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आजादी का अमृत महोत्सव : दशकों बाद आज भी अंग्रेजी हुकूमत पर धब्बा है जलियांवाला बाग हत्याकांड

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Published : Sep 4, 2021, 5:10 AM IST

Updated : Sep 4, 2021, 5:46 PM IST

जलियांवाला बाग हत्याकांड
जलियांवाला बाग हत्याकांड

जलियांवाला बाग हत्याकांड (13 अप्रैल, 1919) भारतीय स्वतंत्रता संग्राम की महत्वपूर्ण घटना थी. इसे अंग्रेजी हुकूमत के खिलाफ भारत के स्वतंत्रता संग्राम का टर्निंग पॉइंट कहा जाता है. भारत सरकार ने 1951 में जलियांवाला बाग में इस क्रूर नरसंहार में अपनी जान गंवाने वालों की याद में एक स्मारक स्थापित किया था. संघर्ष और बलिदान के प्रतीक के रूप में यह आज भी खड़ा है और युवाओं में देशभक्ति की अलख जा रहा है. 'आजादी का अमृत महोत्सव' पर जलियांवाला बाग हत्याकांड पर पढ़िए ईटीवी भारत की स्पेशल रिपोर्ट.

हैदराबाद : 1913 के गदर आंदोलन और 1914 की कोमागाटा मारू घटना ने पंजाब के लोगों के बीच क्रांति की लहर शुरू कर दी थी. 1914 में शुरू हुए प्रथम विश्व युद्ध में, ब्रिटिश सेना में एक लाख 95 हजार भारतीय सैनिकों में से एक लाख 10 हजार सिर्फ पंजाब से थे. इन सैनिकों के बीच राष्ट्रवाद और देशभक्ति की ज्वाला धधक रही थी. क्योंकि उन्होंने दुनिया देख ली थी और उन्हें समझ में आ गया था कि देश का क्या मतलब है? अंग्रेजों को डर लगने लगा कि अगर इन सैनिकों ने विद्रोह कर दिया तो इन्हें रोकना मुश्किल हो जाएगा.

जलियांवाला बाग हत्याकांड पर देखिए रिपोर्ट

ब्रिटिश सरकार के पास इन्हें रोकने के लिए कोई सख्त कानून नहीं था. पंजाब में बदलते परिवेश को देखते हुए अंग्रेजों ने एक नए कानून के बारे में सोचा. यह नया कानून रॉलेट एक्ट (Rowlatt Act) के रूप में सामने आना था. जब ब्रिटिश सरकार ने इस पर चर्चा करना शुरू किया, तो विरोध भी शुरू हो गया और अखबारों ने भी इसका विरोध शुरू कर दिया.

देशभर में रॉलेट एक्ट का हुआ विरोध
लेखक प्रशांत गौरव ने बताया कि 1913 के गदर आंदोलन और 1914 की कोमागाटा मारू घटना ने पंजाब के लोगों में क्रांति की लहर शुरू कर दी थी. प्रथम विश्व युद्ध के दौरान, ब्रिटिश सेना में एक लाख 95 हजार भारतीय सैनिकों में से एक लाख 10 हजार सिर्फ पंजाब से थे. इन सैनिकों के बीच राष्ट्रवाद और देशभक्ति की ज्वाला धधक रही थी. क्योंकि उन्होंने दुनिया देख ली थी और उन्हें समझ में आ गया था कि देश का क्या मतलब है? अंग्रेजों को डर लगने लगा कि अगर इन सैनिकों ने विद्रोह कर दिया तो इन्हें रोकना मुश्किल हो जाएगा.

उन्होंने कहा कि ब्रिटिश सरकार के पास विद्रोह को रोकने के लिए कोई सख्त कानून नहीं था. पंजाब में बदलते माहौल को भांपते हुए अंग्रेजों ने एक नया कानून बनाने पर विचार किया. यह नया कानून रॉलेट एक्ट (Rowlatt Act) के रूप में सामने आना था. जब ब्रिटिश सरकार ने इस पर चर्चा करनी शुरू की, तो विरोध भी शुरू हो गया और पत्र-पत्रिकाओं ने भी इसके विरोध में लिखना शुरू कर दिया.

