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पलायन की मार झेल रहा अनिल बलूनी का गांव, चिंतित परिजनों ने साझा की बातें

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Published : Nov 9, 2019, 10:33 AM IST

Updated : Nov 9, 2019, 11:16 AM IST

राज्यसभा सांसद अनिल बलूनी का गांव भी पलायन की मार झेल रहा है. जहां लोग आज भी मूलभूत सुविधाओं के अभाव में जीवन यापन कर रहे हैं.

पलायन की मार झेल रहा अनिल बलूनी का गांव.

पौड़ी: पलायन को रोकने का सरकार लगातार प्रयास कर रही है. लेकिन नब्ज का पता चलने के बावजूद मर्ज पर मलहम नहीं लगा पा रही है. वहीं सरकारी आंकड़ों के अनुसार गढ़वाल मंडल में सर्वाधिक पलायन पौड़ी जनपद से हुआ है. जिसमें बीजेपी के राज्यसभा सांसद अनिल बलूनी का गांव भी है. जहां लोग आज भी मूलभूत सुविधाओं के अभाव में जीवन यापन कर रहे हैं. खुद अनिल बलूनी का परिवार पलायन से ग्रस्त है और वे पलायन रोकने के लिए सरकार से गुहार लगा रहे हैं.

पलायन की मार झेल रहा अनिल बलूनी का गांव.

गौर हो कि सरकार द्वारा प्रदेश में पलायन को रोकने के लिए पलायन आयोग का गठन किया गया है. वहीं पौड़ी में विभाग की ओर से गांव-गांव तक जाकर सर्वे कर पलायन के कारणों को जानने की कोशिश की गई और सर्वे के बाद देखा गया कि अधिकतर लोग शिक्षा, स्वास्थ्य, रोजगार की वजह से पलायन कर गए. जिसमें बीजेपी के राज्यसभा सांसद अनिल बलूनी का गांव भी है. जहां लोग आज भी मूलभूत सुविधाओं के अभाव में जीवन यापन कर रहे हैं. खुद अनिल बलूनी का परिवार पलायन से ग्रस्त है और वे पलायन रोकने के लिए सरकार से गुहार लगा रहे हैं.

पढ़ें-उत्तराखंड@19: सिस्टम की लाचारी ग्रामीणों पर भारी, जिला मुख्यालय में भी नहीं बना पुल

वहीं अनिल बलूनी की भतीजी राधिका जो कि राजकीय प्राथमिक विद्यालय दोनंदल में पढ़ती हैं, जो नकोट गावं से करीब 3 किलोमीटर दूर है. रास्ता खराब और दूर होने के चलते राधिका की मां या राधिका की दादी उन्हें रोजाना स्कूल पहुंचाती और लाती है. रास्ते में जंगली जानवरों की डर के चलते उन्हें अकेले स्कूल नहीं भेजा जा सकता. उन्होंने बताया कि उनके परिवार से वह एकमात्र बालिका है जो पढ़ने जाती हैं. यदि गांव के पास स्कूल होता तो राधिका को 6 किलोमीटर पैदल आना जाना नहीं पड़ता.

राधिका की मां बीना देवी बताती है कि गांव में बहुत कम लोग रह गए हैं और गांव में बच्चों की संख्या कम होने के चलते हैं स्कूल 3 किलोमीटर दूर शिफ्ट हो गया है. गांव के कुछ लोग अपने बच्चों को अच्छी शिक्षा देने के लिए शहरों का रुख कर गए हैं. जिससे गांव की आबादी कम होती जा रही है. उत्तराखंड राज्य बनने के समय करीब 200 परिवार निवास करते थे और आज यहां मात्र 20 परिवार ही रह गए है.

अनिल बलूनी की चाची (राधिका की दादी) सुलोचना देवी बताती है कि पिछले 5 सालों से वह राधिका को स्कूल लेकर जाते हैं और स्कूल से लेकर आते हैं. गांव से करीब 3 किलोमीटर दूर राजकीय प्राथमिक विद्यालय दोनंदल में पढ़ती है और रास्ते में जंगली जानवरों के खौफ से अकेले नहीं भेजा जा सकता. इसलिए वह स्वयं उसे स्कूल लेकर जाती है उन्होंने बताया कि अनिल बलूनी जब 8 साल के थे तो वे गांव को छोड़ कर चले गए थे. आज तक नहीं आए उन्हें उम्मीद थी कि इस बार इगास के त्योहार में आएंगे.

लेकिन स्वास्थ्य खराब होने के चलते इस बार नहीं आ पाए. उन्होंने सरकार से गांव में शिक्षा स्वास्थ्य और रोजगार की मांग की, जिससे पलायन रुक सके. उन्होंने आगे बताया कि आज गांव में वही लोग रह गए हैं, जो रोजगार नहीं करते हैं या जो उम्र से काफी अधिक हैं.

