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लिपुलेख दर्रे से भारत-चीन के बीच कम हो रहा स्थलीय व्यापार, कड़े व्यापारिक नियम बने वजह

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Published : Jun 21, 2019, 11:16 PM IST

लिपुलेख दर्रे से यानि 17,000 फीट ऊंचाई से होने वाले भारत-चीन स्थलीय व्यापार अब धीरे-धीरे कम हो रहा है. मुद्रा विनिमय, क्वारेंटाइन, यातायात की सुविधा ना होने और कड़े व्यापारिक नियमों से व्यापार लगातार सिकुड़ता जा रहा है. मुद्रा विनिमय की व्यवस्था ना होने से ये व्यापार वस्तु विनिमय के पुराने तरीके से ही होता आ रहा है. चीनी मुद्रा का अंतराष्ट्रीय मूल्य बढ़ने से आयात में लगातार कमी आ रही हैं. इतना ही नहीं चीन व्यापार पर साल दर साल प्रतिबंध लगा रहा है. जिससे भी व्यापारी व्यापार से दूरी बना रहे हैं.

लिपुलेख दर्रे से भारत-चीन के बीच कम हो रहा स्थलीय व्यापार

पिथौरागढ़: 17,000 फीट ऊंचाई पर स्थित लिपुलेख दर्रे से आयोजित होने वाला भारत-चीन स्थलीय व्यापार 9वीं शताब्दी से चला आ रहा है. इस व्यापार में दोनों ही देशों के हिमालयी इलाके के जनजातीय समाज के लोग व्यापार करते आ रहे हैं, लेकिन अब मुद्रा विनिमय, क्वारेंटाइन, यातायात की सुविधा ना होने और कड़े व्यापारिक नियमों के चलते ये व्यापार लगातार सिकुड़ता जा रहा है. उधर, चीन भी व्यापार पर साल दर साल प्रतिबंध लगा रहा है. जिससे व्यापारियों का मोहभंग हो रहा है. ऐसे में अब ये व्यापार खत्म होने की कगार पर है.

बता दें कि जून से सितंबर माह के बीच चार महीने तक लिपुलेख दर्रा भारत-चीन स्थलीय व्यापार के लिए खुला रहता है. यह व्यापार भारतीय मंडी गुंजी और तिब्बती मंडी तकलाकोट को व्यापार के लिए निर्धारित किया गया है. पिथौरागढ़ जिले की दारमा, व्यास, चौंदास और जौहार घाटी के लोग कई सालों से इस व्यापार के जरिये अपनी आजीविका चलाते आये हैं. साल 1962 के भारत-चीन युद्ध के बाद लंबे समय के लिए इस व्यापार पर प्रतिबंध लग गया था. जिसमें दोनों मुल्कों की सहमति के बाद 1992 में लिपुलेख दर्रे को व्यापार के लिए फिर से खोल दिया गया.

लिपुलेख दर्रे से भारत-चीन के बीच कम हो रहा स्थलीय व्यापार.

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इस व्यापार में दोनों ही देशों के हिमालयी इलाके के जनजातीय समाज के लोग व्यापार करते है. तिब्बती मंडी तकलाकोट पहुंचने के लिए भारतीय व्यापारियों को बेहद दुर्गम रास्तों से तकरीबन 85 किलोमीटर का सफर तय करना पड़ता है. वहीं, तिब्बत की मंडी तकलाकोट में भारतीय व्यापारी तो लगातार जाते रहे हैं, लेकिन भारत में बनाई गई गुंजी मंडी में केवल शुरुआती सालों में ही तिब्बती व्यापारी आए. अब गुंजी मंडी में तिब्बती व्यापारियों ने आना बंद कर दिया है.

