ETV Bharat / city

Indian Idol 12 विजेता पवनदीप का 'कुमाऊं कोकिला' कबूतरी देवी से है खास नाता, ऐसे बढ़ा रहे विरासत

author img

By

Published : Aug 16, 2021, 1:05 PM IST

Updated : Aug 16, 2021, 4:47 PM IST

उत्तराखंड के पवनदीप राजन Indian Idol 12 के विजेता बन गए हैं. क्या आप जानते हैं पवनदीप का उत्तराखंड की पहली लोकगायिका कबूतरी देवी से क्या रिश्ता-नाता है. नहीं जानते तो आइए हम आपको बताते हैं.

indian-idol-12-winner
पवनदीप राजन

देहरादून: इन दिनों पहाड़ के लोगों की जुबान पर एक गाना अक्सर सुनने को मिलता है- 'आज पनी जों-जों, भोल पनी जों-जों'. ये उत्तराखंड की पहली लोकगायिका कबूतरी देवी का मशहूर गाना है. दरअसल ये गाना कबूतरी देवी ने गाया था. अपने संघर्ष के दिनों में पवनदीन राजन ने भी ये गाना गाया था. आप सोच रहे होंगे कोई भी गायक किसी का भी गाना गा सकता है. पुराने गायकों के गाने नए गायक गाते ही हैं. जी हां आप सही सोच रहे हैं. लेकिन पवनदीप का इस गाने से इससे भी बढ़कर रिश्ता-नाता है.

पवनदीप की नानी थीं कबूतरी देवी: दरअसल पवनदीप राजन उत्तराखंड की पहली लोकगायिका कबूतरी देवी के नाती हैं. दरअसल, गायिका कबूतरी देवी की बहन लक्ष्मी देवी पवनदीप की नानी हैं. अब तक देश-विदेश में 1200 से ज्यादा स्टेज प्रोग्राम कर चुके पवनदीप की एक पहचान ये भी है.

पवनदीप की नानी थीं कबूतरी देवी

उत्तराखंड की पहली लोकगायिका थीं कबूतरी देवी: कबूतरी देवी (1945-7 जुलाई 2018) एक भारतीय उत्तराखंडी लोकगायिका थीं. उन्होंने उत्तराखंड के लोक गीतों को आकाशवाणी और प्रतिष्ठित मंचों के माध्यम से प्रसारित किया था. सत्तर के दशक में उन्होंने रेडियो जगत में अपने लोकगीतों को नई पहचान दिलाई. उन्होंने आकाशवाणी के लिए 100 से अधिक गीत गाए. कुमाऊं कोकिला के नाम से प्रसिद्ध कबूतरी देवी राष्ट्रपति पुरस्कार से सम्मानित थीं.

पवनदीप उत्तराखंड की पहली लोकगायिका कबूतरी देवी के नाती हैं. पवनदीप के पिता भी उत्तराखंड के लोक गायक हैं. वो 1200 से ज्यादा स्टेज शो कर चुके हैं. पवनदीप ने कुमाऊं विवि नैनीताल से स्नातक किया है. पवनदीप गिटार, कीबोर्ड, तबला, पियानो के साथ ही ढोलक समेत कई वाद्य यंत्र बजाते हैं.

2 साल की उम्र में तबला बजाने लगे थे पवनदीप: 1998 में जब पवनदीप सिर्फ 2 साल के थे तो इनकी अंगुलियां तबले पर थिरकने लगी थीं. उस वर्ष पवनदीप ने चंपावत में आयोजित कुमाऊं महोत्सव में कार्यक्रम प्रस्तुत कर अपने गुदड़ी का लाल होने का एहसास करा दिया था. आकाशवाणी अल्मोड़ा ने भी पवन के तबला वादन का कार्यक्रम प्रसारित किया था. अक्टूबर 2000 में नैनीताल में संपन्न कुमाऊं महोत्सव में जब पवनदीप ने तबले की तान छेड़ी तो तत्कालीन राज्यपाल भी मंत्रमुग्ध हो गए थे. उन्होंने पवनदीप को 11 हजार रुपए इनाम देने की घोषणा की थी.

पवनदीप की प्रतिभा से प्रभावित होकर मशहूर लोकगायिका कल्पना चौहान के पति राजेंद्र चौहान ने इन्हें अपने एलबम में ब्रेक दिया था. पवनदीप का गाया माया बांद काफी लोकप्रिय हुआ था.

1945 में हुआ था कबूतरी देवी का जन्म: पवनदीप की नानी कबूतरी देवी की बात करें तो कबूतरी का जन्म 1945 में काली-कुमाऊं (चम्पावत जिले) के एक मिरासी (लोक गायक) परिवार में हुआ था. संगीत की प्रारम्भिक शिक्षा इन्होंने अपने गांव के देब राम और देवकी देवी और अपने पिता रामकाली से ली, जो उस समय के एक प्रख्यात लोक गायक थे. लोक गायन की प्रारम्भिक शिक्षा इन्होंने अपने पिता से ही ली. वे मूल रूप से सीमांत जनपद पिथौरागढ़ के मूनाकोट ब्लॉक के क्वीतड़ गांव की निवासी थीं, जहां तक पहुंचने के लिये आज भी अड़किनी से 6 किमी पैदल चलना पड़ता है.

