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टिहरी डैम से मैदानी इलाकों को नहीं बाढ़ का खतरा, आपदा को नियंत्रित करता है बांध- अधिशासी निदेशक जोशी

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Published : Jul 18, 2023, 3:21 PM IST

अक्सर उत्तराखंड के मैदानी इलाकों में ऐसी चर्चा होती है कि टिहरी डैम से बाढ़ आएगी और सब कुछ डूब जाएगा. टिहरी डैम के अधिशासी निदेशक ने इन चर्चाओं पर विराम लगा दिया है. अधिशासी निदेशक एलपी जोशी ने कहा कि टिहरी डैम के कारण ही मैदानी इलाके बाढ़ से बचे हैं.

Tehri Dam
टिहरी डैम

टिहरी: इन दिन उत्तराखंड में मूसलाधार बारिश हो रही है. पहाड़ से निकले पानी ने हरिद्वार को डूबो दिया है. ऐसे में मैदानी इलाकों के लोग डरे हुए हैं कि कहीं टिहरी डैम से आपदा ना आ जाए. ऐसे आशंकाओं को टिहरी बांध परियोजना के अधिशासी निदेशक ने खारिज किया है. टिहरी डैम के अधिशासी निदेशक ने कहा कि टिहरी बांध परियोजना आपदा के समय बाढ़ रोकने का काम करता है. मैदानी इलाकों में टिहरी डैम से कोई खतरा नहीं है.

भारत का सबसे लंबा रॉकफिल डैम: टिहरी डैम की ऊंचाई 855 फीट है. यह रॉकफिल डैम है और भारत का सबसे लंबा बांध है. दुनिया में लंबाई में इसका 12वां नंबर है. ये डैम 42 वर्ग किलोमीटर तक झील फैला हुआ है. इसका निर्माण 12 जुलाई 1988 से शुरू हुआ था. 2006 में टिहरी डैम की पहली टनल को बंद किया गया था. टिहरी झील का जलस्तर 784 आरएल मीटर है. आज 24 घंटे में 5 से 6 मिलियन यूनिट बिजली पैदा कर रहा है.

टिहरी बांध के होते हुए मैदान में बाढ़ का खतरा नहीं: अधिशासी निदेशक का कहना है कि टिहरी डैम से मैदानी क्षेत्रों में किसी भी तरह कोई खतरा नहीं है. क्योंकि टिहरी बांध की झील का जलस्तर 874 आरएल मीटर से लेकर 830 आरएल मीटर तक भरने में 44 से 90 मीटर का जल भराव होना बाकी है. जिसे भरने में एक महीने से अधिक का समय लगेगा. टिहरी डैम से मैदानी क्षेत्रों में किसी भी तरह कोई खतरा नहीं है. क्योंकि पहाड़ों में लगातार बारिश होने के बावजूद भी आपदा आती है तो फिर भी टिहरी डैम मैदानी क्षेत्रों में बाढ़ रोकने का काम करता है. इसलिए टिहरी डैम से मैदानी क्षेत्रों में बाढ़ आने का कोई खतरा नहीं है.

ये है पुनर्वास का हाल: वहीं टिहरी बांध परियोजना के अधिशासी निदेशक एलपी जोशी ने टिहरी झील के आसपास बसे गांवों के पुनर्वास के मामले में कहा कि उत्तराखंड सरकार ने एक शपथ पत्र दिया है. इसमें शहरी पुनर्वास 100% कर लिया गया है. ग्रामीण पुनर्वास करीब 99.5% कंप्लीट हो चुका है. जो छूटे हुए परिवार हैं, उनके विस्थापन के लिए भारत सरकार और उत्तराखंड सरकार ने एक संपार्श्विक क्षति नीति बनाई है. एक ज्वाइंट एक्सपर्ट कमेटी बनी है. कमेटी रिपोर्ट देती है और उसके आधार पर ऐसा लगता है कि टिहरी झील के कारण कोई क्षति हुई है तो उसका भुगतान संपार्श्विक क्षति नीति के अनुसार किया जाता है.

विस्थापन के लिए सरकार द्वारा पुनर्वास निदेशालय बनाया गया है, जो प्रभावितों का पुनर्वास करता है. टिहरी बांध परियोजना सिर्फ पुनर्वास विभाग को विस्थापित करने के लिए धन उपलब्ध कराती है. जब पुनर्वास निदेशालय धनराशि की डिमांड करता है, उसके बाद टीएचडीसी धनराशि देती है. टीएचडीसी ने प्रथम चरण में 100 करोड़ रुपए पुनर्वास निदेशालय को दिये हैं. उससे पहले दूसरे चरण में ₹90 करोड़ पुनर्वास निदेशालय को दिये हैं, जिसका उपयोग पुनर्वास निदेशालय द्वारा किया जाएगा.
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टिहरी झील से प्रभावित भलड़गांव के ग्रामीणों का नीति के अनुसार विस्थापन होगा और उस आधार पर विस्थापन की कार्रवाई की जाएगी. वही टिहरी बांध परियोजना की झील को लेकर अधिशासी निदेशक एलपी जोशी ने कहा कि जब भी बड़ी आपदा की आशंका होती है तो टिहरी बांध की झील उस बड़ी आपदा को रोकने का बहुत बड़ा काम करती है. अगर टिहरी बांध नहीं होता तो भागीरथी घाटी में जब भी बड़ी आपदा आती है तो उस आपदा से मैदानी क्षेत्रों में भारी नुकसान होता. लेकिन टिहरी बांध मैदानी क्षेत्र में रह रहे लोगों के लिए वरदान साबित हुआ है.

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