ETV Bharat / state

बागेश्वर में उत्तरायणी मेले का शुभारंभ, सिल्क्यारा टनल हादसे की शोभायात्रा ने खींचा ध्यान

author img

By ETV Bharat Uttarakhand Team

Published : Jan 14, 2024, 3:40 PM IST

Updated : Jan 14, 2024, 6:47 PM IST

Bageshwar Uttarayani mela,Silkyara Tunnel accident procession आज बागेश्वर और हल्द्वानी में ऐतिहासिक उत्तरायणी मेले का शुभारंभ हो गया है. मेले की झाकियों में विभिन्न संस्कृतियों की झलक देखने को मिली. इस दौरान सिलक्यारा टनल हादसे की झांकी आकर्षण का केंद्र रही.
Etv Bharat
Etv Bharat

बागेश्वर में उत्तरायणी मेले का शुभारंभ

बागेश्वर/हल्द्वानी: पौराणिक धरोहरों को समेटे उत्तराखंड की काशी के नाम से प्रसिद्ध बागेश्वर में माघ माह में होने वाले उत्तरायणी मेले की अलग ही पहचान है. सरयू, गोमती और विलुप्त सरस्वती के संगम तट पर बसे शिवनगरी बागेश्वर में हर वर्ष उत्तरायणी का मेला लगता है. इसी कड़ी में आज रंगारंग झांकियों से उत्तरायणी मेले का आगाज हुआ. जिसमें जिलाधिकारी ने झांकियों को हरी झंडी दिखाकर रवाना किया.

उत्तरायणी मेले में सिल्क्यारा टनल हादसे की शोभायात्रा ने खींचा ध्यान

बागनाथ की धरती पर काला कानून कुली बेगार का हुआ था अंत: झांकी तहसील परिसर से गोमती पुल, स्टेशन रोड, कांडा माल रोड़, सरयू पुल, दूग बाजार होते हुए नुमाइशखेत पहुंची. झांकियों में दारमा के कलाकारों का नृत्य, स्थानीय कलाकारों द्वारा प्रस्तुत झोड़ा, चांचरी और विभिन्न स्कूलों द्वारा पेश किया गया भांगड़ा और छोलिया नृतकों ने सभी का मन मोह लिया. वहीं, पूर्व राज्यपाल भगत सिंह कोश्यारी ने कहा कि उत्तरायणी मेला ऐतिहासिक काल से चलता आ रहा है. बाबा बागनाथ की यह धरती पावन धरती है. इसी पवित्र धरती से ही 1921 में अंग्रेजों के काला कानून कुली बेगार का अंत हुआ था. उन्होंने कहा कि वेदों में भी सरयू का उल्लेख है.

झांकी के माध्यम से प्रस्तुत की गई कुमाऊं संस्कृति: विभिन्न क्षेत्रों से आए सांस्कृतिक दलों ने कुमाऊंनी संस्कृति और सभ्यता को झांकी के माध्यम से प्रस्तुत किया. सांस्कृतिक दलों की टोलियों ने बाबा बागनाथ मंदिर में भी पूजा-अर्चना की. झांकी में जोहार संस्कृति पर आधारित लोक संगीत आकर्षक का केन्द्र रहा. झांकी में विकास प्रदर्शनी सहित विद्यालयों के बैंड आदि ने भी प्रतिभाग किया.

महात्मा गांधी ने की थी बागेश्वर यात्रा: गौरतलब है कि अंग्रेजों के काला कानून कुली बेगार का अंत उत्तरायणी के दौरान 14 जनवरी, 1921 में कुमाऊं केसरी बद्री दत्त पांडे की अगुवाई में हुआ था. तब इसका प्रभाव पूरे उत्तराखंड में रहा. कुमाऊं मंडल में इस कुप्रथा की कमान बद्री दत्त पांडे के हाथ में थी. वहीं गढ़वाल मंडल में इसकी कमान अनुसूया प्रसाद बहुगुणा के हाथों में थी. 13 जनवरी 1921 को संक्रान्ति के दिन एक बड़ी सभा हुई और 14 जनवरी को कुली बेगार के रजिस्टरों को सरयू में प्रवाहित कर कुली बेगार का अंत किया गया. इस काले कानून का खात्मा होने के बाद 28 जून 1929 को राष्ट्रपिता महात्मा गांधी ने बागेश्वर की यात्रा की और नुमाइशखेत मैदान में सभा की और इस अहिंसक आंदोलन की सफलता पर लोगों के प्रति कृतज्ञता जताकर इसे रक्तहीन क्रांति की संज्ञा दी.

ये भी पढ़ें: उत्तरायणी मेले में लोक गायिका माया उपाध्याय से छेड़े सुरों के तार, जमकर झूमे दर्शक

सिलक्यारा टनल हादसे की झांकी आकर्षण का केंद्र: हल्द्वानी में उत्तरायणी पर्व पर पर्वतीय उत्थान मंच हल्द्वानी द्वारा भव्य शोभा यात्रा निकाली गई. शोभायात्रा में भारी संख्या में महिलाएं और पुरुष शामिल हुए. साथ ही रंगारंग सांस्कृतिक कार्यक्रम और शोभायात्रा निकाली गई. इस मौके पर उत्तराखंड के विभिन्न सांस्कृतिक झांकियां देखने को मिली. जिसमें उत्तरकाशी के सिलक्यारा टनल हादसे की झांकी आकर्षण का केंद्र रही.

ये भी पढ़ें: Watch Video: उत्तरायणी महोत्सव में बच्चों ने दी शानदार प्रस्तुति, जमकर थिरके लोग

Last Updated :Jan 14, 2024, 6:47 PM IST
ETV Bharat Logo

Copyright © 2024 Ushodaya Enterprises Pvt. Ltd., All Rights Reserved.