...तो 1976 में हो गई थी जोशीमठ पर खतरे की भविष्यवाणी, पर सोई रहीं सरकारें!

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Published : Jan 10, 2023, 10:56 AM IST

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उत्तराखंड के जोशीमठ में 678 से ज्यादा घरों में दरारें आईं हैं और यह संकट गहराता जा रहा है, लेकिन ये संकट आज का नहीं है. 1976 में 18 सदस्यीय समिति ने चेतावनी दी थी कि जोशीमठ शहर भौगोलिक रूप से अस्थिर है. इसके साथ ही समिति ने कई प्रतिबंधों के साथ सुझाव भी दिया था, लेकिन तब से अब तक सरकारें सोई रहीं. जिसका नतीजा हुआ कि जोशीमठ जैसा ऐतिहासिक शहर पाताल में समा रहा है.

1976 में हो गई थी जोशीमठ पर खतरे की भविष्यवाणी.

देहरादून: सरकारी लापरवाही और उदासीनता ने आज जोशीमठ के हर परिवार को दर बदर कर दिया है. कहते हैं मुसीबत बता कर नहीं आती लेकिन जोशीमठ के मामले में ऐसा नहीं. आज से लगभग 50 साल पहले 18 सदस्यीय समिति ने चेतावनी दी थी कि जोशीमठ शहर भौगोलिक रूप से अस्थिर है. इसके साथ ही समिति ने कई प्रतिबंधों के साथ सुझाव भी दिया था, लेकिन तब से अब तक सरकारें सोई रहीं.

जोशीमठ शहर पर खतरे की भविष्यवाणी (Prediction of danger on Joshimath city) साल 1976 में ही कर दी गई थी. यही नहीं इसके बाद भी साल 2001 में इससे जुड़ी एक रिपोर्ट ने जोशीमठ पर खतरे के सिग्नल दिए थे. हालांकि, जोशीमठ शहर के भू-धंसाव और भूस्खलन के पीछे कई वजह है. लेकिन सेंट्रल हिमालय पर मौजूद जोशीमठ (Joshimath in the Central Himalayas) का मेन सेंट्रल थ्रस्ट क्षेत्र (main central thrust area) में होना इसकी सबसे बड़ी वजह माना जा रहा है.

एमसी मिश्रा की रिपोर्ट: जोशीमठ शहर में करीब 564 घरों और होटलों में दरारें आने से स्थानीय लोगों और व्यापारियों में खौफ का माहौल है. राज्य सरकार और प्रशासन भी हालात से निपटने के लिए एक्शन प्लान तैयार कर रहा है, लेकिन आपको जानकर हैरानी होगी कि जोशीमठ में भूस्खलन और भू धंसाव के खतरे की जानकारी साल 1976 की ही कुछ रिपोर्ट में दी जा चुकी थी. जिसे 1976 के तत्कालीन गढ़वाल कमिश्नर एमसी मिश्रा की अध्यक्षता वाली 18 सदस्य समिति ने तैयार किया था.

रिपोर्ट में जोशीमठ पर खतरे का जिक्र: रिपोर्ट में साफ था कि भूस्खलन से बचने के लिए कैसे जोशीमठ शहर में वृक्षारोपण समेत स्थानीय लोगों की भूमिका को तय किया जा सकता है. हालांकि, इसके बाद भी कुछ रिसर्चर्स ने जोशीमठ शहर पर मंडरा रहे खतरे को अपनी रिपोर्ट में बयां किया था. साल 2001 में एमपीएस बिष्ट और पीयूष रौतेला ने भी ऐसा ही एक रिसर्च पेपर सबमिट किया था. इस रिसर्च पेपर में जोशीमठ के सेंट्रल हिमालयन में होने की बात लिखी गई थी.

एमसीटी जोन में जोशीमठ: साल 1936 में भी Heim and Gansser ने हिमालय क्षेत्र में एक्सपीडिशन किया था, इस दौरान उन्होंने हेलंग से 900 मीटर दूर MCT यानी मेन सेंट्रल थ्रस्ट को चिन्हित किया था. इसके अलावा तपोवन में भी दूसरा मेन सेंट्रल थ्रस्ट होने की बात कही गई है.
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बेहद कमजोर मेन सेंट्रल थ्रस्ट क्षेत्र: उत्तराखंड स्पेस एप्लीकेशन सेंटर (Uttarakhand Space Application Center) के निदेशक एमपीएस बिष्ट ने कहते हैं कि उत्तराखंड के ज्यादातर गांव 1900 मीटर से 2500 मीटर की ऊंचाई पर बसे हुए हैं और यह गांव इंडियन और तिब्बतन प्लेट के बीच में मौजूद उन क्षेत्रों में भी हैं, जो मेन सेंट्रल थ्रस्ट यानी बेहद कमजोर क्षेत्र में मौजूद है.

जोशीमठ पर खतरे के कई कारण: जोशीमठ शहर पर खतरे के लिए कई वजह जिम्मेदार हो सकती है. जिसमें छोटे-छोटे भूकंप और पानी से भूमि का कटाव शामिल है. इसमें अलकनंदा और धौलीगंगा दोनों ही नदियां जोशीमठ शहर के नीचे की मिट्टी का कटान कर रही. इसके अलावा शहर पर निर्माण का भारी दबाव और टनल जैसे निर्माण कार्य भी जिम्मेदार है. पहले से ही जो क्षेत्र एमसीटी लाइन पर हो, वहां इस तरह के दूसरे कारण शहर को खतरे में डालने के लिए काफी है.
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जोशीमठ के लिए एक्शन प्लान की जरूरत: गौरतलब है कि जोशीमठ शहर में पिछले कुछ समय में कई भूकंप भी महसूस किए गए. खुद शासन भी मानता है कि जोशीमठ शहर में आ रही दरारों के पीछे यह भी एक बड़ी वजह हो सकते हैं. सचिव आपदा रंजीत सिन्हा कहते हैं कि क्योंकि यह क्षेत्र मेन सेंट्रल थ्रस्ट में आता है. इसलिए भी यह क्षेत्र भूकंप के लिहाज से बेहद खतरनाक है और इससे शहर पर खतरा और भी बढ़ जाता है. हालांकि, उन्होंने इसके लिए जल्द कोई एक्शन प्लान बनाने की बात कही.

रिसर्च को गंभीरता से नहीं लिया गया: मेन सेंट्रल थ्रस्ट को लेकर जो रिसर्च पहले हो चुकी है, उन पर गंभीरता से काम नहीं करने का खामियाजा भी जोशीमठ को भुगतना पड़ रहा है. जाहिर है कि इस पूरे मामले में सबसे ज्यादा नुकसान स्थानीय लोगों और व्यापारियों का हो रहा है, लेकिन इसी में दूसरा पहलू सामरिक भी है. क्योंकि यह जिला अंतरराष्ट्रीय सीमा से भी जुड़ा हुआ है. जोशीमठ शहर पर खतरा आने से बदरीनाथ धाम भी पूरी तरह से कट सकता है. लिहाजा, इस पूरे हालात को देखते हुए अब सरकार और शासन युद्ध स्तर पर काम करने के लिए तैयार होते दिख रहे हैं.

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