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भारत और तिब्बत के जनजातीय समाजों के बीच पारंपरिक रूप से होने वाले इस व्यापार में भेड़-बकरियां, घोड़े-खच्चर, याक आदि जानवरों का व्यापार होता था, लेकिन जब दोबारा व्यापार खुला तो क्वारेंटाइन सुविधा यानी जानवरों में रोग की जांच की सुविधा नहीं होने के कारण जानवरों के व्यापार पर प्रतिबंध लग गया. अब इस व्यापार में केवल 29 वस्तुओं का निर्यात और 15 वस्तुओं का आयात ही किया जा सकता है. भारतीय व्यापारी भारत से चाय, कॉफी, माचिस, टिन के बॉक्स, एल्युमिनियम के बर्तन, रेडीमेड कपड़े आदि निर्यात और तिब्बत से चीनी जैकेट, कंबल, रजाई, याक की पूंछ, जूते ऊन जैसे समानों का आयात किया जाता है.

वहीं, अब मुद्रा विनिमय, क्वारेंटाइन और यातायात की सुविधा ना होने से व्यापार लगातार सिकुड़ता जा रहा है. मुद्रा विनिमय की व्यवस्था ना होने से ये व्यापार वस्तु विनिमय के पुराने तरीके से ही होता आ रहा है. उधर, चीनी मुद्रा का अंतरराष्ट्रीय मूल्य बढ़ने से आयात में लगातार कमी आ रही है. इतना ही नहीं चीन व्यापार पर साल दर साल प्रतिबंध लगा रहा है. जिससे भी व्यापारियों का मोहभंग हो रहा है.

Intro:पिथौरागढ़: 17,000 फीट ऊंचाई पर स्थित लिपुलेख दर्रे से आयोजित होने वाला भारत-चीन स्थलीय व्यापार नवीं शताब्दी से चला आ रहा है। जिले की दारमा, व्यास, चौंदास और जौहार घाटी के लोग शताब्दियों से इस व्यापार के जरिये अपनी आजीविका चलाते आये है।1962 के भारत-चीन युद्ध के बाद लंबे समय के लिए इस व्यापार पर प्रतिबंध लग गया था। दोनों मुल्कों की सहमति के बाद 1992 में लिपुलेख दर्रे को व्यापार के लिए फिर से खोल दिया गया।

जून से सितंबर माह के बीच चार महीने तक लिपुलेख दर्रा भारत-चीन स्थलीय व्यापार के लिए खुला रहता है। भारतीय मंडी गुंजी और तिब्बती मंडी तकलाकोट को व्यापार के लिए निर्धारित किया गया है। इस व्यापार में दोनों ही देशों के हिमालयी इलाके के जनजातीय समाज के व्यापारी शिरकत करते है। तिब्बती मंडी तकलाकोट पहुंचने के लिए भारतीय व्यापारियों को बेहद दुर्गम रास्तों से तकरीबन 85 किलोमीटर का सफर तय करना पड़ता है। तिब्बत की मंडी तकलाकोट में भारतीय व्यापारी तो लगातार जाते रहे है लेकिन भारत में बनाई गई गुंजी मंडी में केवल शुरुआती वर्षों में ही तिब्बती व्यापारी आये। अब गुंजी मंडी में तिब्बती व्यापारियों ने आना बंद कर दिया है।

भारत और तिब्बत के जनजातीय समाजों के बीच पारम्परिक रूप से होने वाले इस व्यापार में भेड़-बकरियां, घोड़े-खच्चर, याक इत्यादि जानवरों का व्यापार होता था। लेकिन जब दोबारा व्यापार खुला तो क्वारेंटाइन सुविधा यानी जानवरों में रोग की जांच की सुविधा नही होने के कारण जानवरों के व्यापार पर प्रतिबंध लग गया। अब इस व्यापार में केवल 29 वस्तुओं का निर्यात और 15 वस्तुओं का आयात ही किया जा सकता है। भारतीय व्यापारी भारत से चाय, कॉफी, माचिस, टिन के बॉक्स, एल्युमिनियम के बर्तन, रेडीमेड कपड़े इत्यादि लेकर जाते है, जबकि तिब्बत से चीनी जैकेट, कम्बल, रजाई, याक की पूंछ, जूते ऊन जैसे समान लेकर वापस लौटते है।