इस काले कानून के खिलाफ सत्याग्रह के तहत देशभर में विरोध प्रदर्शन हुआ, पंजाब के कई हिस्सों में भी विरोध प्रदर्शन हुए. अमृतसर में भी इसके खिलाफ प्रदर्शन चल रहे थे. प्रो. प्रशांत गौरव बताते हैं, अमृतसर में दो व्यक्तियों- डॉ सत्यपाल मलिक और डॉ. सैफुद्दीन किचलू ने इन विरोध प्रदर्शनों का नेतृत्व किया, दोनों के नेतृत्व में प्रदर्शन होते रहे. उस प्रदर्शन में महात्मा गांधी को भी बुलाने की योजना थी, महात्मा गांधी भी दो अप्रैल को मुंबई से पंजाब पहुंचने के लिए रवाना हुए, लेकिन पलवल में उन्हें रोक दिया गया और वापस मुंबई भेज दिया गया, इसलिए महात्मा गांधी अमृतसर नहीं पहुंचे. इन सबके बावजूद 18 मार्च, 1919 को रॉलेट बिल को 20 मतों के मुकाबले 35 मतों से पारित कर दिया गया.

उन्होंने कहा कि 10 अप्रैल को अमृतसर के जिला अधिकारी इरविन ने सुबह 10 बजे डॉ. सत्यपाल और डॉ. किचलू को बुलाया और धोखे से दोनों को गिरफ्तार कर लिया गया. गिरफ्तार करने के बाद उन्हें धर्मशाला भेज दिया गया.

अमृतसर में 20,000 से अधिक लोगों ने किया प्रदर्शन
दो वरिष्ठ नेताओं की गिरफ्तारी के बाद अमृतसर में तनाव और बढ़ गया. कटरा जयमल सिंह, हॉल बाजार और ऊंचा पुल इलाकों में 20,000 से अधिक लोगों ने विरोध प्रदर्शन किया. हिंसा की छिटपुट घटनाओं के बाद पंजाब के गवर्नर माइकल ओ'डायर (Michael O'Dwyer) ने स्थिति को संभालने के लिए जालंधर कैंट बोर्ड से सेना अधिकारी जनरल आर डायरे (Reginald Dyer) को बुलाया.

लेखक प्रशांत गौरव के मुताबिक, फिर जालंधर से आर डायरे को बुलाया जा रहा है, क्योंकि उसका जनता के बारे में एक अजीब दृष्टिकोण है. उससे लगता था कि जनता किसी अंग्रेज के खिलाफ खड़ी होकर बदतमीजी कर ही नहीं सकती, क्योंकि यह हमारा देश है. ये तो कीड़े-मकोड़े हैं. उत्तरी क्षेत्र में केवल एक ही व्यक्ति था- जनरल आर डायर, जो गुस्से में बोलता था.

जनरल डायर ने सशस्त्र बलों के साथ अमृतसर में किया मार्च
जलियांवाला बाग हत्याकांड से एक दिन पहले जनरल आर डायर ने सशस्त्र बलों के साथ अमृतसर में मार्च किया और कर्फ्यू लगा दिया. उन्होंने बताया कि जब वे वापस घर पहुंचे, तो उन्होंने नक्शा देखा, नक्शा देखने के बाद उन्हें पता चला कि केवल 10 प्रतिशत क्षेत्र को कवर किया गया है, 90 प्रतिशत लोगों को पता नहीं था कि मार्शल लॉ या कर्फ्यू लगाया गया है. 90 प्रतिशत लोगों को पता नहीं चला कि शहर में कर्फ्यू लगा है.

कर्फ्यू की जानकारी न होने के कारण लोग जलियांवाला बाग में एक सभा के लिए जमा हो गए. साथ ही बैसाखी का पर्व होने के चलते दूर-दूर से श्रद्धालु श्री हरमंदिर साहिब में पहुंचे थे. गोबिंदगढ़ पशु मेले में आए व्यापारी भी वहां मौजूद थे. वहीं, खुशहाल सिंह, मोहम्मद पहलवान और मीर रियाज-उल-हसन जासूसी कर रहे थे और पल-पल की जानकारी जनरल डायर को दे रहे थे.

