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विलुप्त होते गिद्धों के हर 'राज' से उठेगा 'पर्दा', सैटेलाइट टैग से मीलों दूर तक होगी 'जासूसी'

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By ETV Bharat Hindi Team

Published : Oct 27, 2023, 10:45 PM IST

Updated : Oct 28, 2023, 1:56 PM IST

Vultures in Uttarakhand उत्तराखंड में कभी-कभार दिखने वाले कुछ बेहद खास शिकारी पक्षियों पर वन विभाग पैनी नजर रखने जा रहा है. कोशिश ये है कि इन विशेष प्रजाति के पक्षियों की हर जानकारी जुटाई जाए. ताकि, विलुप्त होने की कगार पर पहुंचे इन पक्षियों की संख्या को बढ़ाया जा सके. इनमें गिद्धों के 3 प्रजातियों समेत एक ईगल प्रजाति भी शामिल है. खास बात ये है कि इसके लिए मंत्रालय से मंजूरी मिल चुकी है. अब बस इन पक्षियों की जासूसी के लिए उपकरण लगाए जाने बाकी हैं.

Vultures in Uttarakhand
उत्तराखंड में गिद्ध

विलुप्त होते गिद्धों के हर 'राज' से उठेगा 'पर्दा'

देहरादून (उत्तराखंड): पूरी दुनिया में गिद्धों की घटती संख्या आज एक बड़ी चिंता बन गई है. भारत में भी 80 के दशक में बहुतायत में मिलने वाले गिद्ध अब विलुप्त होने की कगार पर हैं. वैसे तो सभी जीवों का पारिस्थितिकी तंत्र में अपना एक अहम योगदान है, लेकिन गिद्धों की भूमिका सामाजिक रूप से भी काफी ज्यादा है. दरअसल, गिद्ध मुर्दा खोर पक्षी है और बड़े जानवरों के शवों को कुछ ही समय में चट कर जाते हैं. इनकी यही खासियत इन्हें पर्यावरण स्वच्छता के लिहाज से भी खास बना देती है.

Vultures in Uttarakhand
उत्तराखंड में गिद्ध

गिद्ध की अहमियत को दुनियाभर देश भी अच्छी तरह से समझते हैं. यही वजह कि विलुप्त होते गिद्धों को बचाने के लिए कई कार्यक्रम चलाए जा रहे हैं. भारत में भी केंद्रीय मंत्रालय की तरफ से गिद्धों के संरक्षण पर विशेष प्रोग्राम चलाए गए हैं. खास बात ये है कि अब उत्तराखंड में भी अंतरराष्ट्रीय स्तर की संस्थाओं की मदद से एक विशेष कार्यक्रम शुरू किया जा रहा है. जिसके जरिए प्रदेश में विलुप्त होती गिद्धों की तीन प्रजातियों समेत एक ईगल प्रजाति पर भी अध्ययन किया जाएगा.

Vultures in Uttarakhand
गिद्धों पर होगा अध्ययन.

भारत सरकार के वन एवं पर्यावरण मंत्रालय की तरफ से गिद्धों की तीन प्रजाति और एक ईगल प्रजाति के अध्ययन के लिए काम किए जाने की मंजूरी दी जा चुकी है. उत्तराखंड में कॉर्बेट टाइगर रिजर्व और राजाजी नेशनल पार्क क्षेत्र को इसकी जिम्मेदारी दी गई है. जिसमें राजाजी नेशनल पार्क कार्यक्रम के नोडल के रूप में इस पूरे अध्ययन कार्यक्रम को आगे बढ़ाएगा.

Vultures in Uttarakhand
गिद्धों पर होगा अध्ययन.

विलुप्त होते इन शिकारी प्रजाति के पक्षियों पर अध्ययन के कुछ खास बिंदुः गिद्धों की तीन प्रजातियों में सफेद गिद्ध, लाल सिर वाले गिद्ध और सफेद पूंछ वाले गिद्ध शामिल हैं. प्लास फिश ईगल पर नजर रखकर अध्ययन किया जाएगा. शिकारी पक्षियों की पीठ पर पंखों के बीच उपकरण लगाए जाएंगे. सैटेलाइट टैग के माध्यम से इनकी हर गतिविधियों पर नजर रखी जाएगी. गिद्धों के भोजन, पानी की स्थिति और वास स्थल की भी जानकारी ली जाएगी.

