विकासनगर: यूं तो दीपावली का त्योहार पूरे देश में कार्तिक मास की अमावस्या को मनाया जाता है. लेकिन देहरादून जिले के जौनसार बावर में दीपावली एक महीने बाद मार्गशीष (अगहन) मास की अमावस्या को मनाई जाती है. पर्वतीय दीपावली जिसे स्थानीय भाषा में दियाई कहा जाता है. यह दीपावली महासू देवता के नाम समर्पित है. यह क्षेत्र देश-विदेश में अपनी संस्कृति से अलग पहचान बनाए हुए है. कृषि बाहुल्य क्षेत्र होने के कारण यहां के लोग खेती में व्यस्त रहते हैं और एक महीने बाद खेती से निवृत्त हो कर दीपावली मनाते हैं.
जौनसार बावर के लोग इस दिन विमल वृक्ष की पतली-पतली लकड़ियों से मशाले जलाकर प्रकाश पर्व के रूप में दीपावली का शुभारंभ करते हैं. 5 से 8 दिन तक मनाई जाने वाली यह दीपावली जौनसार बावर का मुख्य त्योहार भी है. हालांकि, क्षेत्र में कई जगहों पर दीपावली का त्योहार परंपरा के अनुसार ही मनाने लगे हैं.
एक ओर जहां पूरे देश में दीपावली के दिन जमकर पटाखे जलाते हैं और आतिशबाजी करते हैं तो वहीं उत्तराखंड का जौनसार बावर ही एक मात्र ऐसा क्षेत्र है, जहां पर दीपावली में लोग ना पटाखे जलाते हैं ना ही आतिशबाजी सिर्फ लकड़ी से मशाले जलाकर महासू देवता के नाम से दीपावली की शुरुआत करते हैं.
इस त्योहार में गांव का मुखिया देवता के नाम से पंचायती आंगन में अखरोट बिखेरते हैं, जिसे स्थानीय गांव के लोग प्रसाद के रूप में ग्रहण करते हैं. वहीं धान से बनी खील भी यहां का मुख्य प्रसाद है. इसके साथ ही गांव का मुखिया शाही वेश धारणकर काठ के हाथी पर सवार होता है. 5 से 8 दिनों तक चलने वाले इस त्योहार में महिलाएं हारूल, तांदी नृत्य कर पर्व की बधाई देती हैं. माना जाता है कि जौनसार बावर जनजाति पूरे विश्व में अपनी संस्कृति और रीति रिवाज की दृष्टि से अलग पहचान रखता है.
इस संबंध में जौनसार बावर ऐतिहासिक संदर्भ के पुस्तक के लेखक टीका राम शाह बताते हैं कि जौनसार बावर में मनाई जाने वाली दीपावली एक माह बाद मनाते हैं और यह रात्रि का त्योहार है. इन दिनों न ज्यादा सर्दी होगी है और न ही गर्मी. लोग फुर्सत के पलों में होते हैं. दीपावली का त्योहार लोग आनंदमय तरीके से मनाते हैं. इसलिए एक महीने बाद यहां दीपावली मनाई जाती है कि कुछ लोग जो कहते हैं कि 14 साल वनवास के बाद राजाराम अयोध्या पहुंचे थे, जिसकी सूचना देरी से मिली, लेकिन ऐसा नहीं है.
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जौनसार बावर क्षेत्र में मनाई जाने वाली दीपावली , इस जनजाति का अपना त्योहार है. जिसे दियाई कहते हैं. भले ही इसे दीपावाली का रूप दिया हो लेकिन जौनसार बावर की विशेषता है कि यहां की जनजाति ने अपने पारंपरिक त्योहारों में बदलाव नहीं लाया है. यह जनजाति इस त्योहार को महासू देवता के नाम से मनाई जाती है.