अनंत चतुर्दशी पर होती है भगवान विष्णु के अनंत रूप की पूजा, जानें 14 गांठों का रहस्य

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Published : Sep 19, 2021, 4:03 AM IST

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अनंत चतुर्दशी की शुरुआत महाभारत काल से हुई थी. यह पर्व भारत के कई राज्यों में बहुत ही हर्षोल्लास के साथ मनाया जाता है. इस दिन भगवान विष्णु की लोक कथाएं सुनी जाती हैं तथा भगवान विष्णु के अनंत रूप की पूजा करने से प्राणी समस्त दुखों से निवृत्त होकर परम सुख को प्राप्त करता है. इस दिन 14 गांठों वाला अनंत सूत्र भी बांधा जाता है. क्या आप जानते हैं इन 14 गांठों का रहस्य? तो चलिए आइए डालते हैं एक नजर.

रांची : अनंत चतुर्दशी का पर्व भाद्रपद मास के शुक्ल पक्ष की चतुर्दशी तिथि को मनाया जाता है. हिंदू धर्म में अनंत चतुर्दशी तिथि का विशेष महत्व है. इस दिन भगवान विष्णु के अनंत स्वरूप का पूजा पूरे विधि विधान से की जाती है. इस दिन भगवान विष्णु का नाम लेकर रक्षा सूत्र बांधने की परंपरा है. भगवान विष्णु की पूजा करके अपने संकटों से रक्षा करने के लिए भक्त रक्षा सूत्र बांधते हैं. जिसे 14 गांठ वाला अनंत सूत्र कहा जाता है.

रांची के प्रख्यात पंडित स्वामी दिव्यानंद महाराज बताते हैं कि अध्यात्म में वर्णन है कि अनंत सूत्र पहनने से मनुष्य पर संकट नहीं आते हैं और वह सभी दुखों एवं परेशानी से निजात पा लेता है. इस साल अनंत चतुर्दशी का पर्व 19 सितंबर, दिन रविवार को पड़ रहा है.

कैसे करें पूजा

स्वामी दिव्यानंद महाराज बताते हैं कि सुबह स्नान करके व्रत का संकल्प करें. शास्त्रों में लिखा है अनंत चतुर्दशी का पूजा करने से पहले किसी नदी या सरोवर के तट पर स्नान करें. स्नान करने के बाद घर में भगवान विष्णु की शेषनाग की शैया पर लेटे मूर्ति या चित्र को स्थापित करें और फिर उस मूर्ति या चित्र के सामने 14 गांठ वाली अनंत सूत्र के डोर को रखें. पूजा के बाद मंत्र पढ़कर पुरुष अपने दाहिने हाथ और स्त्री अपने बाएं हाथ में अनंत सूत्र को बांध लें, जिससे उनकी सभी मनोकामना पूर्ण होगी और उनके जीवन में आने वाली समस्या भी समाप्त हो जाएगी. कहा जाता है कि 14 गांठ हरि द्वारा उत्पन्न 14 लोकों की प्रतीक हैं.

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अनंत चतुर्दशी की शुरुआत महाभारत काल से हुई थी.

हर गांठ में श्री हरि का नाम

अनंत चतुर्दशी की पूजा में सूत्र का बड़ा महत्व है. इस व्रत में सुबह स्नान करने के बाद अक्षत, दूर्वा (दूभ), शुद्ध रेशम या कपास के सूत से बने और हल्दी से रंगे हुए चौदह गांठ के अनंत सूत्र को भगवान विष्णु की तस्वीर या प्रतिमा के सामने रखकर पूजा की जाती है. हर गांठ में श्री नारायण के विभिन्न नामों से पूजा की जाती है. पहले में अनंत, उसके बाद ऋषिकेश, पद्मनाभ, माधव, वैकुण्ठ, श्रीधर, त्रिविक्रम, मधुसूदन, वामन, केशव, नारायण, दामोदर और गोविन्द की पूजा होती है. अनंत चतुर्दशी के दिन भक्त अपने घर के पूजा स्थल पर पीला फूल, पीला फल, चूर्ण, पंचामृत, धूप, दीप, नैवेद्य (भोग) से भगवान विष्णु के सभी रूपों का पूजा करें.

शुभ मुहूर्त

ज्योतिष के अनुसार अनंत चतुर्दशी की तिथि 19 सितंबर को सुबह 6:00 बजे से शुरू होकर 20 सितंबर सुबह 6:00 बजे तक रहेगा. भक्त 19 सितंबर को दिनभर में किसी भी समय भगवान विष्णु की पूजा कर अनंत चतुर्दशी कर सकते हैं.