Vultures in Uttarakhand
गिद्धों पर संकट
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अध्ययन के बाद इनके सुरक्षित फीडिंग समेत दूसरी स्थितियों में भी काम होगा. प्लास फिश ईगल की गतिविधियों पर भी जानकारी लेकर काम होगा. राजाजी और कॉर्बेट क्षेत्र में कार्यक्रम के तहत काम होगा. इसमें 1 साल से 3 साल तक अध्ययन होने की संभावना है. चार प्रजातियों के 2-2 पक्षियों पर सैटेलाइट टैग लगाया जाएगा. वहीं, सैटेलाइट के माध्यम से आसमान की ऊंचाई हो या लंबी दूरी सभी जगह इन पर नजर रहेगी.

Vultures in Uttarakhand
खतरे में कुदरती 'सफाई दूत'

उत्तराखंड के कॉर्बेट टाइगर रिजर्व और राजाजी नेशनल पार्क में इस कार्यक्रम को भारत सरकार समेत अंतरराष्ट्रीय स्तर की एजेंसी की मदद से किया जा रहा है. राजाजी नेशनल पार्क को इसका नोडल बनाया गया है और दक्षिण भारत से इसके लिए पक्षियों को पकड़ने वाले विशेषज्ञों को भी बुलाया जा रहा है. इसके तहत विशेषज्ञों की ओर से ही सैटेलाइट टैग लगाया जाएगा. इस आधुनिक सैटेलाइट टैग के जरिए पक्षियों पर नजर रखी जा सकेगी और इसके लगाए जाने से उन्हें कोई नुकसान भी नहीं होगा. यह उपकरण बेहद हल्का होने के कारण आसानी से ये शिकारी पक्षी इसे लेकर उड़ सकेंगे.

हिंदू मान्यताओं में गिद्ध या गरुड़ का विशेष उल्लेखः वैसे तो गिद्ध सामाजिक रूप से बेहद अहम हैं और इसकी पर्यावरण स्वच्छता में विशेष भूमिका है, लेकिन हिंदू मान्यताओं में भी गिद्ध या गरुड़ का विशेष उल्लेख पाया जाता है. रामायण में माता सीता के हरण के दौरान रावण के साथ जटायु जो कि गरुड़ का ही रूप है, उसका भयंकर युद्ध होने का उल्लेख है. इसके अलावा गरुड़ को भगवान विष्णु की सवारी के रूप में माना जाता है. इसीलिए गरुड़ का हिंदू मान्यताओं के लिहाज से विशेष महत्व भी है.

पेन किलर बन रही गिद्धों की मौत की वजहः गिद्धों की कम होती संख्या और उनके संकटग्रस्त होने के पीछे कई वजह मानी जाती हैं. इसके लिए अंतरराष्ट्रीय स्तर की एजेंसियों के साथ ही भारत के तमाम संस्थाओं की तरफ से भी अपनी रिपोर्ट समय-समय पर दी गई है. माना गया है कि जानवरों के चिकित्सा के दौरान डाइक्लोफिनेक का इस्तेमाल भी गिद्धों के लिए मौत के कारण बन रहा है. इसके अलावा दर्द निवारक क्रीमों और स्प्रे का इस्तेमाल भी घातक माना जाता है.
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विशेषज्ञों की मानें तो जब इन दवाओं का इस्तेमाल पशुओं पर किया जाता और उस पशु को गिद्ध अपना निवाला बनाते हैं तो उन पर विपरीत असर पड़ता है. इसके कारण उनकी मौत हो जाती है. इसके अलावा खतरनाक कीटनाशक भी न केवल उनकी मौत का वजह बन रहे हैं. बल्कि, इनके अंडों में भ्रूण की मौत भी इसके कारण हो रही है.

मुर्दाखोर शिकारी पक्षियों के लिए जहरीले मृत जानवरों को खाना उनकी अकाल मृत्यु की वजह बन जाता है, इसके लिए जरूरत है कि जानवरों में ऐसी दवाओं का चिकित्सा इस्तेमाल न हो. फिलहाल, उत्तराखंड में अब तक का सबसे बड़ा शिकारी पक्षियों पर अध्ययन का कार्यक्रम शुरू होने जा रहा है और इसमें पहली बार सैटेलाइट टैगिंग का इस्तेमाल हो रहा है.

माना जा रहा है कि इसके जरिए इन शिकारी पक्षियों की दिनचर्या को देखकर इस पर पूरा अध्ययन किया जाएगा. दूसरी तरफ जिन जगहों पर उनकी मौजूदगी होती है, वहां पर उनके लिए बेहतर माहौल बनाने की भी कोशिश होगी. ताकि, इनकी संख्या में इजाफा किया जा सके. हालांकि, कॉर्बेट से गिद्धों की गिनती का काम भी पहले ही शुरू किया गया था, लेकिन अब इनके अध्ययन को लेकर कार्यक्रम चलाया गया है.

Last Updated :Oct 28, 2023, 1:56 PM IST
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