दौरान अपनी पोस्ट ग्रेजुएशन करने और फिर पत्रकारिता के क्षेत्र में हाथ आजमाने के दौरान ही उनके जीवन में टर्निंग प्वाइंट उस समय आया, जब उनके पिता ने उन्हें सिविल सर्विस में जाने की सलाह दी.

राधा रतूड़ी का जर्नलिस्ट से ब्यूरोक्रेसी के सबसे बड़े पद तक का सफर.

सबसे पहले आईआईएस में हुआ सिलेक्शन: राधा रतूड़ी के पिता सिविल सर्विस में ही थे. उनके पिता बीके श्रीवास्तव आईआरएस हैं. लिहाजा, वह चाहते थे कि उनकी बेटी राधा भी सिविल सर्विस में जाए. अपने पिता की सलाह को मानते हुए उन्होंने यूपीएससी की तैयारी कर इस परीक्षा को देने का फैसला लिया. इस तरह राधा रतूड़ी ने सिविल सर्विस की परीक्षा देते हुए इंडियन इंफॉर्मेशन सर्विस (आईआईएस) में सिलेक्शन पाने में कामयाबी हासिल की. साल 1985-86 के दौरान ही उनका चयन होने के बाद उन्हें नियुक्ति लेने के लिए दिल्ली जाना था. राधा रतूड़ी दिल्ली भी आईं, लेकिन उन्हें दिल्ली का माहौल कुछ पसंद नहीं आया. करीब 22 साल की उम्र में सिविल सर्विस की परीक्षा क्रैक करने के बाद जब उनका मन दिल्ली में नहीं लगा तो उन्होंने एक बार फिर यूपीएससी की परीक्षा देने का फैसला लिया. अगले ही प्रयास में राधा रतूड़ी ने इंडियन पुलिस सर्विस (आईपीएस) में जगह बनाने में कामयाबी हासिल कर ली.

आईएएस से पहले रह चुकी हैं आईपीएस: साल 1987 में वह आईपीएस में चयनित होने के बाद हैदराबाद में ट्रेनिंग के लिए आईं, जहां उनकी मुलाकात 1987 बैच के ही आईपीएस अनिल रतूड़ी से हुई. मुलाकात प्यार में बदल गई और फिर बात शादी तक भी जा पहुंची. इस दौरान इंडियन पुलिस सर्विस में बार-बार होने वाले तबादलों के कारण दोनों को ही अपनी तैनाती के लिए अलग-अलग रहना पड़ा. इसके बाद फिर राधा रतूड़ी के पिता ने बेटी को आईएएस के लिए प्रयास करने की सलाह दी.

आईएएस से पहले आईआईएस, आईपीएस भी रह चुकी हैं राधा रतूड़ी

1988 में मिली आईएएस के रूप में कामयाबी: साल 1988 में राधा रतूड़ी ने इंडियन एडमिनिस्ट्रेटिव सर्विस (आईएएस) का हिस्सा बनने में भी कामयाबी हासिल कर ली. राधा रतूड़ी ने देहरादून के मसूरी में ट्रेनिंग ली. अब एक तरफ राधा रतूड़ी आईएएस अधिकारी हो चुकी थीं और उनके पति आईपीएस अधिकारी के तौर पर जिम्मेदारी देख रहे थे. आईपीएस अनिल रतूड़ी उत्तर प्रदेश में तैनाती पर थे तो वहीं मध्य प्रदेश बैच की टॉपर होने के कारण राधा रतूड़ी को मध्य प्रदेश कैडर मिला. इस तरह दोनों के सामने अलग-अलग राज्य में तैनाती को लेकर बड़ी चुनौती थी. ऐसे में राधा रतूड़ी ने उत्तर प्रदेश कैडर में जाने का प्रयास शुरू कर दिया. शादी के बाद करीब एक साल तक अलग-अलग राज्यों में तैनाती देने के बाद आखिरकार राधा रतूड़ी को उत्तर प्रदेश कैडर मिल गया.

चार राज्यों में दी सेवाएं:राधा रतूड़ी ने देश के चार राज्यों में अपनी सेवाएं दी हैं. इंडियन एडमिनिस्ट्रेटिव सर्विस में चयन के बाद उज्जैन में अपनी प्रशासन की ट्रेनिंग ली. मध्य प्रदेश में काम करने के बाद अपने कैडर चेंज होने पर उन्हें उत्तर प्रदेश के बरेली में पोस्टिंग मिली. इसके बाद उन्होंने उत्तर प्रदेश में विभिन्न जिम्मेदारियां को देखा. इसी दौरान आईपीएस अनिल रतूड़ी के नेशनल पुलिस अकादमी हैदराबाद में जाने पर राधा रतूड़ी ने स्टडी लीव लेने का फैसला लिया. जबकि इसके बाद वह प्रतिनियुक्ति पर आंध्र प्रदेश में भी पोस्टिंग लेकर उन्होंने दो साल जॉइंट सेक्रेटरी के रूप में काम किया. साल 1999 में वह वापस उत्तर प्रदेश आ गईं. लेकिन इसके बाद 9 नवंबर 2000 को उत्तराखंड अलग राज्य के रूप में स्थापित हुआ, जिसके बाद राधा रतूड़ी ने उत्तराखंड कैडर ले लिया.

ब्यूरोक्रेसी के सबसे बड़े पद पर तैनात राधा रतूड़ी

अक्सर मंचों पर लोकगीतों के साथ रही राधा की जुगलबंदी: राधा रतूड़ी को शुरू से ही पढ़ने लिखने का बड़ा शौक था और इसके अलावा लोकगीतों में भी उनकी बेहद रुचि रही है. उत्तराखंड में तमाम मंचों पर वह गढ़वाली और कुमाऊंनी गीत गाती हुई भी नजर आई हैं. इसके अलावा सोशल मीडिया पर भी उनके लोकगीत गाते हुए वीडियो वायरल हुए हैं. पढ़ने लिखने के अपने इसी शौक के कारण मुंबई में अपने कॉलेज करने के दौरान वह कॉलेज मैगजीन और एडिटोरियल क्षेत्र में भी सक्रिय रहीं.

टिहरी विस्थापितों के लिए निभाई अहम भूमिका: राधा रतूड़ी ने उत्तर प्रदेश और उत्तराखंड में कई जिलों में जिलाधिकारी के तौर पर काम देखा है. इतना ही नहीं, उत्तराखंड में करीब 10 साल तक उन्होंने चीफ इलेक्टोरल ऑफिसर के तौर पर भी काम किया है. टिहरी विस्थापन के दौरान उनके फैसलों ने टिहरी विस्थापितों को बहुत मदद दी. इसके अलावा उत्तर प्रदेश में उन्होंने दिव्यांगजनों के लिए भी कई प्रयास किए. इतना ही नहीं, राधा रतूड़ी उत्तराखंड में लड़कियों की शिक्षा और उनके बेहतर कार्यों के लिए व्यक्तिगत रूप से भी वित्तीय मदद करती रही हैं. राधा रतूड़ी का टिहरी के हिंडोलाखाल में ससुराल है.

Last Updated : Jan 31, 2024, 12:13 PM IST

ABOUT THE AUTHOR

...view details