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मसूरी से था बापू का खास लगाव, देश की आजादी की रखी थी नींव

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Published : Oct 2, 2019, 7:01 AM IST

Updated : Oct 2, 2019, 7:30 AM IST

राष्ट्रपिता महात्मा गांधी आजादी से पहले दो बार मसूरी पहुंचे थे. मसूरी की शांत वादियों से उनका खासा लगाव था. वे अक्सर कहते थे कि यहां उन्हें आत्मीय शांति मिलती है. मसूरी प्रवास के दौरान गांधी जी ने आजादी की नींव भी रखी, जिसमें मसूरी के लोगों ने भी अहम योगदान निभाया.

आजादी से पहले दो बार मसूरी पहुंचे थे बापू

मसूरीः पूरा विश्व आज महात्मा गांधी की 150वीं जयंती मना रहा है. वैसे तो महात्मा गांधी ने पूरे देश का भ्रमण किया था, लेकिन, देवभूमि उत्तराखंड से उनका खास लगाव था. वे आजादी से पहले दो बार पहाड़ों की रानी मसूरी पहुंचे थे. बापू 1929 के बाद 1946 में दोबारा मसूरी की शांत वादियों में पहुंचे थे. गांधी ने हैप्पी वैली स्थित उद्योगपति घनश्याम दास बिड़ला के आवास में करीब 10 दिन बिताए थे. इस दौरान उन्होंने भारत की आजादी के लिये कई महत्वपूर्ण कदम भी उठाए.

होटल स्वामी जीएस मनचंदा बताते हैं कि महात्मा गांधी के मसूरी आने पर बड़ी संख्या में लोग उन्हें देखने पहुंचते थे. गांधी जी के बारे में कहा जाता था कि वे जहां जाते थे, उन्हें उनके अनुचर मिल जाते थे. उनकी सादगी का हर कोई कायल था. मसूरी के एतिहासिक सिल्वर्टन मैदान में बापू रोजाना प्रार्थना सभा कर लोंगो को अहिंसा का तरीका अपनाकर आजादी लेने के लिए प्रेरित करते थे. मसूरी के मालरोड और अन्य जगहों पर पैदल चलकर लोगों से मिलते थे.

बापू का उत्तराखंड से था विशेष लगाव.

इससे पहले गांधी जी 1929 में मसूरी पहुंचे थे. उनकी यात्रा पहाड़ी क्षेत्र के विकास के लिये महत्वपूर्ण थी. उस समय उत्तराखण्ड, उत्तर प्रदेश का हिस्सा था. जिसने हमेशा भारत के राजनीतिक और सांस्कृतिक इतिहास में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है. गांधी जी 15 अक्टूबर, 1929 को हरिद्वार में लाल लाजपत राय मेमोरियल में राष्ट्रीय सेवा और खादी के लिए धन इकट्ठा करने के बाद मसूरी की ओर बढ़े.

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16 अक्टूबर 1929 को बापू ने बाबू पुरषोत्तम दास टंडन के नेतृत्व में देहरादून में कांग्रेस के एक जिला राजनीतिक सम्मेलन को संबोधित किया. उस समय गांधी जी ने देशभर में खादी आंदोलन के प्रसार का बीड़ा उठाया, जिसमें मसूरी के लोगों ने भी अहम योगदान दिया था. 18 अक्टूबर, 1929 को गांधी जी ने मसूरी में यूरोपीय नगर पालिका पार्षदों को संबोधित किया. वह 24 अक्टूबर तक हैप्पी वैली के पास बिड़ला हाउस में ही रहे और कई बैठकें की. डॉक्टरों की सलाह पर गांधी जी ने 28 मई 1946 को फिर मसूरी का दौरा किया.

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इतिहासकार गोपाल भारद्वाज बताते हैं कि उनके पिता ऋषि भारद्वाज से गांधी जी के अच्छे संबंध थे. कभी-कभी वह उन्हें बुलाने के लिए रिक्शा भी भेजते थे. मसूरी से उनके प्रेम का जिक्र 1961 में प्रकाशित जस्टिस जीडी खोसला की पुस्तक ‘मसूरी एंड द दून वैली' में किया गया है. गोपाल भारद्वाज कहते हैं कि मसूरी के लंढौर क्षेत्र में कुछ जातियों या वर्गों जैसे वाशरमैन, लुका-छिपी और बांस के काम करने वाले मछुआरों और जंगल या पहाड़ी जनजातियों को मंदिरों के अंदर जाने की अनुमति नहीं थी. इस कुप्रथा को खत्म करने के लिए गांधी जी ने उच्च जातियों से उन लोगों को समान रुतबा देने का आग्रह भी किया था. एक प्रार्थना सभा के दौरान गांधी जी को उस समय पहाड़ी क्षेत्र में इस्तेमाल की जाने वाली डंडी की चांदी की कोटेड प्रतिकृति दी गई थी. गांधी जी ने उस उपहार को नीलाम करने की जगह पर रखा और 908 रुपये इकट्ठा किए. उस रकम को खादी विकास कोष में जमा किया.

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समाजसेवी मदन मोहन शर्मा बताते हैं कि गांधी जी के लिए आजादी का मतलब समाज के अंतिम व्यक्ति तक विकास पहुंचाना था. जब वे मसूरी पहुंचे तो यहां के गरीबों और पिछड़ों की दुर्दशा को देखकर वे व्यथित भी हुए. माल रोड पर निम्न जाति के लोगों को चलने की परमिशन नहीं थी. इस पर उन्होंने मसूरी में एक ऐसी संस्था बनाने के लिए कहा जिसके जरिये गरीब और पिछड़े अपनी बात को रख सकें. इसके बाद गांधीवादी विचारक पीसी हरी और तनखा ने नगर में एक पुराने भवन को खरीदा और वहां गांधी निवास सोसायटी बनाई. ये सोसायटी आज भी चल रही है. सोसाइटी की ओर से पहले सरस्वती शिशु मंदिर खोला गया, जो आज इंटर कालेज का रुप ले चुका है.

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राष्ट्रपिता महात्मा गांधी देश की आजादी की जंग का नेतृत्व करते हुए दो बार पहाड़ों की रानी मसूरी आए मसूरी की शांत वादियों में वर्ष 1946 में महात्मा गांधी ने मसूरी हैप्पी वैली स्थित उद्योगपति घनश्याम दास बिरला की आवास में करीब 10 दिन बिताएं वह इस दौरान उन्होंने भारत की आजादी के लिए कई महत्वपूर्ण कदम उठाए मसूरी के ऐतिहासिक सिल्वर्टन मैदान में रोजाना प्रार्थना सभा कर लोगों को अहिंसक तरीके अपनाकर आजादी लेने के लिए प्रेरित करते रहे मसूरी के माल रोड और अन्य जगहों पर पैदल चलकर लोगों से मिलते थे इससे पूर्व गांधीजी 1929 में मसूरी आए थे वह उनकी यह यात्रा पहाड़ी वक्षेत्र के विकास के लिए महत्वपूर्ण थी उस समय उत्तराखंड उत्तर प्रदेश का हिस्सा था जिसने हमेशा भारत के राजनीतिक और सांस्कृतिक इतिहास में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी


Body:सर इस खबर के विजुअल मेल से भेजे गए हैं वही पूरी स्क्रिप्ट मेल पर है


Conclusion:
Last Updated : Oct 2, 2019, 7:30 AM IST
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