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इन बड़े कार्यों के लिए याद किए जाते हैं गोविंद बल्लभ पंत, आजादी के पहले भी दिखायी थी हनक

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Published : Sep 9, 2022, 4:30 PM IST

आज अनंत चतुर्दशी है और पंडित गोविंद बल्लभ पंत का अनंत चतुर्दशी से खास रिश्ता था. इसीलिए वह अनंत चतुर्दशी के दिन अपना जन्मदिन मनाना शुरु किया था.

Govind Ballabh Pant Life and Lifestyle Major Works
पंडित गोविंद बल्लभ पंत

नई दिल्ली : गोविंद बल्लभ पंत उत्तर प्रदेश के पहले मुख्यमंत्री (First CM of UP) के रूप में याद किए जाते हैं. इन्होंने एक स्वतंत्रता संग्राम सेनानी के रुप में काम करते हुए जेल की यात्रा की. इसके बाद उसके बाद उन्हें एक अधिवक्ता, स्वतंत्रता संग्राम सेनानी और कुशल राजनेता के रूप में याद किया जाता है, उन्होंने प्रदेश व देश के लिए कई ऐतिहासिक कार्य किए हैं. आज अनंत चतुर्दशी है और पंडित गोविंद बल्लभ पंत का अनंत चतुर्दशी से खास रिश्ता था. इसीलिए वह अनंत चतुर्दशी के दिन अपना जन्मदिन मनाना शुरु किया था.

गोविंद बल्लभ पंत का जन्म अल्मोड़ा जिले के श्यामली पर्वतीय क्षेत्र स्थित गांव खूंट में महाराष्ट्रीय मूल के एक ब्राह्मण परिवार में हुआ. इनकी मां का नाम गोविन्दी बाई और पिता का नाम मनोरथ पन्त था. हालांकि बचपन में ही पिता की मृत्यु हो जाने के कारण उनकी परवरिश उनके दादा बद्री दत्त जोशी ने की थी. गोविंद बल्लभ पंत जन्मदिन 10 सितंबर को मनाया जाता है. पर ऐसा कहा जाता है कि उनका असली जन्मदिन 30 अगस्त को पड़ा था. उनको नजदीक से जानने वाले लोगों का कहना है कि जिस दिन पंत पैदा हुए वो अनंत चतुर्दशी का दिन था. तो वह हर साल अनंत चतुर्दशी को ही जन्मदिन मनाते थे, चाहे तारीख जो भी पड़े. पर संयोग की बात 1946 में वह अपने जन्मदिन अनंत चतुर्दशी के दिन ही मुख्यमंत्री बने थे. उस दिन 10 सितंबर की तारीख थी. इसके बाद उन्होंने हर साल 10 सितंबर को ही अपना जन्मदिन मनाना शुरू कर दिया.

गोविंद बल्लभ पंत की तीन शादियां
एक जानकारी के अनुसार गोविंद बल्लभ पंत की कुल 3 शादियां हुयीं थीं. पहली शादी 1899 में 12 वर्ष की आयु में उनका विवाह गंगा देवी के साथ हो गया था, उस समय वह कक्षा सात में पढ़ रहे थे. दूसरी शादी..1909 में पंतजी के पहले पुत्र की बीमारी से मृत्यु हो गयी और कुछ समय बाद पत्नी गंगादेवी की भी मृत्यु हो गयी. उस समय उनकी आयु 23 वर्ष की थी. इस घटना के बाद वह गम्भीर व उदासीन रहने लगे तथा समस्त समय क़ानून व राजनीति को देने लगे. परिवार के लोगों के दबाव पर 1912 में पंत जी का दूसरा विवाह अल्मोड़ा में हुआ था. पंत जी को दूसरी शादी से भी एक बच्चा हुआ और कुछ दिन बाद उसकी भी मृत्यु हो गई. बच्चे की मौत के बाद पंत जी की पत्नी भी 1914 में स्वर्ग सिधार गईं. साल 1916 में पंत जी ने अपने मित्र राजकुमार चौबे के दबाव के कारण तीसरी शादी के लिए राजी हो गए. फिर काशीपुर के तारादत्त पांडे की बेटी कलादेवी से 30 साल की उम्र में पंत जी की तीसरी शादी हुई. इस शादी से पंत जी को एक पुत्र और 2 पुत्रियों की प्राप्ति हुई. पंत जी के बाद उनके बेटे केसी पंत भी राजनीति में काफी सक्रिय रहे और देश के प्रतिष्ठित योजना आयोग के पदाधिकारी भी रहे.

इलाहाबाद से कनेक्शन
1905 में उन्होंने अल्मोड़ा छोड़ दिया और इलाहाबाद चले गये थे. वहीं पर म्योर सेन्ट्रल कॉलेज में वे गणित, साहित्य और राजनीति विषयों पढ़ायी की. वह कॉलेज के अच्छे विद्यार्थियों में गिने जाते थे. अध्ययन के साथ-साथ वे कांग्रेस के स्वयंसेवक का कार्य भी करते थे. 1907 में बी.ए और 1909 में कानून की डिग्री सर्वोच्च अंकों के साथ हासिल की, जिसके लिए उनको कॉलेज की ओर से “लैम्सडेन अवार्ड” दिया गया था.

