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6th वर्ल्ड कांग्रेस ऑन डिजास्टर मैनेजमेंट कॉन्फ्रेंस का समापन, पास हुआ देहरादून डिक्लरेशन

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By ETV Bharat Hindi Team

Published : Dec 1, 2023, 8:20 PM IST

Updated : Dec 1, 2023, 9:30 PM IST

Dehradun Declaration 6th वर्ल्ड कांग्रेस डिजास्टर मैनेजमेंट कॉन्फ्रेंस में देहरादून डिक्लेरेशन किया गया. देहरादून डिक्लेरेशन में दुनियाभर में डिजास्टर मैनेजमेंट को हैंडल करने के लिए कई महत्वपूर्ण बिंदु सुझाये गये. जिसमें पर्वतीय पारिस्थितिकी तन्त्र की रक्षा,पर्वतीय समुदायों के सशक्तीकरण पर जोर,नीति एकीकरण के समर्थन पर जोर दिया गया.

Dehradun Declaration 6
6th वर्ल्ड कांग्रेस डिजास्टर मैनेजमेंट कॉन्फ्रेंस का समापन

6th वर्ल्ड कांग्रेस डिजास्टर मैनेजमेंट कॉन्फ्रेंस का समापन

देहरादून(उत्तराखंड): देहरादून में आयोजित चार दिवसीय 6th वर्ल्ड कांग्रेस ऑन डिजास्टर मैनेजमेंट कॉन्फ्रेंस का समापन हो गया है. समापन के मौके पर चार दिनों तक चले मंथन के बाद देहरादून डिक्लेरेशन जारी किया गया. देहरादून में आयोजित 6th वर्ल्ड कांग्रेस ऑन डिजास्टर मैनेजमेंट कॉन्फ्रेंस में 50 देशों के शोधकर्ता, वैज्ञानिक और नीति निर्धारक शामिल हुए.

Dehradun Declaration 6
6th वर्ल्ड कांग्रेस डिजास्टर मैनेजमेंट कॉन्फ्रेंस

28 नवंबर से 1 दिसंबर तक देहरादून में आयोजित वर्ल्ड कांग्रेस ऑन डिजास्टर मैनेजमेंट कॉन्फ्रेंस के निचोड़ के रूप में निष्कर्ष स्वरूप एक देहरादून डिक्लेरेशन जारी किया गया. जिसमें चार दिन तक चले इस मंथन के बाद दुनिया भर में आपदा प्रबंधन से निपटने के तौर तरीके सुझाए गए हैं.कार्यक्रम के मुख्य आयोजक उत्तराखंड यूकोस्ट के डायरेक्टर दुर्गेश पंत ने जारी किए गए देहरादून डिक्लेरेशन के बारे में जानकारी दी. उन्होंने बताया यह डिक्लेरेशन हमारे भविष्य के लिए बेहद महत्वपूर्ण साबित होने जा रहा है. इसमें आपदा प्रबंधन में आ रही नई चुनौतियों और उनसे निपटने को लेकर के बेहद विस्तार पूर्वक चर्चा की गई है. उसके बाद सुझाव रखे गए हैं.

Dehradun Declaration 6
6th वर्ल्ड कांग्रेस डिजास्टर मैनेजमेंट कॉन्फ्रेंस का समापन


वर्ल्ड कांग्रेस ऑन डिजास्टर मैनेजमेंट के डिक्लेरेशन में सुझाए गये महत्वपूर्ण बिंदु

  • पर्वतीय राज्यों में युवाओं को आपदा प्रबन्धन की दिशा में विशेष रूप से तैयार करने की जरूरत है स्कूल/कॉलेज पाठ्यक्रम में आपदा, आपदा जोखिम न्यूनीकरण को जोड़ा जाये.
  • आपदा से निपटने के दौरान समाज के कमजोर वर्गों, जैसे बच्चों, महिलाओं एवं वृद्धजनों पर विशेष ध्यान देने की आवश्यकता है. इस सन्दर्भ में यह विश्व सम्मेलन नियम तथा विधायी ढांचे स्थापित करने का प्रस्ताव करता है.
  • दिव्यांग समुदायों की भागीदारी सहित समावेशिता, विचार-विमर्श के एक महत्वपूर्ण विषय के रूप में उभरी है. विशेष रूप से इस समूह को ध्यान में रखते हुए 'उत्तरजीविता का विज्ञान' (Science of Survival) विकसित करने की आवश्यकता इसका एक महत्वपूर्ण घटक है.
  • यह विश्व सम्मेलन सभी सम्बन्धित परियोजनाओं और उनके क्रियान्वयन के लिए आपदा जोखिम न्यूनीकरण तथा आपदा प्रतिरोध के लिए बजट आवंटन या सीएसआर के माध्यम से विशेष वित्तीय उपकरणों की आवश्यकता का भी संज्ञान लेता है.