Intro:प्रदेश सरकार की ओर से उत्तराखंड के गढ़वाल और कुमाऊं मंडल में हो रहे पलायन के कारणों को जानने और पलायन को रोकने के लिए ग्रामीण विकास एवं पलायन आयोग का गठन किया गया। वहीं सरकारी आंकड़ों के अनुसार गढ़वाल मंडल में सर्वाधिक पलायन पौड़ी जनपद से हुआ है। विभाग की ओर से गांव-गांव तक जाकर सर्वे कर पलायन के कारणों को जानने की कोशिश की गई और सर्वे के बाद देखा गया कि अधिकतर लोग शिक्षा, स्वास्थ्य, रोजगार के चलते पहाड़ों से पलायन करते चले गए लेकिन अब जो लोग पहाड़ छोड़कर शहरों में चले गए हैं उन्हें दोबारा से कैसे गांव में लाया जा सके सरकार के लिए एक बहुत बड़ी चुनौती है। वहीं दूसरी ओर जो लोग गांव में रह गए हैं उन्हें रोकने के लिए सरकार प्रयास कर रही है लेकिन यह प्रयास सफल होता नजर नहीं आ रहा है जिसका ताजा उदाहरण भारतीय जनता पार्टी के राज्यसभा सांसद अनिल बलूनी का गांव भी है जहां की आज शिक्षा स्वास्थ्य और रोजगार की काफी कमी देखने को मिल रही है खुद अनिल बलूनी का परिवार पलायन से ग्रस्त है और वह सरकार से गुजारिश कर रहा है कि उनके क्षेत्र का विकास किया जा सके और जो लोग गांव में रह गए हैं उनको यही रोकने के लिए प्रयास किया जा सके।


Body:अनिल बलूनी की भतीजी राधिका जो कि राजकीय प्राथमिक विद्यालय दोनंदल में पढ़ती है जो नकोट गावं से करीब 3 किलोमीटर दूर है। रास्ता खराब और दूर होने के चलते राधिका की मां या राधिका की दादी उन्हें रोजाना स्कूल ले जाती है और लेकर घर वापस आती है। रास्ते में जंगली जानवरों की डर के चलते उसे अकेले नहीं भेजा जा सकता उन्होंने बताया कि उनके परिवार से वह एकमात्र बालिका है जो पढ़ने जाती है और उसके अच्छे पठन-पाठन के लिए उन्हें रोजाना उसे स्कूल लेकर जाना होता है और स्कूल से लेकर आना होता है यदि गांव के पास स्कूल होता तो बालिका को 6 किलोमीटर पैदल आना जाना नहीं पड़ता। राधिका की मां बीना देवी बताती है कि गांव में बहुत कम लोग रह गए हैं और गांव में बच्चों की संख्या कम होने के चलते हैं स्कूल 3 किलोमीटर दूर चला गया है और गांव के कुछ लोग अपने बच्चों को अच्छी शिक्षा देने के लिए शहरों की तरह ले गए हैं जिससे गांव की आबादी धीमे-धीमे कम होती जा रही है।
बाईट-राधिका बलूनी(भतीजी अनिल बलूनी)
बाईट-बीना देवी बलूनी(भाभी अनिल बलूनी)
बाईट-सुलोचना देवी(चाची अनिल बलूनी)


Conclusion:उत्तराखंड राज्य बनने के समय करीब 200 परिवार निवास करते थे और आज यहाँ मात्र 20 परिवार ही रह गए है। अनिल बलूनी की चाची (राधिका की दादी) सुलोचना देवी बताती है कि पिछले 5 सालों से वह राधिका को स्कूल लेकर जाते हैं और स्कूल से लेकर आते हैं गांव से करीब 3 किलोमीटर दूर राजकीय प्राथमिक विद्यालय दोनंदल में पढ़ती है और रास्ते में बंदर भालू आदि के डर से बालिका को अकेले नहीं भेजा जा सकता इसलिए वह स्वयं उसे स्कूल लेकर जाती है उन्होंने बताया कि अनिल बलूनी जब 8 साल के थे तो वह अपने गांव को छोड़ कर चले गए थे और आज तक नहीं आए उन्हें उम्मीद थी कि इस बार इगास के त्यौहार में आएंगे लेकिन स्वास्थ्य खराब होने के चलते इस बार नहीं आ पाए। उनका परिवार सरकार से मांग करता है कि क्षेत्र में शिक्षा स्वास्थ्य और रोजगार की व्यवस्था की जाए और आज गांव में वही लोग रह गए हैं जो रोजगार नहीं करते हैं या जो उम्र से काफी अधिक हैं वही लोग गांव में रह गए हैं बाकी सब लोग पलायन कर चुके है।
पीटीसी -सिद्धांत उनियाल
Last Updated : Nov 9, 2019, 11:16 AM IST
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