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संपूर्णानंद संस्कृत विश्वविद्यालय को राजा जौनपुर ने जो जमीन दी, राजा के बेटे ने ठोका उस पर दावा...ये है पूरा मामला

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Published : May 6, 2022, 5:14 PM IST

वाराणसी के संपूर्णानंद विश्वविद्यालय की छह एकड़ जमीन को लेकर ताजा विवाद सामने आया है. जौनपुर के राजा के बेटे ने इस जमीन पर अपने स्वामित्व का दावा किया है. चलिए जानते हैं इस पूरे मामले के बारे में.

संपूर्णानंद संस्कृत विश्वविद्यालय को राजा जौनपुर ने जो जमीन दी, राजा के बेटे ने ठोका उस पर दावा...फिर ये हुआ
संपूर्णानंद संस्कृत विश्वविद्यालय को राजा जौनपुर ने जो जमीन दी, राजा के बेटे ने ठोका उस पर दावा...फिर ये हुआ

वाराणसी: संपूर्णानंद संस्कृत विश्वविद्यालय की 6 एकड़ जमीन को लेकर ताजा विवाद सामने आया है. यह मामला 1955 से जुड़ा है. जौनपुर के राजा यादवेंद्र दत्त दुबे की तरफ से विश्वविद्यालय को दी गई जमीन को पर राजा यादवेंद्र दत्त दुबे के बेटे अवनींद्र तक दुबे ने स्वामित्व का दावा किया है. ऐसे में विश्वविद्यालय प्रशासन भी कानूनी कार्यवाही की तैयारी कर रहा है. ईटीवी भारत से बातचीत के दौरान राजा यादवेंद्र दत्त दुबे के बेटे अवनींद्र दत्त दुबे ने साफ किया कि वह किसी तरह के ऐसे कागज को मानने वाले नहीं जो रजिस्टर्ड नहीं है. न दान में जमीन दी गई है, न ही बेची गई है कि न ही यह उन्हें नहीं पता लेकिन विरासत की जमीन पर उनका हक है और यदि कागज मजबूत होगा संपूर्णानंद संस्कृत यूनिवर्सिटी को वह जमीन सौंपने को तैयार हैं.

दरअसल संपूर्णानंद संस्कृत विश्वविद्यालय के उत्तरी हिस्से की करीब 6 एकड़ जमीन को लेकर विवाद उठा है. विवि के कुलपति प्रोफेसर हरेराम त्रिपाठी का कहना है कि इस स्थान पर स्थित पंच मंदिर जिसका रिनोवेशन इंजीनियर रमन त्रिपाठी के सहयोग से किया जा रहा है. मंदिर की 0.2710 हेक्टेयर जमीन जौनपुर के राजा यादवेंद्र दत्त दुबे कि संपत्ति हुआ करती थी. 21 फरवरी 1955 को जौनपुर के तत्कालीन राजा यादवेंद्र दत्त दुबे की ओर से उत्तरी छोर पर मौजूद 2.50 हेक्टेयर भूमि का सौदा यूनिवर्सिटी के साथ 3,50,708 रुपए 30 पैसे में किया गया था.

संपूर्णानंद विश्वविद्यालय की छह एकड़ जमीन को लेकर ताजा विवाद सामने आया है.

पंच मंदिर वाली भूमि को उन्होंने दान में दिया था कुछ दिन विवाद के बाद इस भूमि का सौदा राजा और यूनिवर्सिटी के बीच हुआ और उस वक्त विश्वविद्यालय के पहले कुलपति के तौर पर यहां चार्ज लेने वाले उत्तर प्रदेश के तत्कालीन मुख्य सचिव डॉ आदित्य नाथ झा की मौजूदगी में यह पूरी कार्यवाही हुई. हालांकि अभिलेखों में विश्वविद्यालय का नाम दर्ज नहीं हो सका. पुराने कागजों से लेकर तत्कालीन राजा यादवेंद्र दत्त दुबे के लेटर पैड पर इस जमीन को यूनिवर्सिटी को दिए जाने की बात का प्रमाण पत्र भी हमारे पास मौजूद है.

कुलपति प्रोफेसर हरेराम त्रिपाठी का कहना है कि यह मामला प्रकाश में तब आया जब 4 से 5 दिन पहले अलग-अलग विश्वविद्यालय के कुलपति अपनी समस्याओं को लेकर मुख्य सचिव दुर्गाशंकर मिश्र के पास पहुंचे थे. उनके पास जाने के बाद इस भूमि पर विश्वविद्यालय का नाम चढ़ाने के लिए एक समिति के गठन की बात की गई और जब मामला वाराणसी के प्रशासन के पास आया तो यह बात सामने आई कि अगस्त 2019 में राजा यादवेंद्र दत्त दुबे के बेटे अवनींद्र दत्त दुबे ने दाखिल खारिज के दौरान कागजी कार्रवाई पूरी कर इस जमीन को अपने नाम करवा लिया है. जिसके बाद से अब हमने पुराने साक्ष इकट्ठा कर दिए हैं और कागजों के आधार पर यह हमारी जमीन है और हम इस पर काबिज रहेंगे.