जलियांवाला बाग में सभा के लिए हजारों लोग जमा हुए
प्रो. प्रशांत गौरव बताते हैं, 13 अप्रैल, 1919 को अमृतसर के जलियांवाला बाग में सुबह से तैयारी चल रही थी, लाउडस्पीकर लगाए गए थे. स्थानीय लोग खुश थे कि कुछ न कुछ बजने वाला है, इसलिए मोहल्ले के बच्चे, महिलाएं और बुजुर्ग भी वहां जमा हो गए थे. लेकिन 90 प्रतिशत लोग नहीं जानते थे कि क्रांतिकारियों या सत्याग्रहियों की किसी तरह की बैठक होने वाली है.

जलियांवाला बाग में शाम चार बजे से साढ़े चार बजे के बीच बैठक होनी थी, लेकिन भारी भीड़ को देखते हुए दोपहर तीन बजे ही सभा शुरू हो गई. शाम पांच बजे के आसपास जनरल डायर 25-25 सैनिकों की चार टुकड़ियों के साथ जलियांवाला बाग पहुंचा. गोरखा रेजिमेंट और अफगान रेजिमेंट के 50 सैनिकों के साथ जनरल डायर बाग में घुसा और तुरंत गोली चलाने का आदेश दे दिया.

कुल 1650 गोलियां चलाई गईं
उन्होंने बताया, जैसे ही दुर्गादास भाषण देने के लिए खड़े हुए, गोली चलनी शुरू हो गई. गोली चलने का समय शाम 5:30 बजे बताया जाता है. सैनिकों ने भीड़ पर गोली चलाना शुरू कर दिया. इससे भगदड़ मच गई. कुल मिलाकर 1650 गोलियां चलाई गईं. जलियांवाला बाग में एक कुआं था, जान बचाने के लिए महिलाएं और बच्चे कुएं में कूद गए और कुआं लाशों से भर गया. गोली कांड के बाद पूरे अमृतसर शहर में मातम पसर गया था.

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फायरिंग में घायल हुए लोगों को पानी की एक बूंद भी नसीब नहीं हुई. अगर समय पर केवल पानी या चिकित्सा सहायता मिलती तो कई लोगों की जान बचाई जा सकती थी.

लेखक प्रशांत गौरव ने बताया कि खालसा कॉलेज के प्रिंसिपल जीए वादन (G A Vadan) लाहौर गए, जहां एलजी ओ डायर बैठता था, उसको उन्होंने बताया कि 5000 लोगों की भीड़ थी, पुलिस को गोली चलानी पड़ी और 200 लोग मारे गए. यह पहला रिकॉर्ड था कि 200 लोग मारे गए. पंजाब का मुख्य सचिव जेपी थॉमसन लिखता है कि 291 लोग मारे गए, जिनमें 211 अमृतसर शहर के हैं. हंटर कमेटी ने कहा था कि गोली कांड में 379 लोग मारे गए थे. जांच समिति के मुखिया मदन मोहन मालवीय बताते हैं कि 1000 लोग मारे गए. कांग्रेस जांच समिति ने बताया था कि 1200 लोग मारे गए और 2600 लोग घायल हुए. कुल मिलाकर 1000-1500 के बीच लोग मारे गए थे. कितने लोग मारे गए थे, यह स्पष्ट नहीं है, लेकिन एक बात तो तय है कि हजारों लोग मारे गए.

शहीद उधम सिंह ने लिया जलियांवाला बाग नरसंहार का बदला
जलियांवाला बाग नरसंहार के बाद भारतीयों के आक्रोश को देखते हुए ब्रिटिश सरकार को जनरल डायर को निलंबित करना पड़ा और वह ब्रिटेन लौट गया. शहीद उधम सिंह ने 13 मार्च, 1940 को लंदन में जनरल ओ'डायर की गोली मारकर हत्या कर दी और जलियांवाला बाग नरसंहार का बदला लिया. भारत सरकार ने 1961 में, जलियांवाला बाग नरसंहार में मारे गए लोगों को श्रद्धांजलि देने के लिए वहां एक स्मारक का निर्माण करवाया, तत्कालीन राष्ट्रपति डॉ. राजेंद्र प्रसाद ने इस स्मारक का उद्घाटन किया था.

Last Updated :Sep 4, 2021, 5:46 PM IST
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