मुद्रा विनिमय, क्वारेंटाइन और यातायात की सुविधा ना होने से व्यापार लगातार सिकुड़ता जा रहा है। मुद्रा विनिमय की व्यवस्था ना होने से ये व्यापार वस्तु विनिमय के पुराने तरीके से ही होता आ रहा है। वहीं चीनी मुद्रा का अंतराष्ट्रीय मूल्य बढ़ने से आयात में लगातार कमी आ रही हैं। यही नही चीन द्वारा व्यापार पर साल दर साल लगाए जा रहे प्रतिबंधों से भी व्यापारियों का मोहभंग हो रहा है।

Byte: जगत मर्तोलिया, व्यापारी
Byte: विजय कुमार जोगदंडे, जिलाधिकारी, पिथौरागढ़


Body:पिथौरागढ़: 17,000 फीट ऊंचाई पर स्थित लिपुलेख दर्रे से आयोजित होने वाला भारत-चीन स्थलीय व्यापार नवीं शताब्दी से चला आ रहा है। जिले की दारमा, व्यास, चौंदास और जौहार घाटी के लोग शताब्दियों से इस व्यापार के जरिये अपनी आजीविका चलाते आये है।1962 के भारत-चीन युद्ध के बाद लंबे समय के लिए इस व्यापार पर प्रतिबंध लग गया था। दोनों मुल्कों की सहमति के बाद 1992 में लिपुलेख दर्रे को व्यापार के लिए फिर से खोल दिया गया।

जून से सितंबर माह के बीच चार महीने तक लिपुलेख दर्रा भारत-चीन स्थलीय व्यापार के लिए खुला रहता है। भारतीय मंडी गुंजी और तिब्बती मंडी तकलाकोट को व्यापार के लिए निर्धारित किया गया है। इस व्यापार में दोनों ही देशों के हिमालयी इलाके के जनजातीय समाज के व्यापारी शिरकत करते है। तिब्बती मंडी तकलाकोट पहुंचने के लिए भारतीय व्यापारियों को बेहद दुर्गम रास्तों से तकरीबन 85 किलोमीटर का सफर तय करना पड़ता है। तिब्बत की मंडी तकलाकोट में भारतीय व्यापारी तो लगातार जाते रहे है लेकिन भारत में बनाई गई गुंजी मंडी में केवल शुरुआती वर्षों में ही तिब्बती व्यापारी आये। अब गुंजी मंडी में तिब्बती व्यापारियों ने आना बंद कर दिया है।

भारत और तिब्बत के जनजातीय समाजों के बीच पारम्परिक रूप से होने वाले इस व्यापार में भेड़-बकरियां, घोड़े-खच्चर, याक इत्यादि जानवरों का व्यापार होता था। लेकिन जब दोबारा व्यापार खुला तो क्वारेंटाइन सुविधा यानी जानवरों में रोग की जांच की सुविधा नही होने के कारण जानवरों के व्यापार पर प्रतिबंध लग गया। अब इस व्यापार में केवल 29 वस्तुओं का निर्यात और 15 वस्तुओं का आयात ही किया जा सकता है। भारतीय व्यापारी भारत से चाय, कॉफी, माचिस, टिन के बॉक्स, एल्युमिनियम के बर्तन, रेडीमेड कपड़े इत्यादि लेकर जाते है, जबकि तिब्बत से चीनी जैकेट, कम्बल, रजाई, याक की पूंछ, जूते ऊन जैसे समान लेकर वापस लौटते है।

मुद्रा विनिमय, क्वारेंटाइन और यातायात की सुविधा ना होने से व्यापार लगातार सिकुड़ता जा रहा है। मुद्रा विनिमय की व्यवस्था ना होने से ये व्यापार वस्तु विनिमय के पुराने तरीके से ही होता आ रहा है। वहीं चीनी मुद्रा का अंतराष्ट्रीय मूल्य बढ़ने से आयात में लगातार कमी आ रही हैं। यही नही चीन द्वारा व्यापार पर साल दर साल लगाए जा रहे प्रतिबंधों से भी व्यापारियों का मोहभंग हो रहा है।

Byte: जगत मर्तोलिया, व्यापारी
Byte: विजय कुमार जोगदंडे, जिलाधिकारी, पिथौरागढ़


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