कुलपति प्रोफेसर हरे राम त्रिपाठी का कहना है कि यह सरासर गलत और फ्रॉड किया गया है. इसे हम किसी हाल में बर्दाश्त नहीं करेंगे और हमारे पास पूरे कागज मौजूद हैं, यदि इसमें कोई परेशानी आएगी तो हम फ्रॉड करने वाले के खिलाफ मुकदमा भी दर्ज करेंगे और उन राजस्व से जुड़े तमाम अधिकारियों और कर्मचारियों को भी इसमें शामिल किया जाएगा, जिनकी मदद से यह काम संपन्न कराया गया है

कुलपति प्रोफेसर हरेराम त्रिपाठी का कहना है कि यह जमीन बहुत लंबे वक्त से संपूर्णानंद संस्कृत यूनिवर्सिटी के पास है. हम इसकी देखरेख करते हैं, इसमें हजारों रुपए प्रतिमाह खर्च किए जा रहे हैं. इस जमीन को सरकारी बिजली उपकेंद्र बनाने के लिए भी मांगा गया था, लेकिन पहले से ही हमारे पास शिक्षा शास्त्र भवन, गेस्ट हाउस और ऑडिटोरियम के लिए जगह ना होने की वजह से इसी स्थान का चयन करके 127 करोड़ रुपए का प्रस्ताव शासन को भेजा गया है और जब यहां काम की तैयारी है तो कोई और इस पर अपना हक नहीं जता सकता. यह जमीन हमारी है हमारी थी और हमारी रहेगी.

वहीं इस पूरे मामले में जौनपुर के तत्कालीन राजा यादवेंद्र दत्त दुबे के बेटे अवनींद्र दत्त दुबे ने बताया कि उनके दादा कृष्ण दत्त दुबे 1944 में जब दुनिया से विदा हुए तो उनके पिता यादवेंद्र दत्त दुबे को विरासत में उनकी सारी संपत्ति मिली. हमारा संपूर्णानंद संस्कृत विद्यालय के सामने एक महल हुआ करता था. उस जमीन को विरासत के मुताबिक 2019 में अपने नाम ट्रांसफर करवाया और अब यूनिवर्सिटी प्रशासन कह रहा है कि वह जमीन उनको दान में दी गई और बाकी के लिए उन्होंने रुपए दिए. मैं किसी भी तरह के रजिस्टर्ड दस्तावेज को ही मानने वाला हूं.

उनका कहना है कोई भी फर्जी साइन करके फर्जी कागजात तैयार करवा सकता है. इसलिए यह जमीन मेरे मालिकाना हक में है यदि संपूर्णानंद संस्कृत विश्वविद्यालय के पास पुख्ता कागज हैं तो वह कोर्ट में आए सबूत के साथ यदि सब कुछ सही रहेगा तो मैं जमीन देने के लिए तैयार हूं.

200 करोड़ की मानहानि का दावा ठोकने की तैयारी
जौनपुर के राजा के पौत्र अवनींद्र दत्त का कहना है कि सम्पूर्णानन्द विश्वविद्यालय ने मेरे सम्मान को ठेस पहुंचाया है इसलिए संस्थान पर 200 करोड़ रुपये के मानहानि का दावा ठोकने की तैयारी कर रहा हूं. उन्होंने कहा कि 30 अप्रैल 2022 को मुख्यमंत्री के पोर्टल पर एण्टी भूमाफिया की शिकायत दर्ज करायी है।

वहीं, विश्वविद्यालय के कुलपति प्रो. हरेराम त्रिपाठी का कहना है कि इस संबंध में राजभवन व मुख्यमंत्री कार्यालय को पत्र लिखा जाएगा. साथ ही राजस्व विभाग के कर्मचारियों और नाम चढ़वाने वाले व्यक्ति पर केस भी दर्ज कराया जाएगा. विवि के उत्तरी छोर पर दो हेक्टेयर भूमि है, कुछ ही दूरी पर पंचमंदिर भी है जिसका जीर्णोद्धार एनआरआई इंजीनियर रमन त्रिपाठी के सहयोग से हो रहा है.

विवि के संपत्ति अधिकारी डॉ. विमल कुमार त्रिपाठी ने बताया कि 21 फरवरी 1955 को जौनपुर के तत्कालीन राजा यादवेंद्र दत्त दुबे ने उत्तरी छोर पर 2.5010 हेक्टेयर भूमि 3 लाख 50 हजार 708 रुपये में बेची थी जबकि पंचमंदिर की 0.2710 हेक्टेयर भूमि दान में दी थी. विश्वविद्यालय के पहले कुलपति और उत्तर प्रदेश के तत्कालीन मुख्य सचिव डॉ. आदित्यनाथ झा की देखरेख में यह कार्यवाही पूरी की गई थी.


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