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नीचे उफनती नदी-कंधों पर बीमार महिला, जान जोखिम में डाल 28 किलोमीटर पैदल चले ग्रामीण

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Published : May 13, 2019, 1:36 PM IST

उत्तरकाशी के पुरोला तहसील के सरगांव में प्राथमिक उपचार केंद्र न होने के चलते मरीज के साथ तीमारदारों को भी जान जोखिम में डालकर बड़कोट जाना पड़ा.

बदहाल स्वास्थ्य व्यवस्था.

पुरोला: उत्तरकाशी की पुरोला तहसील के सरगांव में स्वास्थ्य व्यवस्था की हालत बेहद बदहाल है. घाटी में कोई प्राथमिक उपचार केंद्र तक नहीं है, जिसके चलते गांव की एक महिला को अचानक पेट में दर्द होने पर उसे 28 किलोमीटर चलकर बड़कोट स्वास्थ्य केंद्र ले जाना पड़ा.

महिला को कंधे पर बैठाकर स्वास्थ्य केंद्र ले जाते युवा.

बड़कोट तक जाने के लिए मरीज के साथ-साथ तीमारदारों को भी अपनी जान जोखिम में डालनी पड़ी. जैसे-तैसे लकड़ी के पुल से उफनती नदी को पार करना पड़ा.

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बता दें कि पुरोला तहसील के सरगांव की प्रार्थना नाम की महिला के पेट में अचानक दर्द उठा. घाटी में कोई प्राथमिक उपचार केंद्र नहीं था. जल्दी-जल्दी लकड़ी का एक स्ट्रेचर बनाया गया और ग्रामीणों ने महिला को उसपर बैठाया. पथरीले और फिसलते रास्तों से होते हुये, उफनती नदी को पार कर बमुश्किल महिला को बड़कोट पहुंचाया गया. लेकिन बड़कोट से भी महिला को देहरादून के लिए रेफर कर दिया गया.

गौरतलब है कि बड़ियार गांव में कुछ ही दिन पहले ग्रमीणों द्वारा लकड़ी के डंडों से बनाए गए इस अस्थायी पुल पर पैर फिसलने से एक ग्रामीण की मौत हो गई थी. बावजूद इसके शासन-प्रशासन इस ओर कोई ध्यान नहीं दे रहा है.

Intro:यक़ीन मानिये ये उसी सूबे की तस्बीर है जो अभी 18 वर्ष का हुआ है। यहां अभी भी आमजन अधिकांश इलाकों में जीने की जद्दोजहद करते नज़र आयेंगे। यह चलचित्र अपने प्रदेश उत्तराखंड का ही है..जहाँ इस आधुनिकता के दौर में अभी भी लोग आदम युग में जिने को मजबुर है ।और सरकारें उडनखटोलों में मस्त , इलाज़ तो छोड़ो इलाज़ पाने के लिये भी जोख़िम मरीज़ के साथ तीमारदारों को भी उठाना पड़ता है। मरीज़ की जान बचाने के लिये जो जद्दोजहद करनी पड़ती है उसमें किसकी जान चली जाय कोई अंदाज़ नहीं। मरीज़ की जान बचाने के लिये मरीज़ के तीमारदारों को भी जान जोख़िम में डालनी पड़ती है।

Body:वीओ१-जनपद उत्तरकाशी की पुरोला तहसील के सर बडियार घाटी के सरगांव की प्रार्थना धर्मपत्नी जय प्रकाश को पेट में भारी दर्द हुआ । घाटी मे कोई प्राथमिक उपचार की व्यवस्था न होने के कारण गांव के युवा उसकी जान बचाने के लिये उन्हें घने जंगलों और उफनती बड़ियाड़ गाड़ पर ग्रमीणों द्वारा बनाये गये अस्थाई पुल से गुजरते हुये ग्रमीण बड़कोट स्वास्थ्य केंद्र तक किसी तरह से ले तो आये लेकिन वहा भी उन्हें देहरादून के लिए रैफर कर दिया गया है ।

गौर तलब है कि इसी बड़ियाड़ गाड़ में कुछ ही दिन पहले ग्रमीणों द्वारा लकड़ी के डंडों से बनाए गए इस अस्थाई पुल पर पैर फिसलने से एक ग्रामीण अपनी जान गंवा चुका है। Conclusion:वीओ३-

ईटिवी भारत ,उत्तरकाशी जनपद की सर बड़ियार घाटी की समस्याओ को प्रमुखता से उठाता रहा है। किंतु हालातो में सुधार के लिए ग्रमीणों को कितना और इंतजार करना पड़ेगा ये बताने को सरकारें तैयार नहीं। कहीं के लिये एयर एम्बुलेंस और कहीं बीमार को अस्पताल पहुँचने के लिये पुल तक नहीं सड़क की बात करना ही बेमानी है।
नोट -- विडियो एक्सकुलुसिव

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