पर्वतीय पारिस्थितिकी तन्त्र की रक्षा

  • इस विश्व सम्मेलन में आपदा जोखिम न्यूनीकरण के लिए पारिस्थितिकी दृष्टिकोण के साथ हिमालयी क्षेत्र के लिए अनुकूल प्रकृति आधारित समाधानों/प्रकृति जलवायु समाधानों के क्रियान्वयन पर विशेष बल देने का प्रस्ताव है.
  • स्थानीय समुदायों के अनुभवों की विशिष्टता की पहचान, उसकी मान्यता एवं सराहना, तथा आपदाओं और उनके समाधानों की बेहतर समझ के लिए समकालीन प्रौद्योगिकियों एवं भविष्यवाणी के उपकरणों के साथ-साथ स्थानीय ज्ञान-प्रणालियों का सन्दर्भ एवं समावेश भी आवश्यक है.
  • ढांचागत विकास और परियोजनाओं के लिए हिमालयी तन्त्र की भूवैज्ञानिक, जल- वैज्ञानिक, पारिस्थितिकी, और सामाजिक जटिलताओं को समझने के लिए विभिन्न संस्थानों के मध्य डेटा /सूचना की साझेदारी सुनिश्चित करना आवश्यक होगा.
  • परियोजना क्रियान्वयन के दौरान पर्यावरणीय प्रभाव आकलन (एनवायरनमेन्टल इम्पैक्ट असेसमेन्ट) में आपदा जोखिम और आपदा न्यूनीकरण के घटकों को सुनिश्चित करना, गतिमान परियोजनाओं की निरन्तर निगरानी और मूल्यांकन की अवधारणा को अनुकूल एवं सुदृढ़ बनाना प्रमुख रूप से अनिवार्य है.

पर्वतीय समुदायों के सशक्तीकरण पर जोर

  • सामुदायिक भागीदारी और स्थानीय समुदायों के सम्मुख आने वाले विशिष्ट जोखिमों के बारे में उन्हें पूर्णरूपेण शिक्षित करना, और आपदाओं का सामना करने के लिए उन्हें तैयार करना आवश्यक है. पारिस्थितिकी की बेहतर समझ और सामुदायिक भागीदारी के लिए पारम्परिक ज्ञान और स्थानीय भाषा-संस्कृति का व्यापक पैमाने पर उपयोग सुनिश्चित किए जाने की आवश्यकता है.
  • सामुदायिक समझ पर आधारित प्रारम्भिक चेतावनी प्रणालियों में स्थानीय ज्ञान परम्परा का समावेश एवं प्रारम्भिक चेतावनी संकेतों की निगरानी और आपदा राहत कार्यों में स्थानीय समुदाय की सहभागिता आवश्यक है.
  • आर्थिकी के दुर्बल क्षेत्रों पर निर्भरता कम करने के लिए आजीविका और आजीविका प्रणालियों को मज़बूत और विविध बनाना, तथा इस भांति आपदा-राहत की तैयारी, प्रतिक्रिया और पुनर्स्थापना सुनिश्चित करना आवश्यक है.
  • आपदा प्रतिरोधी व्यवस्थाओं हेतु सहयोग बढ़ाने के लिए समुदायों, स्वयं सहायता समूहों, सरकारी, गैर-सरकारी संस्थानों और अन्य हितधारकों के बीच नेटवर्क और साझेदारी की स्थापना सुनिश्चित करना आवश्यक है.


नीति एकीकरण का समर्थन

  • उन नीतियों और व्यवस्थाओं के पूर्णरूपेण समर्थन की आवश्यकता है जो आपदा जोखिम की दुर्बलताओं पर ध्यान केन्द्रित करती हैं. समय-समय पर आपदा प्रतिरोध को सुदृढ़ बनाती हैं.
  • राज्य में एक ऐसे अत्याधुनिक 'आपदा प्रबन्धन संस्थान' की स्थापना अत्यन्त आवश्यक है, जो हिमालय में आपदा जोखिम लचीलेपन के लिए अनुकूल नीतियों तथा कार्यवाहियों का इनपुट प्रदान करने पर विशेष रूप से केन्द्रित हों.
  • इस संस्थान को आपदा जोखिम के लिए समुचित तैयारी और रणनीतियों की स्थापना के लिए आवश्यक ज्ञान, डेटाबेस तथा सूचना प्रणालियों को विकसित करने के लिए एक मिशन मोड पर स्थापित किया जाना चाहिए.
  • हिमालय में आपात स्थिति और महामारी की स्थिति में टिकाऊ पारिस्थितिकी तन्त्र, सुरक्षित वातावरण तथा स्वास्थ्य सेवाओं के सभी घटकों की आवश्यक तैयारी सुनिश्चित करना.


नवाचार के प्रति प्रतिबद्धता

  • आपदा प्रतिरोध के लिए सुसज्जित समाज के लिए नवीन दृष्टिकोण, तरीक़ों, व्यवस्थाओं और तन्त्रों में योगदान करने के लिए हिमालयी ज्ञान प्रणालियों को मज़बूत करना.
  • दुरूह, संवेदनशील और नाजुक इलाक़ों में आपदा जोखिम लचीलेपन और प्रतिक्रिया की सर्वोत्तम व्यवस्थाओं के मध्य सहयोग और उनका सफल संचारण.
  • हिमालय में आपात स्थिति और आपदा जोखिम लचीलेपन के लिए नये उपकरण और ऐप्लीकेशन विकसित करने हेतु स्टार्ट-अप और उद्यमिता में निवेश को प्रोत्साहित करना.
  • हिमालयी राज्यों और पर्वतीय पारिस्थितिकी प्रणालियों के लिए लचीलापन, पुनर्स्थापना और प्रतिरोध के सिलक्यारा मॉडल के अनुरूप नयी व्यवस्थाएँ विकसित करना.
Last Updated : Dec 1, 2023, 9:30 PM IST
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