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देवस्थानम बोर्ड के लिए गठित समिति के अध्यक्ष को मिला कैबिनेट मंत्री का दर्जा

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Published : Sep 2, 2021, 9:49 PM IST

Updated : Sep 2, 2021, 10:08 PM IST

मुख्यमंत्री ने देवस्थानम बोर्ड के संबंध में गठित समिति के अध्यक्ष को कैबिनेट मंत्री का दर्जा देने की स्वीकृति दे दी है.

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देवस्थानम बोर्ड के लिए गठित समिति के अध्यक्ष को मिला कैबिनेट मंत्री का दर्जा

देहरादून: देवस्थानम बोर्ड के मामले में आज एक बड़ा फैसला लिया गया है. सीएम पुष्कर सिंह धामी ने ने देवस्थानम बोर्ड के लिए गठित की गई समिति के अध्यक्ष को कैबिनेट मंत्री का दर्जा देने को स्वीकृति दी है.

मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी ने देवस्थानम बोर्ड के संबंध में सभी सम्बन्धित पक्षों से बात कर इस इसका फैसला लिया है. उन्होंने देवस्थानम बोर्ड के लिए गठित समिति के अध्यक्ष मनोहर कांत ध्यानी को कैबिनेट मंत्री का दर्जा दिये जाने की स्वीकृति प्रदान की है. मुख्यमंत्री ने अपर सचिव धर्मस्व को समिति का सदस्य सचिव नामित किये जाने के भी निर्देश दिये हैं.

बता दें उत्तराखंड में देवस्थानम बोर्ड को लेकर पिछले काफी समय से चल रहे विवाद के समाधान के लिए प्रदेश सरकार ने पूर्व राज्यसभा सांसद और बदरीनाथ-केदारनाथ मंदिर समिति के पूर्व अध्यक्ष मनोहर कांत ध्यानी को उत्तराखंड के समस्त चार धाम हक-हकूक धारियों से बातचीत और उनके सुझाव लेने के लिए उच्च स्तरीय समिति के अध्यक्ष पद पर नियुक्त किया था. वे संबंधित पक्षकारों से बातचीत कर उनके सुझाओं को तीन माह के अंदर शासन के समक्ष रखेंगे.

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क्या है देवस्थानम बोर्ड :उत्तराखंड सरकार ने साल 2019 में विश्व विख्यात चारधाम समेत प्रदेश के अन्य 51 मंदिरों को एक बोर्ड के अधीन लाने को लेकर उत्तराखंड चारधाम देवस्थानम प्रबंधन बोर्ड का गठन किया. बोर्ड के गठन के बाद से ही लगातार धामों से जुड़े तीर्थ पुरोहित और हक-हकूकधारी इसका विरोध कर रहे हैं. बावजूद इसके तत्कालीन मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत ने तीर्थ पुरोहितों के विरोध को दरकिनार करते हुए चारधाम देवस्थानम बोर्ड को लागू किया.

क्यों पड़ी बोर्ड की जरूरत: बदरी-केदार हो या गंगोत्री-यमुनोत्री, ये मंदिर प्राइवेट नहीं हैं. यह लोगों ने बनवाए हैं. यहां बेशुमार पैसे के अलावा चांदी-सोना भी चढ़ता है. लेकिन उस पैसे का कोई हिसाब नहीं होता. यही सब पहले वैष्णो देवी मंदिर में भी होता था लेकिन जब उसे श्राइन बोर्ड बना दिया गया तो सब बदल गया. अब वहां मंदिर के पैसे से ही स्कूल चल रहे हैं, अस्पताल चल रहे हैं. धर्मशालाएं बनाई गई हैं और यूनिवर्सिटी भी बना दी है. उत्तराखंड सरकार भी अपनी यही मंशा बता रही है.

बोर्ड गठन को लेकर कब-कब क्या हुआ: साल 2017 में बीजेपी सत्ता में आई. इसके बाद वैष्णो देवी और तिरुपति बालाजी बोर्ड की तर्ज पर यहां भी चारधाम के लिए बोर्ड बनाने की कसरत हुई. चारधाम समेत प्रदेश के 51 मंदिरों को एक बोर्ड के अधीन लाने को लेकर साल 2019 में प्रस्ताव तैयार किया गया था. 27 नवंबर 2019 को सचिवालय में हुई मंत्रिमंडल की बैठक में जम्मू-कश्मीर में बने श्राइन एक्ट की तर्ज पर उत्तराखंड चारधाम बोर्ड विधेयक-2019 को मंजूरी दी गयी.

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इस विधेयक को 5 दिसंबर 2019 में हुए सत्र के दौरान सदन के भीतर पारित कर दिया गया. इसके बाद 14 जनवरी 2020 को देवस्थानम विधेयक राजभवन से मंजूरी मिलने के बाद एक्ट के रूप में प्रभावी हो गया. 24 फरवरी 2020 को चारधाम देवस्थानम बोर्ड का सीईओ नियुक्त किया गया था. बोर्ड के सीईओ पद पर मंडलायुक्त रविनाथ रमन को जिम्मेदारी सौंपी जा चुकी है.

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लगातार हो रहा विरोध: साल 2019 में जब देवस्थानम बोर्ड बनाने के प्रस्ताव पर जब कैबिनेट में मुहर लगी थी, उसके बाद से ही तीर्थ पुरोहितों ने इसका विरोध करना शुरू कर दिया था. शुरुआती दौर में तीर्थ पुरोहितों के विरोध करने की मुख्य वजह यह थी कि राज्य सरकार ने बोर्ड का नाम वैष्णो देवी के श्राइन बोर्ड के नाम पर रखा था. बोर्ड बनाने का जो प्रस्ताव तैयार किया गया था उसमें पहले इस बोर्ड का नाम उत्तराखंड चारधाम श्राइन बोर्ड रखा गया था. जिसके बाद राज्य सरकार ने साल 2020 में उत्तराखंड चारधाम देवस्थानम प्रबंधन बोर्ड रख दिया. बावजूद इसके तीर्थ पुरोहितों ने अपना विरोध जारी रखा है.

Last Updated : Sep 2, 2021, 10:08 PM IST
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