पति ने पहचानी थी कबूतरी देवी की प्रतिभा: कबूतरी देवी ने लोक गायन की प्रारम्भिक शिक्षा अपने पिता से ही ली. पहाड़ी गीतों में प्रयुक्त होने वाले रागों का निरंतर अभ्यास करने के कारण इनकी शैली अन्य गायिकाओं से अलग थी. विवाह के बाद इनके पति दीवानी राम ने इनकी प्रतिभा को पहचाना और इन्हें आकाशवाणी और स्थानीय मेलों में गाने के लिये प्रेरित किया. उस समय तक कोई भी महिला संस्कृतिकर्मी आकाशवाणी के लिये नहीं गाती थी.

कबूतरी देवी ने पहली बार उत्तराखंड के लोकगीतों को आकाशवाणी और प्रतिष्ठित मंचों के माध्यम से प्रचारित किया था. 70-80 के दशक में नजीबाबाद और लखनऊ आकाशवाणी से प्रसारित कुमांऊनी गीतों के कार्यक्रम से उनकी ख्याति बढ़ी. उन्होंने पर्वतीय लोक संगीत को अंतरराष्ट्रीय मंचों तक पहुंचाया था. कबूतरी देवी ने आकाशवाणी के लिए 100 से अधिक गीत गाए.

कबूतरी देवी को उत्तराखंड की तीजन बाई कहा जाता है. जीवन के 20 साल गरीबी में बिताने के बाद 2002 से उनकी प्रतिभा को सम्मान मिलना शुरू हुआ. पहाड़ी संगीत की लगभग सभी प्रमुख विधाओं में पारंगत कबूतरी देवी मंगल गीत, ऋतु रैण, पहाड़ के प्रवासी के दर्द, कृषि गीत, पर्वतीय पर्यावरण, पर्वतीय सौंदर्य की अभिव्यक्ति, भगनौल, न्यौली, जागर, घनेली, झोड़ा और चांचरी प्रमुख रूप से गाती थीं.

ये भी पढ़ें: कबूतरी देवी के गीतों में झलकता है पहाड़ का दर्द, कुमाऊं से थी आकाशवाणी की पहली गायिका

2018 में हुआ था कबूतरी देवी का निधन: पांच जुलाई 2018 को अस्थमा व हार्ट की दिक्कत के बाद रात एक बजे कबूतरी देवी को पिथौरागढ़ के जिला अस्पताल में दाखिल करवाया गया था. उनकी बिगड़ती हालत को देखकर 6 जुलाई को डॉक्टरों ने देहरादून हायर सेंटर रेफर किया था, लेकिन धारचूला से हवाई पट्टी पर हेलीकॉप्टर के न पहुंच पाने के कारण वह इलाज के लिए हायर सेंटर नहीं जा पाईं. इस दौरान उनकी हालत बिगड़ गई और उन्हें वापस जिला अस्पताल में भर्ती कराया गया. अगले दिन उनका निधन हो गया.

उन्होंने अपने 20 साल अभावों में गुजारे. वर्ष 2002 में उन्हें नवोदय पर्वतीय कला केन्द्र, पिथौरागढ़ ने छोलिया महोत्सव में बुलाकर सम्मानित किया गया तथा लोक संस्कृति कला एवं विज्ञान शोध समिति ने उन्हें अल्मोड़ा में सम्मानित किया. इसके अलावा इन्हें पहाड़ संस्था ने भी सम्मानित किया. उत्तराखंड का संस्कृति विभाग भी उन्हें प्रतिमाह पेंशन देता था. 2016 में 17वें राज्य स्थापना दिवस के अवसर पर उत्तराखंड सरकार ने उन्हें लोकगायन के क्षेत्र में लाइफटाइम अचीवमेंट अवार्ड से भी सम्मानित किया था.

पवनदीप के परिवार की आर्थिक स्थिति थी कमजोर: जब पवन छोटे थे तो परिवार की माली हालत ठीक नहीं थी. पिता भी संगीत के जरिए कुछ खास नहीं कमा पाते थे. बाद में उन्होंने एक प्राइवेट स्कूल में संगीत शिक्षक की भी नौकरी की. पवन की मेहनत और लगन उसको आगे लेकर आई. कॉलेज के दिनों में वह चंडीगढ़ में एक बैंड में भी शामिल हुए, जहां से उन्होंने गिटार, पियानो तथा अन्य वाद्य यंत्रों में भी महारत हासिल की.

ये भी पढ़ें: उत्तराखंड के पवनदीप राजन बने Indian Idol 12 के विनर, सीएम धामी ने दी बधाई

चंपावत जिले में जब 1 महीने पूर्व पवनदीप राजन पहुंचे थे तो यहां उनका भव्य स्वागत किया गया था. पवनदीप के इंडियन आइडियल 12 के विजेता बनने पर चंपावत जिले के साथ पूरे उत्तराखंड में खुशी की लहर है.

पवनदीप राजन कोरोना काल में मुंबई में आर्थिक संकट से परेशान होकर गांव आ गए थे. उन्होंने लोन लेकर अपना स्टूडियो खोला था. इसी बीच उन्हें इंडियन आइडल का ऑफर आया और वह ऑडिशन के लिए मुंबई चले गए वहीं से फिर एक बार उनका सितारा बुलंदियों पर पहुंच गया.

Last Updated : Aug 16, 2021, 4:47 PM IST
ETV Bharat Logo

Copyright © 2024 Ushodaya Enterprises Pvt. Ltd., All Rights Reserved.