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फर्जी कोरोना टेस्टिंग मामले की हाईकोर्ट में सुनवाई, आरोपियों की जमानत याचिका खारिज

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Published : Mar 25, 2022, 5:32 PM IST

हरिद्वार कुंभ फर्जी कोरोना टेस्टिंग मामले में नैनीताल हाईकोर्ट ने आरोपी शरत पंत, मलिका पंत और आशीष वशिष्ठ की जमानत याचिका खारिज कर दी. साथ ही कहा कि इन्होंने आपदा अधिनियम 2005 के तहत गंभीर अपराध किया है.

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कुंभ फर्जी कोरोना टेस्टिंग मामले में HC ने की सुनवाई

नैनीताल: हरिद्वार कुंभ कोरोना फर्जी टेस्टिंग मामले में आरोपियों की जमानत याचिका पर उत्तराखंड हाइकोर्ट ने सुनवाई की. मामले में मैक्स कॉरपोरेट सर्विसेज के सर्विस पार्टनर शरत पंत, मलिका पंत और नलवा लैब के आशीष वशिष्ठ ने अलग-अलग जमानत याचिका दायर किया था. न्यायमूर्ति आलोक कुमार वर्मा की एकलपीठ ने सुनवाई के बाद तीनों अभियुक्तों की जमानत प्रार्थना पत्र को निरस्त कर दिया. साथ ही कोर्ट कहा कि इन्होंने आपदा अधिनियम 2005 के तहत गंभीर अपराध किया है.

मामले में सरकार की तरफ से कहा गया कि इन अभियुक्तों ने कुंभ के दौरान फर्जी टेस्टिंग की और सरकार को 4 करोड़ रुपये का बिल भी दिया गया. जिसमें सरकार ने इनको 15 लाख रुपये का भुगतान भी कर दिया. जब टेस्टिंग के लिए सरकार ने विज्ञप्ति निकाली थी तो मैक्स सर्विस ने भी टेंडर डाला था. विज्ञप्ति में स्पष्ट लिखा गया था कि वे ही लोग आवेदन कर सकते हैं, जिनके पास आईसीएमआर का सर्टिफिकेट होगा. जिस पर मैक्स सर्विस ने शपथपत्र देकर कहा था कि उनके दो लालचंदानी व नलवा लैब है, जिनको आईसीएमआर का सर्टिफिकेट मिला हुआ है.

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इस आधार पर इनको कुंभ में कोरोना टेस्ट करने का ठेका दिया गया. सरकार की तरफ से यह भी कहा गया कि लालचंदानी लैब के सभी टेस्ट वैध थे. जबकि, नलवा लैब ने टेस्ट कराने के लिए अनट्रेंड छात्रों को अधिकृत किया. जितने भी टेस्ट किये गए उनकी रिपोर्ट हरियाणा, यूपी व राजस्थान से कराए गए. जबकि जिस स्थान पर टेस्ट कराया गया, उसी स्थान से अपलोड होने थे. मैक्स व नलवा ने एक ही आईडी पर हजारों टेस्ट किये. जो टेस्ट किये गए उनमें अधिकतर रिपोर्ट नगेटिव अपलोड की गई. ताकि वे पकड़ में न आ सके. सरकार की तरफ से यह भी कहा गया कि उनके पास कई गवाह भी जिन्होंने टेस्ट कराए ही नहीं.

जिसके विरोध में अभियुक्तों के अधिवक्ता ने कोर्ट को बताया कि उनके द्वारा कोई फर्जी टेस्टिंग नहीं की गई है, वे तो एकमात्र सर्विस एजेंसी थे. जो टेस्ट किए गए वे लालचंदानी व नलवा लैब के द्वारा किए गए. नलवा लैब ने 1 लाख 4 हजार 257 और लाल चंदानी लैब ने 13 हजार टेस्ट किए. सरकार जांच में एक भी टेस्ट फर्जी साबित नहीं कर पाई. कुंभ के दौरान श्रद्धालुओं के जत्थे ही जत्थे आ रहे थे, इसलिए अखाड़ों ने एक ही आईडी नंबर से टेस्ट कराए. जांच अधिकारी उनके खिलाफ कोई ठोस सबूत पेश नहीं कर पाई है. सरकार ने उनको अभी तक कोई भुगतान तक नहीं किया है.

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अभियुक्तों की तरफ से यह भी कहा गया कि वे नवंबर 2021 से जेल में है. जबकि कोर्ट ने पूर्व में उनकी गिरफ्तारी पर रोक लगाई थी. उसके बाद आईओ ने धारा 467 और बढ़ा दी, उनका इसमें कोई रोल नहीं है. मामले अनुसार शरत पंत, मलिका पंत और आशीष वशिष्ठ ने जमानत प्रार्थना पत्र दायर कर कहा कि वे मैक्स कॉर्पोरेट सर्विसेस में एक सर्विस प्रोवाइडर हैं. परीक्षण और डेटा प्रविष्टि के दौरान मैक्स कॉर्पोरेट का कोई कर्मचारी मौजूद नहीं था. इसके अलावा परीक्षण और डेटा प्रविष्टि का सारा काम स्थानीय स्वास्थ्य विभाग के अधिकारियों की प्रत्यक्ष निगरानी में किया गया था. इन अधिकारियों की मौजूदगी में परीक्षण स्टॉलों ने जो कुछ भी किया था, उसे अपनी मंजूरी दे दी. अगर कोई गलत कार्य कर रहा था तो कुंभ मेले के दौरान अधिकारी चुप क्यों रहे ?

मुख्य चिकित्सा अधिकारी हरिद्वार ने पुलिस में मुकदमा दर्ज कराते हुए आरोप लगाया था कि कुंभ मेले के दौरान इनके द्वारा अपने को लाभ पहुंचाने के लिए फर्जी तरीके से टेस्ट इत्यादि कराए गए. 2021 को एक व्यक्ति ने सीएमओ हरिद्वार को एक पत्र भेजकर शिकायत की गयी थी. कुंभ मेले में टेस्ट कराने वाले लैबों द्वारा उनकी आईडी व फोन नंबर का उपयोग किया है. जबकि उनके द्वारा रेपिड एंटीजन टेस्ट कराने के लिए कोई रजिस्ट्रेशन व सैंपल नहीं दिया गया. पूर्व में कोर्ट ने उनकी गिरफ्तारी पर रोक लगाई थी, इसलिए उन्हें जमानत पर रिहा किया जाय.

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