ETV Bharat / state

उत्तराखंडः यहां एक महीने बाद बिना दीया जलाए मनाई जाती है दीपावली, जानिए क्या है परंपरा

जौनसार बावर में दीपावली के ठीक एक महीने बाद दिवाली मनाई जाती है. इस दीपावली की खास बात यह है कि यहां लोग बिना दीया जलाये ही दिवाली मनाते हैं.

विकासनगर
author img

By

Published : Oct 25, 2019, 4:23 AM IST

Updated : Oct 25, 2019, 12:28 PM IST

विकासनगर: यूं तो दीपावली का त्योहार पूरे देश में कार्तिक मास की अमावस्या को मनाया जाता है. लेकिन देहरादून जिले के जौनसार बावर में दीपावली एक महीने बाद मार्गशीष (अगहन) मास की अमावस्या को मनाई जाती है. पर्वतीय दीपावली जिसे स्थानीय भाषा में दियाई कहा जाता है. यह दीपावली महासू देवता के नाम समर्पित है. यह क्षेत्र देश-विदेश में अपनी संस्कृति से अलग पहचान बनाए हुए है. कृषि बाहुल्य क्षेत्र होने के कारण यहां के लोग खेती में व्यस्त रहते हैं और एक महीने बाद खेती से निवृत्त हो कर दीपावली मनाते हैं.

जौनसार बावर में बिना दीया दिवाली की परंपरा

जौनसार बावर के लोग इस दिन विमल वृक्ष की पतली-पतली लकड़ियों से मशाले जलाकर प्रकाश पर्व के रूप में दीपावली का शुभारंभ करते हैं. 5 से 8 दिन तक मनाई जाने वाली यह दीपावली जौनसार बावर का मुख्य त्योहार भी है. हालांकि, क्षेत्र में कई जगहों पर दीपावली का त्योहार परंपरा के अनुसार ही मनाने लगे हैं.

एक ओर जहां पूरे देश में दीपावली के दिन जमकर पटाखे जलाते हैं और आतिशबाजी करते हैं तो वहीं उत्तराखंड का जौनसार बावर ही एक मात्र ऐसा क्षेत्र है, जहां पर दीपावली में लोग ना पटाखे जलाते हैं ना ही आतिशबाजी सिर्फ लकड़ी से मशाले जलाकर महासू देवता के नाम से दीपावली की शुरुआत करते हैं.

इस त्योहार में गांव का मुखिया देवता के नाम से पंचायती आंगन में अखरोट बिखेरते हैं, जिसे स्थानीय गांव के लोग प्रसाद के रूप में ग्रहण करते हैं. वहीं धान से बनी खील भी यहां का मुख्य प्रसाद है. इसके साथ ही गांव का मुखिया शाही वेश धारणकर काठ के हाथी पर सवार होता है. 5 से 8 दिनों तक चलने वाले इस त्योहार में महिलाएं हारूल, तांदी नृत्य कर पर्व की बधाई देती हैं. माना जाता है कि जौनसार बावर जनजाति पूरे विश्व में अपनी संस्कृति और रीति रिवाज की दृष्टि से अलग पहचान रखता है.

इस संबंध में जौनसार बावर ऐतिहासिक संदर्भ के पुस्तक के लेखक टीका राम शाह बताते हैं कि जौनसार बावर में मनाई जाने वाली दीपावली एक माह बाद मनाते हैं और यह रात्रि का त्योहार है. इन दिनों न ज्यादा सर्दी होगी है और न ही गर्मी. लोग फुर्सत के पलों में होते हैं. दीपावली का त्योहार लोग आनंदमय तरीके से मनाते हैं. इसलिए एक महीने बाद यहां दीपावली मनाई जाती है कि कुछ लोग जो कहते हैं कि 14 साल वनवास के बाद राजाराम अयोध्या पहुंचे थे, जिसकी सूचना देरी से मिली, लेकिन ऐसा नहीं है.

पढे़ं- उड़ान योजना: केंद्रीय नागरिक उड्डयन राज्य मंत्री ने की उत्तराखंड में उड़ान योजना की समीक्षा

जौनसार बावर क्षेत्र में मनाई जाने वाली दीपावली , इस जनजाति का अपना त्योहार है. जिसे दियाई कहते हैं. भले ही इसे दीपावाली का रूप दिया हो लेकिन जौनसार बावर की विशेषता है कि यहां की जनजाति ने अपने पारंपरिक त्योहारों में बदलाव नहीं लाया है. यह जनजाति इस त्योहार को महासू देवता के नाम से मनाई जाती है.

