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हरिद्वार में देरी से पहुंचे विदेशी मेहमान परिंदे, रूस-यूक्रेन युद्ध माना जा रहा कारण

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Published : Nov 15, 2022, 4:28 PM IST

हरिद्वार के जलाशयों और गंगा तटों पर प्रवासी पक्षियों ने पहुंचना शुरू कर दिया है. जिसमें सुर्खाब, रिवर लैपविंग, ब्लैक विंग्ड स्टिल्ट, कॉमन टील, पलाश गल, नॉर्दन शोवलर, कॉमन पोचार्ड, समेत कई प्रजाति के पक्षी शामिल हैं. इस बार विदेशी मेहमान परिंदे हरिद्वार में देरी से पहुंचे हैं. इसकी वजह पक्षी वैज्ञानिक रूस यूक्रेन युद्ध मान रहे हैं.

Migratory Birds Started Arriving in Haridwar
हरिद्वार में प्रवासी पक्षी

हरिद्वारः हर साल सर्दियों का मौसम शुरू होते ही कई प्रकार के विदेशी परिंदे हजारों किलोमीटर की हवाई सफर कर हरिद्वार पहुंचते हैं. कुछ महीनों तक यही उनका अस्थाई बसेरा होता है. जलधारा के कई तटों पर यह पक्षी गंगा में विचरण करते साफ नजर आते हैं. पक्षी विशेषज्ञों की मानें तो रूस और यूक्रेन युद्ध के चलते अक्टूबर में पहुंचने वाले यह परिंदे इस बार नवंबर मध्य में जाकर हरिद्वार पहुंचे हैं. इन पक्षियों को देखने के लिए लोगों की भीड़ जुटनी शुरू हो गई है.

बता दें कि सर्दियों में उत्तरी गोलार्ध के शीत प्रदेशों से लाखों की संख्या में प्रवासी पक्षी भारतीय उपमहाद्वीप में आते हैं. इसी कड़ी में विदेशी परिंदों के आने का सिलसिला शुरू हो गया है. गुरुकुल कांगड़ी विश्वविद्यालय हरिद्वार (Gurukul Kangri University Haridwar) के अंतरराष्ट्रीय पक्षी वैज्ञानिक प्रोफेसर दिनेश भट्ट (International ornithologist Dinesh Bhatt) ने बताया कि करीब 10 प्रजातियों के पक्षी हरिद्वार पहुंच चुके हैं.

जिनमें सुर्खाब यानी चकवा चकवी (Surkhab bird) के सैकड़ों जोड़े, रिवर लैपविंग (River lapwing), कॉमन टील (Eurasian teal), पलाश गल, ब्लैक विंग्ड स्टिल्ट (Black winged stilt), कॉमन पोचार्ड (Common pochard), रिवर टर्न, नॉर्दन पिनटेल (Northern pintail), नॉर्दन शोवलर (Northern shoveler), कौम्बडक, पनकौआ यानी जलकाक (Cormorant) आदि शामिल हैं. हिमालयी क्षेत्रों से आने वाले पक्षियों में खंजन, फैनटेल फ्लाईकैचर, ब्लैक बर्ड, वारवलर समेत अन्य शामिल हैं.

शोध छात्रा पारुल (Research Scholar Parul) ने बताया कि न केवल भारतीय उपमहाद्वीप में बल्कि विश्व के अनेक क्षेत्रों में शीतकाल और ग्रीष्म काल में पक्षियों का माइग्रेशन होता है. पिछले महीने यानी अक्टूबर में बार टेल्ड गॉडविट (Bar tailed godwit) नामक पक्षी ने अलास्का (अमेरिका) से यात्रा शुरू की. करीब 11 दिन में 5560 किमी की दूरी पार कर ऑस्ट्रेलिया के पास टासमानिया पहुंची है. खास बात ये है कि इस पक्षी ने यह यात्रा प्रशांत महासागर के ऊपर से बिना रुके और बिना थके पूरी की. इस पक्षी पर जीपीएस लगा हुआ था, जिससे वैज्ञानिकों को पक्षी के मार्ग का पता लगता रहा.

उत्तराखंड संस्कृत विश्वविद्यालय के पक्षी वैज्ञानिक विनय सेठी (ornithologist vinay sethi) के मुताबिक, प्रवासी पक्षी सुर्खाब आजीवन जोड़ा बनाकर रहते हैं और प्रवास गमन की यात्रा रात में करते हैं. सुर्खाब शाकाहारी पक्षी है. बौद्ध धर्म को मानने वाले लोग इस पक्षी को पवित्र मानकर इसके संरक्षण पर जोर देते हैं.
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प्रोफेसर दिनेश भट्ट ने बताया कि इस साल पलास गल नामक पक्षी 15 से 20 दिन देर से पहुंचा है. यह पक्षी रूस, चीन, यूक्रेन से उड़ान भरते हैं. देर से आने के कारणों में रूस-यूक्रेन युद्ध मुख्य कारण (Russia Ukraine War) हो सकता है. हजारों टन बम, मिसाइल अटैक, तोप-गोले 25 फरवरी 2022 से लगातार यूक्रेन की शहरी, ग्रामीण व जंगली क्षेत्रों में गिरते आ रहे हैं.

प्रो भट्ट ने बताया कि यूक्रेन और रूस के नीचे स्थित काला सागर से लाखों की संख्या में प्रवासी पक्षी माइग्रेशन की ओर अग्रसर होते हैं. दोनों ही क्षेत्रों में युद्ध से भड़की भयानक आग से जैव विविधता में भारी कमी आई है. जिसमें प्रवास की ओर गमन करने वाले पक्षी काफी संख्या में मारे गए. शायद इसी वजह से पलास गल के 14-15 सदस्य ही हरिद्वार में नजर आ रहे हैं.

पक्षी वैज्ञानिक प्रोफेसर दिनेश भट्ट की मानें तो विश्व के विभिन्न शहरों में ऊंची और फ्रंट में कांच लगी बिल्डिंग भी माइग्रेशन में बाधक है. जिसमें टकरा कर पक्षी मर रहे हैं. उन्होंने बताया कि पक्षी की चोंच पर प्राकृतिक सेंसर होते हैं. जिससे पक्षी दिशा का ज्ञान पाते हैं. इसी से ही प्राय निश्चित समय पर निश्चित ताल-तलैयों और झीलों में प्रवास के लिए पहुंच जाते हैं.

प्रवास पर जाने के लिए ठंडे प्रदेशों में न केवल बर्फ का गिरना बल्कि जैविक घड़ी और हार्मोन भी अपना योगदान देते हैं. यह पक्षियां फरवरी महीने तक इसी तरह गंगा के अलग-अलग क्षेत्रों में नजर आएंगे. जिसके बाद ये सभी पक्षी अपने-अपने देशों को वापस लौट सकते हैं.
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