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शारदीय नवरात्रि 2020: मां दुर्गा के शक्तिपीठ कालीमठ मंदिर में उमड़ी श्रद्धालुओं भी भीड़

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Published : Oct 17, 2020, 10:10 AM IST

कोरोना संकट के बीच आज से शारदीय नवरात्रि पर्व शुरू हो गया है. इस बार का शारदीय नवरात्र अत्‍यंत महत्‍वपूर्ण है, क्‍योंक‍ि इस बार पूरे 58 वर्षों के बाद शनि, मकर में और गुरु, धनु राशि में रहेंगे. इससे पहले ये योग वर्ष 1962 में बना था.

Shardiya Navratri 2020
शारदीय नवरात्रि 2020

रुद्रप्रयाग: शरादीय नवरात्रि का आज पहला दिन हैं. आज मां दुर्गा के पहले स्वरूप मां शैलपुत्री की पूजा हो रही है. मां दुर्गा के मंदिरों में भक्तों का तांता लगा हुआ है. देवभूमि के मंदिर आज मां दुर्गा के जयकारों से गूंज रहे हैं.

कोरोना काल के बीच आज शारदीय नवरात्रि का पहला दिन है. रुद्रप्रयाग में भी मां के मंदिरों को सजाया गया है. कोरोना संकट के बीच राज्य सरकार ने अनलॉक-5 में काफी रियायतें दी हैं. लोग सोशल डिस्टेंसिंग के साथ मां के दरबार में माथा टेक रहे हैं.

मां दुर्गा के शक्तिपीठ कालीमठ मंदिर में उमड़ी श्रद्धालुओं भी भीड़.

व्यापारी भी अपने प्रतिष्ठानों को सजाने में लगे हैं. मां की पूजा सामग्रियों को अपनी दुकानों के बाहर रख रहे हैं. उन्हें उम्मीद है कि कोरोना महामारी के कारण ठप पड़ा व्यवसाय इन शारदीय नवरात्रों में चल पड़ेगा और उनकी आर्थिकी सुधर पाएगी. रुद्रप्रयाग जिले में मां के तीन प्रसिद्ध मठ मंदिर हैं. जहां आज सुबह से भक्तों की भारी भीड़ देखने को मिल रही है.

कालीमठ मंदिर

मां शक्ति के 108 स्वरुपों में एक प्रसिद्ध शक्तिपीठ कालीमठ रुद्रप्रयाग जनपद में स्थित है. देवासुर संग्राम से जुड़ी यहां की ऐतिहासिक घटना में माता पार्वती ने रक्तबीज दानव के वध को लेकर कालीशिला का खास महत्व है. कालीमठ में मां दुर्गा दानव का वध कर जमीन के अंदर समा गई थी.

हिमालय में स्थित होने के कारण इस पीठ को गिरिराज पीठ के नाम से भी जाना जाता है. तंत्र साधना का यह सर्वोपरि स्थान माना जाता है. यहां पर मूर्ति पूजा का विधान नहीं है और न ही यहां देवी की कोई मूर्ति है. साथ ही यहां पर न ही कुछ ऐसे पद चिह्न हैं कि जिन्हें निमित मानकार पूजा की जा सके. मंदिर के गर्भ गृह में स्थित कुंडी की ही यहां पूजा की जाती है. इस धाम में अब बलिप्रथा बंद हो चुकी है और नारियल से ही माता की पूजा की जाती है.

रुद्रप्रयाग-गौरीकुण्ड राष्ट्रीय राजमार्ग के गुप्तकाशी से पहले कालीमठ-कविल्ठा मोटर मार्ग पर करीब 10 किमी की दूरी पर यह शक्ति पीठ है. जिसका उल्लेख केदारखंड, स्कन्द पुराण, देवी भागवत समेत कई पुराणों में मिलता है. मां काली, मां सरस्वती व मां लक्ष्मी की यहां पर पूजा होती है.

पढ़ें- शारदीय नवरात्रि 2020: मां मनसा देवी मंदिर में श्रद्धालुओं का लगा रेला, मां शैलपुत्री की हो रही पूजा

हरियाली देवी मंदिर

रुद्रप्रयाग के रानीगढ़ पट्टी के जसोली गांव स्थित सिद्धपीठ हरियाली देवी मंदिर में भी शारदीय नवरात्रों पर देश के विभिन्न कोने से भक्त पहुंचते हैं. मंदिर के पुजारी और स्थानीय भक्तों की ओर से मंदिर को सजाया गया है. हरियाली देवी योगमाया का बालस्वरूप है, जो कि शुद्ध स्वरूप में वैष्णवी हैं. देवी बच्छणस्यूं, चलणस्यूं, कंडारस्यूं व रानीगढ़ पट्टी सहित चार पट्टियों की कुलदेवी है.

हरियाल पर्वत मां हरियाली देवी का मूल उत्पत्ति स्थान है, जिसको देवी का मायका माना जाता है. जिसकी दूरी जसोली गांव से 10 किमी है. समुद्र तल से इसकी ऊंचाई 9500 फीट है. मूल मायका होने के कारण साल में एक बार धन तेरस दीपावली पर्व पर मां हरियाली की डोली को हरियाल पर्वत ले जाने की पौराणिक परंपरा है. जिसको हरियाली देवी कांठा यात्रा का स्वरूप दिया गया है.

मठियाणा देवी मंदिर

रुद्रप्रयाग जनपद स्थित मां मठियाणा देवी के मंदिर का इतिहास भी काफी रोचक है. प्राचीन लोक कथाओं के अनुसार मां मठियाणा सिरवाड़ी गढ़ के राजवंशों की धियान थी, जिसका विवाह भोट यानी तिब्बत के राजकुमार से हुआ था. सौतेली मां द्वारा कुछ लोगों की मदद से उसके पति कि हत्या कर दी जाती है. पति के मरने से आहत सहजा तिलवाड़ा सूरज प्रयाग में सती होने जाती है. तब यहीं से मां प्रकट होती है. देवी सिरवादी गढ़ में पहुंचकर दोषियों को दंड देती हैं और जन कल्याण के निमित यहीं वास करती हैं.

हर तीसरे साल सहजा मां के जागर लगते हैं, जिसमें देवी की गाथा का बखान होता है. यहां देवी का उग्र रूप है, बाद में यही रूप सौम्य अवस्था में मठियाणा खाल में स्थान लेती है. यहीं से मां मठियाणा का नाम जगत प्रसिद्ध होता है. मां के दर्शन कर पुण्य लाभ के लिए यहां खासकर नवरात्र पर भक्तों का जमावड़ा रहता है.

मठियाणा देवी माता शक्ति का काली रूप है और ये स्थान देवी का सिद्धि-पीठ भी है. यह भी कहा जाता है कि माता के अग्नि में सती होने पर भगवान शिव जब उनके शरीर को लेकर भटक रहे थे, तब माता सती का शरीर का एक भाग यहां गिरा. बाद में इस भाग माता मठियाणा देवी कहा गया.

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