विकासनगर: यूं तो दीपावली का त्योहार पूरे देश में कार्तिक मास की अमावस्या को मनाया जाता है. लेकिन देहरादून जिले के जौनसार बावर में दीपावली एक महीने बाद मार्गशीष (अगहन) मास की अमावस्या को मनाई जाती है. पर्वतीय दीपावली जिसे स्थानीय भाषा में दियाई कहा जाता है. यह दीपावली महासू देवता के नाम समर्पित है. यह क्षेत्र देश-विदेश में अपनी संस्कृति से अलग पहचान बनाए हुए है. कृषि बाहुल्य क्षेत्र होने के कारण यहां के लोग खेती में व्यस्त रहते हैं और एक महीने बाद खेती से निवृत्त हो कर दीपावली मनाते हैं.

जौनसार बावर में बिना दीया दिवाली की परंपरा

जौनसार बावर के लोग इस दिन विमल वृक्ष की पतली-पतली लकड़ियों से मशाले जलाकर प्रकाश पर्व के रूप में दीपावली का शुभारंभ करते हैं. 5 से 8 दिन तक मनाई जाने वाली यह दीपावली जौनसार बावर का मुख्य त्योहार भी है. हालांकि, क्षेत्र में कई जगहों पर दीपावली का त्योहार परंपरा के अनुसार ही मनाने लगे हैं.

एक ओर जहां पूरे देश में दीपावली के दिन जमकर पटाखे जलाते हैं और आतिशबाजी करते हैं तो वहीं उत्तराखंड का जौनसार बावर ही एक मात्र ऐसा क्षेत्र है, जहां पर दीपावली में लोग ना पटाखे जलाते हैं ना ही आतिशबाजी सिर्फ लकड़ी से मशाले जलाकर महासू देवता के नाम से दीपावली की शुरुआत करते हैं.

इस त्योहार में गांव का मुखिया देवता के नाम से पंचायती आंगन में अखरोट बिखेरते हैं, जिसे स्थानीय गांव के लोग प्रसाद के रूप में ग्रहण करते हैं. वहीं धान से बनी खील भी यहां का मुख्य प्रसाद है. इसके साथ ही गांव का मुखिया शाही वेश धारणकर काठ के हाथी पर सवार होता है. 5 से 8 दिनों तक चलने वाले इस त्योहार में महिलाएं हारूल, तांदी नृत्य कर पर्व की बधाई देती हैं. माना जाता है कि जौनसार बावर जनजाति पूरे विश्व में अपनी संस्कृति और रीति रिवाज की दृष्टि से अलग पहचान रखता है.

इस संबंध में जौनसार बावर ऐतिहासिक संदर्भ के पुस्तक के लेखक टीका राम शाह बताते हैं कि जौनसार बावर में मनाई जाने वाली दीपावली एक माह बाद मनाते हैं और यह रात्रि का त्योहार है. इन दिनों न ज्यादा सर्दी होगी है और न ही गर्मी. लोग फुर्सत के पलों में होते हैं. दीपावली का त्योहार लोग आनंदमय तरीके से मनाते हैं. इसलिए एक महीने बाद यहां दीपावली मनाई जाती है कि कुछ लोग जो कहते हैं कि 14 साल वनवास के बाद राजाराम अयोध्या पहुंचे थे, जिसकी सूचना देरी से मिली, लेकिन ऐसा नहीं है.

पढे़ं- उड़ान योजना: केंद्रीय नागरिक उड्डयन राज्य मंत्री ने की उत्तराखंड में उड़ान योजना की समीक्षा

जौनसार बावर क्षेत्र में मनाई जाने वाली दीपावली , इस जनजाति का अपना त्योहार है. जिसे दियाई कहते हैं. भले ही इसे दीपावाली का रूप दिया हो लेकिन जौनसार बावर की विशेषता है कि यहां की जनजाति ने अपने पारंपरिक त्योहारों में बदलाव नहीं लाया है. यह जनजाति इस त्योहार को महासू देवता के नाम से मनाई जाती है.

Intro:विकासनगर जौनसार बावर जनजाति क्षेत्र में नई दीपावली के ठीक एक माह बाद मनाई जाती है पर्वतीय दीपावली जिसे स्थानीय भाषा में दियाई कहा जाता है यह दीपावली महासू देवता के नाम को समर्पित मानी जाती है यह क्षेत्र देश विदेश में अपनी संस्कृति से अलग पहचान बनाए हुए हैं कृषि प्रधान क्षेत्र होने के कारण यहां के लोग खेती किसानी में व्यस्त होने के कारण 1 माह बाद दीपावली मनाते हैं जिसमें की विमल वृक्ष की पतली पतली लकड़ियों से मशाले जलाकर प्रकाश पर्व के रूप में दीपावली का शुभारंभ किया जाता है 5 से 8 दिन तक मनाई जाने वाली यह दीपावली जौनसार बावर जनजाति क्षेत्र का मुख्य त्योहार है बाबर के कुछ क्षेत्र में नई दीपावली को ही पुराने परंपरा के अनुसार ही मनाने लगे हैं