अनंत चतुर्दशी पर होती है भगवान विष्णु के अनंत रूप की पूजा

इस मंत्र का करें मंत्रोचारण

  • ॐ अनन्तायनमः का मंत्र उच्चारण अवश्य करें.

पौराणिक कथा

स्वामी दिव्यानंद महाराज बताते हैं कि अनंत चतुर्दशी मनाने के पीछे एक बहुत बड़ी कथा है. राजा युधिष्ठिर ने अपने भाइयों तथा द्रोपदी के साथ पूरे विधि विधान से राजसूय यज्ञ का आयोजन किया था, जो उस वक्त सिर्फ राजा के द्वारा आयोजित की जाती थी. बताया जाता है कि यज्ञ जिस मंडप में हो रहा था वह बेहद खूबसूरत और सुंदर था. यज्ञ मंडप में जल और थल दोनों एक समान लग रहे थे. यज्ञ में शामिल होने वाले लोग इस खूबसूरती को देखकर धोखा खा रहे थे.

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अनंत चतुर्दशी की पूजा में सूत्र का बड़ा महत्व है.

इसी दौरान दुर्योधन उसी यज्ञ में शामिल होने पहुंचे, जहां वह भी धोखा खाकर जमीन की जगह जल में गिर गए. यह देख द्रोपदी की हंसी निकल गई उसने दुर्योधन को अंधों की संतान अंधा कहा. जिससे दुर्योधन चिढ़ गए और यह बात उनके दिल पर लग गई. इसी द्वेष से दुर्योधन ने पांडवों से बदला लेने का फैसला लिया और पांडवों को द्युत क्रीड़ा में हरा दिया. जिस कारण पांडवों को 12 वर्ष तक अज्ञातवास में जाना पड़ा. अज्ञातवास में जाने के दौरान पांडवों को कई कष्टों का सामना करना पड़ा. कष्टों से निजात पाने के लिए भगवान कृष्ण ने युधिष्ठिर को अनंत भगवान का व्रत करने को कहा, जिससे युधिष्ठिर के सारे कष्ट दूर हो गए और वह पुनः अपने राज्य को प्राप्त कर लिए.

यह कथा भी है प्रचलित

वहीं एक कथा और भी प्रचलित है कि प्राचीन काल में एक तपस्वी ब्राह्मण था, जिसका नाम सुमंत हुआ करता था. वह अपनी पत्नी दीक्षा और परम सुंदरी पुत्री सुशीला के साथ रहा करते थे. लेकिन सुशीला के जवान होते होते उसकी माता दीक्षा की मृत्यु हो गई. जिसके बाद ब्राह्मण सुमंत ने कर्कशा नामक राक्षणी से दोबारा विवाह कर लिया, इसके बाद ऋषि सुमंत का अपने बेटी के प्रति प्रेम घटने लगा और वह अपनी बेटी का विवाह कौंडिण्य नामक ऋषि से करा दी.

विवाह के दौरान कौंडिण्य ऋषि अपने ससुर ब्राह्मण सुमंत और उनकी पत्नी कर्कशा के व्यवहार से अत्यंत दुखी हुए और अपनी नई नवेली दुल्हन को लेकर शादी के दिन ही अपने आश्रम की ओर चल दिए. सफर के दौरान सुशीला ने देखा कि कुछ महिलाएं नवीन वस्त्र पहनकर नदी के किनारे किसी देवता की पूजा कर रही हैं, जिसे देख सुशीला ने भी महिलाओं के साथ पूजा कर अनंत का सूत्र अपने बाएं हाथ में बांध लिया. सुशीला के हाथ में अनंत सूत्र देख ऋषि कौंडिण्य झुंझला गए और उन्होंने सुशीला के बाएं हाथ में बंधे अनंत सूत्र को खोलकर अग्नि में फेंक दिया. जिसके बाद ऋषि कौंडिण्य का सब कुछ नष्ट होने लगा और वह दिन प्रतिदिन दरिद्र होने लगे.

एक दिन जब वह अपनी दरिद्रता पर अपनी पत्नी सुशीला से चर्चा कर रहे थे तो सुशीला ने उन्हें अनंत सूत्र जलाने की बात याद दिलाई, कौंडिण्य तुरंत अपनी गलती समझ गए और फिर वह उसी जगह चले गए जहां उन्होंने अनंत डोर को जलाया था. कई दिनों तक भटकने के बाद उन्हें जला हुआ अनंत डोर मिला और भगवान विष्णु प्रकट हुए. इसी के साथ ऋषि कौंडिण्य ने अपने पाप का पश्चाताप किया और उनके दिन धीरे-धीरे अच्छे होने लगे.

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