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तिरंगे में लिपटने का सौभाग्य हर किसी को नहीं होता हासिल, पर कब तक करते रहेंगे गर्व महसूस?

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Published : Feb 17, 2019, 2:15 PM IST

उत्तराखंड का एक और लाल हुआ शहीद. सोमवार को सैन्य सम्मान से होगी अंतिम विदाई.

शहीद चित्रेश

देहरादून: सड़कों पर लोगों का भारी हुजूम और मां भारती के नारों के साथ आज देवभूमि एक बार फिर से गमजदा दिखी. नम आंखों से शहीदों को याद करते हुए लोगों का दिल रो रहा था. पुलवामा आतंकी हमले में शहीद हुए जांबाज सैनिकों का पार्थिव शरीर आज सुबह उनके गृहक्षेत्र लाया गया. जहां उनके दर्शनों के लिए जनसैलाब उमड़ पड़ा.

धर्मनगरी की सुबह यूं तो हर रोज खास होती है, लेकिन आज के लिए ये सुबह कुछ अलग ही थी. आज सुबह पुलवामा आतंकी हमले में शहीद मोहन लाल रतूड़ी का पार्थिव शरीर अंतिम संस्कार के लिए खड़खड़ी घाट लाया गया. आम तौर पर भक्ति में डूबी धर्मनगरी की फिजाओं में शहीद की विजय गाथा के नारे गूंज रहे थे. दिलों में उबलती देशभक्ति की भावनाएं लिए लोगों की उमड़ती भीड़ मानों शहीद के अंतिम दर्शन कर खुद को धन्य कर लेना चाहती थी. शहीद के बड़े बेटे शंकर ने उन्हें मुखाग्नि दी. इस मौके पर क्या आम और क्या खास सभी की आंखें नम थी.

शहीद को आखिरी सलाम.

बात अगर खटीमा की करें को यहां भी कमोवेश ऐसे ही हालात थे. शहीद वीरेंद्र राणा का पार्थिव शरीर आज सुबह उनके पैतृक गांव पहुंचा. तिरंगे में लिपटा शरीर देखकर परिवार को ढांढस बधांते लोग भी खुद की आंखों से बहते आंसूओं के सैलाब को नहीं रोक पाये. इस दौरान शहीद के अंतिम दर्शनों के लिए लोगों की भारी भीड़ वहां मौजूद थी.

शहीद वीरेंद्र राणा के अंतिम दर्शन के बाद उनका पार्थिव शरीर प्रतापपुर श्मशान घाट लाया गया. अंतिम यात्रा में वीरेंद्र जिंदाबाद, वीरेंद्र अमर रहे के नारों से पूरा गांव गूंज उठा. शहीद के ढाई साल के बेटे ने उन्हें मुखाग्नि दी. इस दौरान केंद्रीय मंत्री अजय टम्टा, विधायक पुष्कर सिंह धामी और परिवहन मंत्री यशपाल आर्य ने शहीद के पार्थिव शरीर को कंधा दिया.

बहरहाल, पुलवामा आतंकी हमले के बाद लोगों में आक्रोश भरा है और पाकिस्तान की इस कायराना हरकत का सरकार भी करारा जवाब देना चाहती है. लेकिन सवाल ये उठता है कि आखिर कब तक यूं ही भारतीय जवान सीमा पर शहीद होते रहेंगे? तिरंगे में लिपटने का सौभाग्य हर किसी को हासिल नहीं होता, लेकिन हम कब तक गर्व महसूस करते रहेंगे. आखिर ऐसा कब तक चलेगा?

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तिरंगे में लिपटने का सौभाग्य हर किसी को नहीं होता हासिल, पर कब तक करते रहेंगे गर्व महसूस? 

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देहरादून: सड़कों पर लोगों का भारी हुजूम और मां भारती के नारों के साथ आज देवभूमि एक बार फिर से गमजदा दिखी. नम आंखों से शहीदों को याद करते हुए लोगों का दिल रो रहा था. पुलवामा आतंकी हमले में शहीद हुए जांबाज सैनिकों का पार्थिव शरीर आज सुबह उनके गृहक्षेत्र लाया गया. जहां उनके दर्शनों के लिए जनसैलाब उमड़ पड़ा.



धर्मनगरी की सुबह यूं तो हर रोज खास होती है, लेकिन आज के लिए ये सुबह कुछ अलग ही थी. आज सुबह पुलवामा आतंकी हमले में शहीद मोहन लाल रतूड़ी का पार्थिव शरीर अंतिम संस्कार के लिए खड़खड़ी घाट लाया गया. आम तौर पर भक्ति में डूबी धर्मनगरी की फिजाओं में शहीद की विजय गाथा के नारे गूंज रहे थे. दिलों में उबलती देशभक्ति की भावनाएं लिए लोगों की उमड़ती भीड़ मानों शहीद के अंतिम दर्शन कर खुद को धन्य कर लेना चाहती थी. शहीद के बड़े बेटे शंकर ने उन्हें मुखाग्नि दी. इस मौके पर क्या आम और क्या खास सभी की आंखें नम थी.



बात अगर खटीमा की करें को यहां भी कमोवेश ऐसे ही हालात थे. शहीद वीरेंद्र राणा का पार्थिव शरीर आज सुबह उनके पैतृक गांव पहुंचा. तिरंगे में लिपटा शरीर देखकर परिवार को ढांढस बधांते लोग भी खुद की आंखों से बहते आंसूओं के सैलाब को नहीं रोक पाये. इस दौरान शहीद के अंतिम दर्शनों के लिए लोगों की  भारी भीड़ वहां मौजूद थी. 



शहीद वीरेंद्र राणा के अंतिम दर्शन के बाद उनका पार्थिव शरीर प्रतापपुर श्मशान घाट लाया गया. अंतिम यात्रा में वीरेंद्र जिंदाबाद, वीरेंद्र अमर रहे के नारों से पूरा गांव गूंज उठा. शहीद के ढाई साल के बेटे ने उन्हें मुखाग्नि दी. इस दौरान केंद्रीय मंत्री अजय टम्टा, विधायक पुष्कर सिंह धामी और परिवहन मंत्री यशपाल आर्य ने शहीद के पार्थिव शरीर को कंधा दिया.



बहरहाल, पुलवामा आतंकी हमले के बाद लोगों में आक्रोश भरा है और पाकिस्तान की इस कायराना हरकत का सरकार भी करारा जवाब देना चाहती है. लेकिन सवाल ये उठता है कि आखिर कब तक यूं ही भारतीय जवान सीमा पर शहीद होते रहेंगे? तिरंगे में लिपटने का सौभाग्य हर किसी को हासिल नहीं होता, लेकिन हम कब तक गर्व महसूस करते रहेंगे. आखिर ऐसा कब तक चलेगा? 


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