Body:जहां देश दुनिया के लोग नई दीपावली में खूब आतिशबाजी और पटाखों से पर्यावरण को नुकसान पहुंचाते है वही एक ऐसा जौनसार बावर जनजातीय क्षेत्र है जहां ठीक नई दीपावली के एक माह बाद दीपावली मनाई जाती है इस दीपावली में लोग ना पटाखे जलाते हैं ना ही आतिशबाजी सिर्फ विमल की लकड़ी से मशाले जलाकर महासू देवता के नाम से दीपावली की शुरुआत करते हैं दीपावली को स्थानीय भाषा में दियाई कहा जाता है 5 से 8 दिनों तक चलने वाला यह त्यौहार जौनसार बावर जनजाति क्षेत्र का मुख्य त्यौहार है इस त्यौहार में गांव का मुखिया देवता के नाम से पंचायती आंगन में अखरोट बिखेरते हैं जिसे स्थानीय गांव के लोग प्रसाद के रूप में ग्रहण करते हैं वही धान से बनी चिवडा भी मुख्य व्यंजन माना जाता है दीपावली में किसी गांव में काठ का हाथी पर सवार गांव का मुखिया राजशाही वस्त्रों में बैठाया जाता है तो कहीं काठ का हिरण बनाकर नृत्य कराया जाता है 5 से 8 दिनों तक चलने वाले इस त्यौहार में जैदौई पर्व में महिलाएं हारूल तांदी नृत्य कर पर्व की बधाई देती है माना जाता है कि जौनसार बावर जनजाति क्षेत्र पूरे विश्व में अपनी संस्कृति रीति रिवाज त्यौहार वेशभूषा से अलग पहचान रखता है जौनसार बावर जनजातीय क्षेत्र के देश-विदेश विदेश में नौकरीपेशा लोग अपने इस पारंपरिक दियाई मनाने बड़े ही उत्साह के साथ अपने गांव पूछते हैं और इस मुख्य त्यौहार का हिस्सा बनकर दियाई को हर्ष और उल्लास के साथ मनाते हैं हाथ में मसाले लेकर अंधकार को दूर कर प्रकाश पर्व के रूप में महासू देवता को समर्पित दीपावली मनाई जाती है


Conclusion:वही चकराता के जौनसार बावर एक संदर्भ पुस्तक के लेखक टीका राम शाह बताते हैं कि जौनसार बावर में मनाई जाने वाली दीपावली एक माह बाद पिछले मनाते हैं कि यह क्षेत्र कृषि प्रधान क्षेत्र है यहां कोई भी त्यौहार अपने कृषि कार्य को पूरा कर उसके बाद एक उत्सव के रूप में मनाते हैं दीपावली रात्रि का त्यौहार है हल्का हल्का ठंड का मौसम होता है लोग फुर्सत के पलों में होते हैं इस त्यौहार को लोग आनंदमय तरीके से मनाते हैं इसलिए एक महीने बाद यहां दीपावली मनाई जाती है कुछ लोग जो कहते हैं कि सूचना देरी से मिली ऐसा नहीं है .
यह जनजातीय का अपना त्यौहार है जिसे दियाई कहते हैं भले ही दिवाली का रूप दिया हो लेकिन जौनसार बावर की विशेषता है कि हमने अपने पारंपरिक त्यौहारों में बदलाव नहीं लाया है हम इसे अपने देवता के नाम से मनाते हैं और देवताओं के नाम में अतिक्रमण नहीं करते जनजाति त्यौहार दीपावली में विमल की लकड़ी से मशाले जिसे स्थानीय भाषा में ओला कहते हैं जलाकर गांव के लोग गाजे बाजे के साथ गीत गाते हैं साथ ही दिवाली मनाते हैं स्थानीय व्यंजन भी अलग-अलग त्योहारों में अलग-अलग होते हैं वह वाद्य यंत्र भी अलग-अलग होते हैं जैसे दीपावली का मुख्य व्यंजन चिवडा, अखरोट प्रसाद के रूप में नाते रिश्तेदारों को बांटा जाता है यही हमारे क्षेत्र की विशेषता है कि यहां के त्यौहार अपनी अलग पहचान बनाए हुए हैं

वन टू वन
Last Updated : Oct 25, 2019, 12:28 PM IST
ETV Bharat Logo

Copyright © 2024 Ushodaya Enterprises Pvt. Ltd., All Rights Reserved.