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पर्यावरणविदों ने की उच्च हिमालयी क्षेत्रों में आवाजाही पर प्रतिबंध लगाने की मांग

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Published : Feb 16, 2021, 7:17 AM IST

Updated : Feb 16, 2021, 10:12 AM IST

पर्यावरणविद ग्लेशियर लेडी शांति ठाकुर का कहना है कि जिस प्रकार की आपदा ऋषिगंगा में आई है, यह प्रदेश सरकार और वैज्ञानिकों की कार्यशैली पर सवाल खड़ा करती है. उन्होंने कहा कि हिमालय क्षेत्रों में इतने छेद कर दिए गए हैं कि आज वह बर्फ का भार भी नहीं झेल सकते हैं.

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पर्यावरणविद

उत्तरकाशी: चमोली आपदा के बाद पर्यावरणविदों ने इसे हिमालय के साथ छेड़छाड़ बताते हुए आगामी भविष्य में और भी विकराल आपदा से प्रदेश सरकार को चेताया है. पर्यावरणविदों ने प्रदेश सरकार से मांग की है कि हिमालय नीति को बनाने में स्थानीय पर्यावरणविदों को स्थान दिया जाए. वह वास्तव में हिमालय को जानते हैं. साथ ही पर्यावरणविद और पर्यावरणविद ग्लेशियर लेडी शांति ठाकुर ने गौमुख और उच्च हिमालय क्षेत्र में मानव की आवाजाही व हस्तक्षेप को पूर्ण प्रतिबंधित करने की मांग की है.

पर्यावरणविदों ने की उच्च हिमालयी क्षेत्रों में आवाजाही पर प्रतिबंध लगाने की मांग.

पर्यावरणविद ग्लेशियर लेडी शांति ठाकुर का कहना है कि जिस प्रकार की आपदा ऋषिगंगा में आई है, यह प्रदेश सरकार और वैज्ञानिकों की कार्यशैली पर सवाल खड़ा करती है. उन्होंने कहा कि हिमालय क्षेत्रों में इतने छेद कर दिए गए हैं कि आज वह बर्फ का भार भी नहीं झेल सकते हैं. इसलिए उच्च हिमालयी क्षेत्रों में मानव के हस्तक्षेप का नतीजा हम केदारनाथ, उत्तरकाशी और पिथौरागढ़ में देख चुके हैं. उन्होंने कहा कि वह 25 वर्षों से हिमालय के साथ छेड़छाड़ नहीं करने की अपील कर रही हैं. लेकिन आज स्थिति यह है कि प्रदेश सरकार स्थानीय पर्यावरणविदों को हिमालय नीति बनाने में स्थान नहीं दे रही है.

पढ़ें: एम्स निदेशक ने लगवाई कोविड वैक्सीन की दूसरी डोज, 2 माह और रह सकता है कोरोना का असर

पर्यावरणविद सुरेश का कहना है कि उत्तरकाशी जनपद में भी 2010 से 2017 तक हिमालय किसी न किसी रूप में विकराल हो रहा है. लेकिन उसके बाद भी उच्च हिमालय क्षेत्रों के ग्लेशियरों और झीलों पर आज तक अध्ययन नहीं हो पाया है. उन्होंने कहा कि नवनिर्मित हिमालय में जिस प्रकार से बड़े-बड़े बांध बनाए जा रहे हैं. वह हिमालय को खोखला कर रहे हैं. इसलिए इन बड़ी परियोजनाओं के स्थान पर छोटी-छोटी ऊर्जा योजनाओं को विकसित करना चाहिए.

उत्तरकाशी: चमोली आपदा के बाद पर्यावरणविदों ने इसे हिमालय के साथ छेड़छाड़ बताते हुए आगामी भविष्य में और भी विकराल आपदा से प्रदेश सरकार को चेताया है. पर्यावरणविदों ने प्रदेश सरकार से मांग की है कि हिमालय नीति को बनाने में स्थानीय पर्यावरणविदों को स्थान दिया जाए. वह वास्तव में हिमालय को जानते हैं. साथ ही पर्यावरणविद और पर्यावरणविद ग्लेशियर लेडी शांति ठाकुर ने गौमुख और उच्च हिमालय क्षेत्र में मानव की आवाजाही व हस्तक्षेप को पूर्ण प्रतिबंधित करने की मांग की है.

पर्यावरणविदों ने की उच्च हिमालयी क्षेत्रों में आवाजाही पर प्रतिबंध लगाने की मांग.

पर्यावरणविद ग्लेशियर लेडी शांति ठाकुर का कहना है कि जिस प्रकार की आपदा ऋषिगंगा में आई है, यह प्रदेश सरकार और वैज्ञानिकों की कार्यशैली पर सवाल खड़ा करती है. उन्होंने कहा कि हिमालय क्षेत्रों में इतने छेद कर दिए गए हैं कि आज वह बर्फ का भार भी नहीं झेल सकते हैं. इसलिए उच्च हिमालयी क्षेत्रों में मानव के हस्तक्षेप का नतीजा हम केदारनाथ, उत्तरकाशी और पिथौरागढ़ में देख चुके हैं. उन्होंने कहा कि वह 25 वर्षों से हिमालय के साथ छेड़छाड़ नहीं करने की अपील कर रही हैं. लेकिन आज स्थिति यह है कि प्रदेश सरकार स्थानीय पर्यावरणविदों को हिमालय नीति बनाने में स्थान नहीं दे रही है.

पढ़ें: एम्स निदेशक ने लगवाई कोविड वैक्सीन की दूसरी डोज, 2 माह और रह सकता है कोरोना का असर

पर्यावरणविद सुरेश का कहना है कि उत्तरकाशी जनपद में भी 2010 से 2017 तक हिमालय किसी न किसी रूप में विकराल हो रहा है. लेकिन उसके बाद भी उच्च हिमालय क्षेत्रों के ग्लेशियरों और झीलों पर आज तक अध्ययन नहीं हो पाया है. उन्होंने कहा कि नवनिर्मित हिमालय में जिस प्रकार से बड़े-बड़े बांध बनाए जा रहे हैं. वह हिमालय को खोखला कर रहे हैं. इसलिए इन बड़ी परियोजनाओं के स्थान पर छोटी-छोटी ऊर्जा योजनाओं को विकसित करना चाहिए.

Last Updated : Feb 16, 2021, 10:12 AM IST
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