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रुद्रप्रयाग के अगस्त्यमुनि महाविद्यालय 'टैबलेट घोटला', धड़ल्ले से बन रहे फर्जी बिल

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Published : Mar 24, 2022, 5:26 PM IST

रुद्रप्रयाग में राजकीय स्नातकोत्तर महाविद्यालय अगस्त्यमुनि के छात्र सरकार को पलीता लगाने का काम कर रहे हैं. छात्र सरकार को दुकानों से टैबलेट के फर्जी बिल बनवा रहे हैं. दुकानों में फर्जी बिल बनाने के लिए लाइन लगी है.

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रुद्रप्रयाग

रुद्रप्रयाग: राजकीय स्नातकोत्तर महाविद्यालय अगस्त्यमुनि में तकरीबन 2200 छात्रों को सरकार की ओर से निःशुल्क टैबलेट दिए जाने की महत्वाकांक्षी योजना पर फर्जी बिलों के जरिए योजना को पलीता लगाने की कोशिश की जा रही है, जिस प्रकार से इन दिनों धड़ल्ले से दुकानों में फर्जी बिल बनाने की लाइनें लगी हैं, उससे साफ है कि ढाई करोड़ से अधिक का भुगतान इन फर्जी बिलों से होने से सरकार को 45 लाख की जीएसटी कर का नुकसान उठाना पड़ेगा.

बता दें, प्रदेश की पिछली धामी सरकार ने अपने कार्यकाल समाप्त होने से पहले आनन-फानन में स्कूल और महाविद्यालयों में निःशुल्क टैबलेट बांटने की योजना बनाई थी लेकिन स्वयं खरीदने के बजाय प्रत्येक लाभार्थी बच्चों के खातों में ₹12 हजार ट्रांसफर कर दिए गए. लेकिन बच्चों ने इन्हें खरीदने में चालाकी दिखानी शुरू कर दी है, जिस पर सरकार ने विद्यालय स्तर पर जांच कमेटी बनाने के आदेश दिए हैं. लेकिन टेक्निकल एक्सपर्ट ना होने से जांच सही से नहीं हो पा रही है.

चुनाव आचार संहिता के बाद महाविद्यालयों में भी निःशुल्क टैबलेट बांटे जाने थे, जिस पर पहले शपथ पत्र और बिल लाने का फरमान जारी कर दिया गया. मगर यहां भी वही घपला सामने आ रहा है. छात्र बिना टैबलेट खरीद के बाजारों से बिल लगा रहे हैं. दुकानदारों के सामने भी बड़ी समस्या बिल देने की है, जबकि नियम के तहत छात्र को मिलने वाला पैसा शपथ पत्र और बिल जमा करने पर ही मिलेगा. ऐसे में दुकानदार भी एडवांस में बिल देकर रिस्क नहीं ले रहे हैं, जिस कारण छात्रों ने भी बीच का रास्ता निकाल लिया है. उन्होंने शार्टकर्ट के जरिये पैसा बनाने की स्कीम निकाली है.

दरअसल, कॉलेज के अधिकांश छात्रों के पास पहले से मोबाइल हैं, जिससे वो नया टैबलेट लेने में कंजूसी बरत रहे हैं और टैबलेट के एवज में मिलने वाली रकम को लेने का मोह नहीं त्याग पा रहे हैं, जिसके चलते वे बाजारों से फर्जी बिल ले रहे हैं. ये बिल राशन की दुकानों से लेकर डिजाइन करके बदले जा रहे हैं. कहीं-कहीं इन बिलों में जीएसटी ही नहीं है, तो कहीं आईएमईआई नंबर ही गायब है. अगर है भी तो वो पुराने मोबाइल का ही आईएमईआई नंबर चस्पा कर दिया गया है.
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ये बिल बड़ी आसानी से पांच सौ से लेकर दो हजार रूपये तक में बन रहे हैं. अब समस्या ये है कि महाविद्यालय प्रशासन जांच की बात तो कर रहा है लेकिन जीएसटी बिलों और आईएमईआई नंबर की सत्यता को लेकर उनके पास कोई टेक्निल एक्सपर्ट नहीं है. महाविद्यालय में टैबलेट जांच देख रहे प्रो बुद्धि बल्लभ त्रिपाठी (Professor Buddhi Ballabh Tripathi) ने बताया कि बिना जीएसटी और आईएमईआई नंबर वाले बिलों को स्वीकार नहीं किया जा रहा है. उन्होंने कहा कि 25 मार्च से इन बिलों की जांच शुरू होनी है. फर्जी पाए गए सभी बिलों को सख्ती से निरस्त कर दिया जाएगा.

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