ETV Bharat / state

उत्तराखंड की लोक कला और संस्‍कृति की है अनूठी पहचान

author img

By

Published : Feb 28, 2020, 12:37 PM IST

पर्यटन की दृष्टि से उत्तराखंड प्रदेश देश-विदेश में अपनी विशेष पहचान रखता है. जिसके चलते प्रत्येक साल यहां लाखों की संख्या में देश विदेश के पर्यटक आते हैं. यहां की नदियां, पर्वत और लोक गीतों का भी अपना अलग पहचान है.

uttarakhand
लोककला और संस्‍कृति की अनूठी पहचान है उत्तराखंड

श्रीनगर: उत्तराखंड जहां पर्यटन की दृष्टि से पूरे देश विदेश में अपनी अलग पहचान रखता है. तो वहीं, प्रदेश की नदियां पर्वतीय आंचल सभी अपनी तरफ लोगों को आकर्षित करती है. यहां की संस्कृति लोक गीत नृत्य सभी को अपनी तरफ खिंचती है. साल के 12 महीनों को हर मौसम में अलग-अलग गीत और नृत्य किए जाते हैं. खेत खलिहान से लेकर विरह और त्योहारों के अपने अलग नृत्य हैं.

लोक कला और संस्‍कृति की है अनूठी पहचान.

प्रदेश के लोक साहित्य में अलग-अलग विधाएं है. महिलाएं खेती या पशुओं के लिए चारा काटने तक जाती है तो महिलाएं एक साथ मिलकर गीतों को गाती है. इन गीतों में झोड़ा, चाचरी, धपेली, छोलिया, आदि गीत होते है. जिनमें नृत्या किया जाता है, अमूमन विवाह, मेलों, उत्सवों में धपेली गायी जाती हैं.

वही, घर परिवारों में होने वाले शुभ कार्यों में मंगल गायन होता है. जिसमे गांव की बुजुर्ग महिलाएं देवी देवताओं का आह्वान करती है, और उन्हें आशीर्वाद देने को इन गीतों में गाया जाता है.

ये भी पढ़ें: श्रीनगर में सरस मेले की धूम, कुटीर उद्योगों को मिलेगा बढ़ावा

गणेश कुकशाल गणि बताते है कि ये गीत संगीत पीढ़ी दर पीढ़ी सुने और सुनाए जा रहे है. जिन्हें अब सरकार मंच मेलों के मंच दे रही है. कुकशाल ने बताया कि इन गीतों का उत्तराखंड की संस्कृति से विशेष लगाव है. अब ये गीत संगीत दूरस्थ गांवों तक ही सिमट गया है. जिसे नई पीढ़ी तक पहुंचाना आवश्यक है.

वहीं. लोक कलाकारों का कहना है कि अब लोगों ने इन गीतों को गाना समाप्त कर दिया है. लेकिन सरकार द्वारा दिया जा रहा मंच अब धीरे-धीरे युवाओं इस ओर आकर्षित कर रहा है.

ETV Bharat Logo

Copyright © 2024 Ushodaya Enterprises Pvt. Ltd., All Rights Reserved.