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देवभूमि, जहां एक मंच पर दिखती हैं अलग-अलग संस्कृतियां

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Published : Feb 7, 2019, 3:00 PM IST

Updated : Feb 7, 2019, 8:10 PM IST

लोसर के अवसर पर पहले दिन दीपावली और दूसरे दिन दशहरा और तीसरे दिन आटे की होली खेली जाती है. इन दिनों भोटिया समुदाय के लोग लोसर को धूमधाम से मना रहे हैं.

लोसर त्योहार पर नृत्य करतीं महिलाएं

उत्तरकाशी: उत्तराखंड को यूं ही देवभूमि नहीं कहा जाता है. यहां भौगोलिक विषमताओं के साथ ही सांस्कृतिक विषमताएं भी खूब देखने को मिलती हैं. जनपद उत्तरकाशी में भी एक त्योहार ऐसा है जहां एक मंच पर दो अलग-अलग संस्कृतियां देखी जा सकती हैं. हम बात कर रहे हैं, जाड़ समुदाय के लोसर त्योहार की. जो आजकल जाड़ समुदाय के लोग वीरपुर डुंडा में मना रहे हैं.

बता दें, लोसर के अवसर पर पहले दिन दीपावली और दूसरे दिन दशहरा और तीसरे दिन आटे की होली खेली जाती है. इन दिनों भोटिया समुदाय के लोग लोसर को धूमधाम से मना रहे हैं. देश-विदेश के हर कोने में रहने वाला जाड़ समुदाय का व्यक्ति इस त्योहार के लिए घर पहुंचता है. उत्तरकाशी के जाड़ समुदाय के लोग बगोरी गांव में रहते हैं और सर्दियों में यह लोग वीरपुर डुंडा आ जाते हैं. लोसर पर्व को यह बौद्ध पंचांग के अनुसार ये नववर्ष के रूप में मनाते हैं.

उत्तरकाशी में चल रहा है लोसर त्योहार.

पढ़ें- नगर पालिका में तेल भरवाने के नाम पर हो रहा था घोटाला, पार्षद के स्टिंग के बाद समाने आई सच्चाई

पहले दिन जाड़ समुदाय के लोग लकड़ी के छिलके जलाकर भेला के रूप में उन्हें एक स्थान पर जलाकर पुराने साल की सारी बुराई को समाप्त करते हैं. लोसर के दूसरे दिन जाड़ समुदाय के सभी लोग रिंगाली देवी मंदिर में एकत्रित हुए. जहां पर मां रिंगाली की भोगमूर्ति को अपने भेंट देते हैं. और उनका आशीर्वाद लेते हैं. इस अवसर पर महिलाएं ढोल-दमाऊं की थाप पर लोक गीतों के साथ लोकनृत्य रासो तांदी लगाती हैं. वहीं, इस मौके पर कोई भी पुरुष नृत्य नहीं करता है, बल्कि महिलाएं जमकर झूमती हैं.

लोसर के तीसरे दिन बौद्ध पंचांग के अनुसार आटे की होली खेली जाती है, तो कि इको फ्रेंडली त्यौहार मनाने का संदेश भी देता है. जाड़ समुदाय का कोई भी व्यक्ति इस होली पर रंग या गुलाल का प्रयोग नहीं करता, बल्कि सभी आटे को एक दूसरे पर लगाकर शुभकामनाएं देते हैं. शायद ही ऐसी संस्कृति कहीं देखने को मिलेगी. जहां, बौद्ध सहित हिन्दू और पहाड़ी संस्कृति एक साथ देखने को मिलती है.

उत्तरकाशी: उत्तराखंड को यूं ही देवभूमि नहीं कहा जाता है. यहां भौगोलिक विषमताओं के साथ ही सांस्कृतिक विषमताएं भी खूब देखने को मिलती हैं. जनपद उत्तरकाशी में भी एक त्योहार ऐसा है जहां एक मंच पर दो अलग-अलग संस्कृतियां देखी जा सकती हैं. हम बात कर रहे हैं, जाड़ समुदाय के लोसर त्योहार की. जो आजकल जाड़ समुदाय के लोग वीरपुर डुंडा में मना रहे हैं.

बता दें, लोसर के अवसर पर पहले दिन दीपावली और दूसरे दिन दशहरा और तीसरे दिन आटे की होली खेली जाती है. इन दिनों भोटिया समुदाय के लोग लोसर को धूमधाम से मना रहे हैं. देश-विदेश के हर कोने में रहने वाला जाड़ समुदाय का व्यक्ति इस त्योहार के लिए घर पहुंचता है. उत्तरकाशी के जाड़ समुदाय के लोग बगोरी गांव में रहते हैं और सर्दियों में यह लोग वीरपुर डुंडा आ जाते हैं. लोसर पर्व को यह बौद्ध पंचांग के अनुसार ये नववर्ष के रूप में मनाते हैं.