यहां बनाया कार्यक्षेत्र

1910 में वह वापस अपने मूल स्थान पर लौटने का प्लान बनाया. उन्होंने अल्मोड़ा आकर वकालत शुरू कर दी. वकालत के सिलसिले में वे पहले रानीखेत गये फिर काशीपुर में जाकर प्रेम सभा नाम से एक संस्था का गठन किया, जिसका उद्देश्य शिक्षा और साहित्य के प्रति जनता में जागरुकता उत्पन्न करना था. इस संस्था के कामकाज को देखकर ब्रिटिश स्कूलों ने काशीपुर से अपना बोरिया बिस्तर बांध लिया. 1914 में पंत जी के प्रयत्नों से ही ‘उदयराज हिन्दू हाईस्कूल’ की स्थापना हुई थी. राष्ट्रीय आन्दोलन में भाग लेने के आरोप में ब्रिटिश सरकार ने इस स्कूल के विरुद्ध डिक्री दायर कर नीलामी के आदेश पारित कर दिये. जब पंत जी को पता चला तो उन्होंनें चन्दा मांगकर इसको पूरा किया था. गोविन्द बल्लभ पंत जी का मुकदमा लड़ने का ढंग निराला था, वह मुवक़्क़िल अपने मुकदमों के बारे में सही जानकारी देने के लिए कहा करते थे, जो लोग सही जानकारी नहीं देते थे, पंत जी उनका मुक़दमा नहीं लेते थे.

जब अंग्रेज़ मजिस्ट्रेट की बोलती हो गयी थी बंद
कहा जाता है कि धोती, कुर्ता तथा गांधी टोपी अधिक प्रिय थी और अक्सर वह इसी परिधान में दिखायी देते थे. एकबार काशीपुर में गोविन्द बल्लभ पंत धोती, कुर्ता तथा गांधी टोपी पहनकर कोर्ट में मुकदमे की पैरवी के लिए चले गये, तो वहां बैठे अंग्रेज़ मजिस्ट्रेट ने आपत्ति जतायी तो उन्होंने ऐसा जवाब दिया कि उसकी बोलती बंद हो गयी. न्यायालय के जज ने इनकी खद्दर टोपी पहनने पर खास तौर पर आपत्ति थी. इन्होंने कहा कि- ''मैं न्यायालय से बाहर जा सकता हूं, लेकिन यह टोपी नहीं उतार सकता.''

मालवीय के साथ पैरवी
दिसम्बर 1921 में वे गांधी जी के आह्वान पर असहयोग आन्दोलन के रास्ते खुली राजनीति में उतर आये. 9 अगस्त 1925 को काकोरी काण्ड करके उत्तर प्रदेश के कुछ नवयुवकों ने सरकारी खजाना लूट लिया तो उनके मुकदमे की पैरवी के लिये अन्य वकीलों के साथ पन्त जी ने जी-जान से सहयोग किया. 1927 में राम प्रसाद ‘बिस्मिल’ व उनके तीन अन्य साथियों को फाँसी के फन्दे से बचाने के लिये उन्होंने पण्डित मदन मोहन मालवीय के साथ वायसराय को पत्र भी लिखा था, किन्तु गान्धी जी का समर्थन न मिल पाने से वे उस मिशन में कामयाब न हो सके थे. 1928 के साइमन कमीशन के बहिष्कार और 1930 के नमक सत्याग्रह में भी उन्होंने भाग लिया और मई 1930 में देहरादून जेल की हवा भी खायी थी. बताया जाता है कि सन 1921, 1930, 1932 और 1934 के स्वतंत्रता संग्रामों में लगभग 7 वर्ष जेलों में रहे थे.

जाने-माने इतिहासकार डॉ. अजय रावत बताते हैं कि उनकी किताब ‘फॉरेस्ट प्रॉब्लम इन कुमाऊं’ से अंग्रेज इतने भयभीत हो गए थे कि उस पर प्रतिबंध लगा दिया था. बाद में इस किताब को 1980 में फिर प्रकाशित किया गया. गोविंद बल्लभ पंत के डर से ब्रिटिश हुकूमत काशीपुर को गोविंदगढ़ कहा करती थी.

राजनीति में आने का फैसला
पंत जब वकालत करते थे तो एक दिन वह गिरीताल घूमने चले गए. वहां देखा कि दो नौजवान लड़के आपस में स्वतंत्रता आंदोलन के बारे में चर्चा कर रहे थे. यह सुनकर पंत ने उन दोनों युवकों से पूछा कि क्या यहां पर भी देश-समाज को लेकर बहस होती है. इस पर लड़कों ने कहा कि यहां एक अच्छे नेतृत्व की जरूरत है. पंत ने उसी समय से राजनीति में आने का मन बनाना शुरू किया और राजनीति में बड़ा कद हासिल किया.

