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Lokparv Harela 2023: खत्म हुआ असमंजस, 16 जुलाई नहीं इस दिन है राज्य में हरेला की छुट्टी

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Published : Jul 13, 2023, 11:45 AM IST

हरेला के अवकाश को लेकर कंफ्यूजन दूर हो गया है. पहले ऐसी चर्चा थी कि 16 जुलाई को हरेला का अवकाश है. उत्तराखंड सचिवालय ने आदेश जारी कर 17 जुलाई को हरेला के अवकाश की घोषणा कर दी है.

Lokparv Harela 2023
हरेला पर्व

देहरादून: असमंजस की स्थिति के बाद आखिरकार शासन ने हरेला पर्व को लेकर शासनादेश जारी कर दिया है. इस बार भी आदेश में कहा गया है कि हरेला पर्व का अवकाश 16 जुलाई की जगह अब 17 जुलाई को होगा. पहले इस बात को लेकर असमंजस था कि राज्य में हरेला पर्व और पर्व के दिन छुट्टी कौन सी तारीख को रहेगी. लेकिन अब सचिवालय की तरफ से जारी हुए आदेश में साफ कर दिया है कि 17 जुलाई को प्रदेश भर में हरेला का आधिकारिक अवकाश रहेगा.

Lokparv Harela 2023
हरेला के अवकाश को लेकर शासनादेश

इस दिन होगा हरेला का अवकाश: हरेला के अवकाश को लेकर हमेशा से ही विवाद रहा है. कांग्रेस की सरकार हो या फिर बीजेपी की सरकार दोनों ही सरकारें एक-दूसरे पर यह कहकर बयान जारी करते रही हैं कि राज्य के पर्वों को बढ़ावा नहीं दिया जा रहा है. कई बार सरकारों ने हरेला पर अवकाश घोषित किया तो कई साल ऐसा नहीं हो पाया. हरीश रावत की सरकार हो या त्रिवेंद्र सिंह रावत की सरकार में भी आदेश जारी नहीं हुए थे.

राज्य के पर्वों को बढ़ावा देने की पहल: लेकिन साल 2021 में हरेला पर्व पर पहली बार सरकारी अवकाश की घोषणा की गई. उसके बाद साल 2022 में भी हरेला का पर्व सरकार की तरफ से बड़ी धूमधाम से मनाया गया. लिहाजा इस बार भी राज्य सरकार ने 17 जुलाई को अवकाश घोषित करके राज्य के पर्व को बढ़ावा देने की कोशिश की है.

क्या है हरेला? हरेला उत्तराखंड का लोकपर्व है. प्रकृति, वन और खेती को समर्पित उत्तराखंड का लोकपर्व हरेला इस बार 17 जुलाई को मनाया जाएगा. हर साल हरेला कर्क संक्रांति को श्रावण मास के पहले दिन मनाने की परंपरा है. त्योहार के ठीक 10 दिन पहले हरेला बोया जाता है. कुछ लोग 11 दिन पहले भी हरेला बोते हैं. उत्तराखंड के कुमाऊं मंडल में हरेला विशेष उत्साह के साथ मनाया जाता है.
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ऐसे बोते हैं हरेला: हरेला पर साफ सुथरी जगह से मिट्टी निकालकर सुखाते हैं. फिर इस मिट्टी को छान लिया जाता है. छानी गई मिट्टी कई बर्तनों में रखी जाती है. फिर इस मिट्टी में 5 से लेकर 7 तरह के अनाज बोते हैं. इन अनाजों में गहत, उड़द, धान, मक्का, भट और तिल मुख्य रूप से रहते हैं. इन बर्तनों को मंदिर के कोने में रख दिया जाता है. घर की महिलाएं हरेला तक रोजाना इसकी देखभाल करती हैं. हरेला के दिन हरेला काटा जाता है. इस पर्व पर पकवान बनाकर खाए और बांटे जाते हैं.
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