उत्तरकाशी में चल रहा है लोसर त्योहार.

पढ़ें- नगर पालिका में तेल भरवाने के नाम पर हो रहा था घोटाला, पार्षद के स्टिंग के बाद समाने आई सच्चाई

पहले दिन जाड़ समुदाय के लोग लकड़ी के छिलके जलाकर भेला के रूप में उन्हें एक स्थान पर जलाकर पुराने साल की सारी बुराई को समाप्त करते हैं. लोसर के दूसरे दिन जाड़ समुदाय के सभी लोग रिंगाली देवी मंदिर में एकत्रित हुए. जहां पर मां रिंगाली की भोगमूर्ति को अपने भेंट देते हैं. और उनका आशीर्वाद लेते हैं. इस अवसर पर महिलाएं ढोल-दमाऊं की थाप पर लोक गीतों के साथ लोकनृत्य रासो तांदी लगाती हैं. वहीं, इस मौके पर कोई भी पुरुष नृत्य नहीं करता है, बल्कि महिलाएं जमकर झूमती हैं.

लोसर के तीसरे दिन बौद्ध पंचांग के अनुसार आटे की होली खेली जाती है, तो कि इको फ्रेंडली त्यौहार मनाने का संदेश भी देता है. जाड़ समुदाय का कोई भी व्यक्ति इस होली पर रंग या गुलाल का प्रयोग नहीं करता, बल्कि सभी आटे को एक दूसरे पर लगाकर शुभकामनाएं देते हैं. शायद ही ऐसी संस्कृति कहीं देखने को मिलेगी. जहां, बौद्ध सहित हिन्दू और पहाड़ी संस्कृति एक साथ देखने को मिलती है.

Intro:उत्तरकाशी। पहाड़ो की देवसंस्कृति अपनी एक अलग पहचान रखती है। ऐसी ही एक देवसंस्कृति,जिसमें दो सभ्यताएं संस्कृति एक ही मंच पर देखने को मिलती है। जहाँ एक साथ तीन त्यौहार मानाये जाते हैं। हम बात कर रहे हैं, जाड़ समुदाय के लोसर त्यौहार की। जो आजकल जाड़ समुदाय के लोग वीरपुर डुंडा में मना रहे हैं। लोसर के अवसर पर पहले दिन दीपावली और दूसरे दिन दशहरा और तीसरे दिन आटे की होली खेली जाती है। इन दिनों भोटिया समुदाय के लोग लोसर को धूमधाम से मना रहे हैं। देश विदेश के हर कोने में रहने वाला जाड़ समुदाय का व्यक्ति इस त्यौहार के लिए घर पहुंचता है।



Body:वीओ-1, उत्तरकाशी के जाड़ समुदाय के लोग बगोरी गांव में रहते हैं और सर्दियों में यह लोग वीरपुर डुंडा आ जाते हैं। लोसर पर्व को यह बौद्ध पंचांग के अनुसार यह नववर्ष के रूप में मनाते हैं। पहले दिन जाड़ समुदाय के लोग लकड़ी के छिलके जलाकर भेला के रूप में उन्हें एक स्थान पर जलाकर पुराने वर्ष की सारी बुराई को समाप्त करते हैं। लोसर के दूसरे दिन जाड़ समुदाय के सभी लोग रिंगाली देवी मंदिर में एकत्रित हुए। जहां पर माँ रिंगाली की भोगमूर्ति को अपने भेंट देते हैं। और उनका आशीर्वाद लेते हैं। इस अवसर पर महिलाएं ढोल दमाऊं की थाप पर लोक गीतों के साथ लोकनृत्य रासो तांदी लगाती हैं। वहीं इस मौके पर कोई भी पुरुष नृत्य नहीं करता है। बल्कि महिलाएं जमकर झूमती हैं।


Conclusion:वीओ- 2, लोसर के तीसरे दिन बौद्ध पंचांग के अवसर पर आटे की होली खेली जाती है। तो कि ईको फ्रेंडली त्यौहार मनाने का संदेश भी देता है। जाड़ समुदाय का कोई भी व्यक्ति इस होली के अवसर पर रंग या गुलाल का प्रयोग नहीं करता है। बल्कि सभी आटे को एक दूसरे पर लगाकर शुभकामनाएं देते हैं। शायद ही ऐसी संस्कृति कहीं देखने को मिलेगी। जहां बोद्ध सहित हिन्दू और पहाड़ी संस्कृति एक साथ देखने को मिलती है। बाईट- गोपाल नेगी,ग्रामीण। बाईट- नारायण सिंह,ग्रामीण। पीटीसी- विपिन नेगी।
Last Updated : Feb 7, 2019, 8:10 PM IST
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