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यूपी के जमाने में जल संस्थान ने किया था निष्कासित, नैनीताल HC से 41 साल बाद मिला न्याय

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Published : Aug 17, 2021, 6:56 PM IST

उत्तराखंड हाईकोर्ट में आज एक अजीब-ओ-गरीब मामले की सुनवाई हुई. कान सिंह राणा उत्तर प्रदेश के जमाने में जल संस्थान में काम करते थे. संस्थान ने 1980 में उन्हें जरूरत से ज्यादा अनुपस्थित रहने का आरोप लगाकर निष्कासित कर दिया था. 41 साल की लड़ाई के बाद नैनीताल हाईकोर्ट से आज कान सिंह को न्याय मिला है. कोर्ट ने गढ़वाल एवं उत्तराखंड जल संस्थान को याची के समस्त देयकों, पेंशन सहित सेवानिवृत्ति लाभ देने के आदेश दिए हैं.

Uttarakhand Nainital
निष्कासित कर्मचारी को 41 साल बाद मिला न्याय

नैनीताल: उत्तराखंड हाईकोर्ट से जल संस्थान के निष्कासित कर्मचारी को 41 साल बाद न्याय मिला है. साल 1980 में जल संस्थान ने कान सिंह राणा को 240 दिन काम न करने का आरोप लगाकर विभाग से निकाल दिया था. जिसके बाद उन्होंने हाईकोर्ट में याचिका दायर की थी.

कोर्ट ने उत्तराखंड जल संस्थान एवं गढ़वाल जल संस्थान को याची को सभी देयकों का भुगतान समेत पेंशन एवं सेवानिवृत्ति के लाभ देने का आदेश दिया है. हाईकोर्ट की एकलपीठ ने उत्तराखंड जल संस्थान की याचिका को आधारहीन पाते हुए निष्कासन को रद्द करते हुए अपना फैसला सुनाया है.

देहरादून निवासी कान सिंह राणा ने वर्ष 1980 में श्रम न्यायालय देहरादून में याचिका दायर की. जिसमें कहा कि उन्हें जल संस्थान ने 1980 में बिना कारण एवं नोटिस के विभाग से निष्कासित कर दिया था. जिसे उन्होंने श्रम न्यायालय में चुनौती दी. वर्ष 2006 में श्रम न्यायालय ने उनके हित में आदेश दिया था.

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श्रम न्यायालय के आदेश को गढ़वाल जल संस्थान एवं उत्तराखंड जल संस्थान ने हाईकोर्ट में यह कहकर चुनौती दी कि उनको श्रम न्यायालय ने नहीं सुना और बिना सुने उनके खिलाफ एकपक्षीय आदेश पारित किया. जिसके बाद हाईकोर्ट ने गढ़वाल जल संस्थान एवं उत्तराखंड जल संस्थान निर्देश दिए थे कि वह दोबारा से श्रम न्यायालय में अपनी आपत्ति पेश करें.

श्रम न्यायालय ने उनकी आपत्ति को निरस्त कर फिर से याचिकाकर्ता के हित में निर्णय दिया. उन्होंने अपनी आपत्ति में कहा था कि कर्मचारी ने अपने कार्यकाल में 240 दिन कार्य नहीं किया है. इसलिए विभाग ने उनको निष्काषित कर दिया था. श्रम न्यायलय के इस आदेश को गढ़वाल जल संस्थान व उत्तराखंड जल संस्थान ने फिर से हाईकोर्ट में चुनौती दी थी. जिस पर सुनवाई करते हुए एकलपीठ ने उत्तर प्रदेश औद्योगिक विवाद अधिनियम एवं सुप्रीम कोर्ट के निर्णयों का हवाला देते हुए याचिकाकर्ता के हक में निर्णय दिया.

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