पुलिस अफसर को नसीहत
जब साइमन कमीशन के विरोध के दौरान इनको पीटा गया था, तो उस घटना में एक ऐसा पुलिस अफसर शामिल था, जो पंत के मुख्यमंत्री बनने के बाद उनके अंडर में ही काम करने लगा था. जब यह बात पंत को पता लगी तो उन्होंने उस पुलिस अफसर को मिलने के लिए बुलाया. हालांकि वह उस समय डर रहा था, पर पंत ने उससे बहुत ही अच्छे से बात की और इसको अपना काम इमानदारी से करने की नसीहत दी.

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पंडित गोविंद बल्लभ पंत के साथ इंदिरा गांधी

नेहरू को सलाह व विरोध
कहते हैं कि वह पंडित जवाहर लाल नेहरू के कई कार्यों का खुलकर विरोध भी किया था. इंदिरा को कांग्रेस का प्रेसिडेंट बनाया गया तो पंत ने इसका विरोध किया. पर कुछ इतिहासकार व राजनेता इस बात की भी चर्चा करते हैं कि इंदिरा गांधी की सक्रियता व प्रतिभा को देखकर इन्होंने ही नेहरू को सलाह दी थी.

जमींदारी प्रथा को खत्म कराने में भूमिका
जमींदारी प्रथा को खत्म कराने में उनका महत्वपूर्ण योगदान बताया जाता है. बताया जाता है कि जब पन्त जी 1946 से दिसम्बर 1954 तक उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री रहे तो भूमि सुधारों में पर्याप्त रुचि होने के कारण इस पर काम करना शुरु किया. 21 मई 1952 को जमींदारी उन्मूलन क़ानून को प्रभावी बनाया.

नैनीताल तराई को आबाद करने का प्लान
मुख्यमंत्री के रूप में उनकी विशाल योजना नैनीताल तराई को आबाद करने की थी. इतिहासकार प्रो. अजय रावत बताते हैं कि पंत तराई भाबर की भूमि को आबाद करने के साथ-साथ इस क्षेत्र को कृषि के क्षेत्र में विशेष पहचान दिलाना चाहते थे. इसके लिए उन्होंने वर्ष 1945 में द्वितीय विश्व युद्ध खत्म होने के बाद बेरोजगार हो गए सैनिकों और अधिकारियों को तराई में कृषि कार्यों के लिए भूमि आवंटित कराने का काम किया. आज तराई भाबर का इलाका खेतीबारी के रुप में खूब फल फूल रहा है. इसका श्रेय गोविंद वल्लभ पंत की सोच को जाता है.

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पंडित गोविंद बल्लभ पंत के साथ इंदिरा गांधी

देश का गृहमंत्री
देश के पहले गृहमंत्री सरदार पटेल की मृत्यु के बाद जवाहर लाल नेहरु को एक ऐसे राजनीतिज्ञ की तलाश थी जो उनके जैसा प्रभावशाली व दृढ़इच्छा शक्ति वाला व्यक्ति हो. तब प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरु ने उन्हें याद किया और देश का गृह मंत्रालय संभालने की अपील की. भारत सरकार के गृहमंत्री के रुप में पन्तजी का कार्यकाल जीवन पर्यंत रहा. वह 1955 से लेकर 1961 तक देश के गृहमंत्री के रुप में कई ऐतिहासिक व सराहनीय कार्य किए. उनके निधन के पश्चात् लाल बहादुर शास्त्री उनके उत्तराधिकारी बनाए गए थे.

हिन्दी को राष्ट्रभाषा का दर्जा दिलाने में योगदान

भारतीय संविधान में हिन्दी भाषा को राष्ट्रभाषा का दर्जा दिलाने में उनका महत्वपूर्ण योगदान था. 14 सितंबर 1949 को संविधान सभा ने एक मत से निर्णय लिया कि हिंदी ही भारत की राजभाषा होगी, लेकिन देश में जब 26 जनवरी 1950 को हमारा संविधान लागू हुआ तो इसमें देवनागरी में लिखी जाने वाली हिंदी सहित 14 भाषाओं को आठवीं सूची में आधिकारिक भाषाओं के रूप में रखा गया. छोटे मोटे विरोध के बाद 26 जनवरी 1965 को हिंदी देश की राजभाषा बन गई.

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पंडित गोविंद बल्लभ पंत को समर्पित संस्थान

देश में कई जगहों पर उनके नाम से संस्थान बनाए गए हैं..

पंडित गोविन्द बल्लभ पन्त कृषि एवं प्रौद्योगिक विश्वविद्यालय, पंतनगर, उत्तराखण्ड

पंडित गोविन्द बल्लभ पन्त अभियान्त्रिकी महाविद्यालय, पौड़ी गढ़वाल, उत्तराखण्ड

पंडित गोविन्द बल्लभ पंत सागर, सोनभद्र, उत्तर प्रदेश

पंडित गोविन्द गोविन्द बल्लभ पंत इण्टर कॉलेज, काशीपुर, ऊधमसिंह नगर, उत्तराखंड

पंडित गोविन्द गोविन्द बल्लभ पंत सामाजिक विज्ञान संस्थान, झूंसी, प्रयागराज

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