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काशी के इस मंदिर में पितरों के रूप में स्थापित होते हैं शिवलिंग, जानिए मान्यता के बारे में

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Published : Jun 14, 2023, 6:16 PM IST

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आपकों जानकर हैरत होगी कि काशी के एक मंदिर में पितरों के रूप में शिवलिंग की स्थापना की जाती है. आखिर इसके पीछे कौन सी मान्यता है चलिए जानते हैं इस खास खबर के जरिए.

वाराणसी: कहते हैं काशी के कण-कण में शिव विराजते हैं, यहां के बारे में यह मान्यता है कि पूरी काशी में 7 करोड़ से ज्यादा शिवलिंग स्थापित हैं. यहां पर छोटे छोटे मंदिरों के साथ ही द्वादश ज्योतिर्लिंग में शामिल श्री काशी विश्वनाथ का भव्य मंदिर भी है. काशी में जहां नजरें जाएंगी वहां आपको शिव का मंदिर जरूर मिलेगा, लेकिन आज हम आपको काशी के उस मंदिर के बारे में बताने जा रहे हैं जहां अकेले एक करोड़ से ज्यादा शिवलिंग स्थापित हैं. सुनकर आश्चर्य हो रहा होगा, लेकिन यह सच है. वाराणसी के जंगमबाड़ी मठ में एक ऐसी परंपरा का निर्वहन बीते लगभग 1400 सालों से हो रहा है जिसकी वजह से वाराणसी के इस मंदिर मठ में शिवलिंग की संख्या करोड़ों में पहुंच गई है. यहां आप जहां तक नजरें ले जाएंगे वहां सिर्फ शिवलिंग ही पाएंगे ऐसा क्यों है और इसके पीछे की वजह क्या है वह भी काफी रोचक है.

ब्रह्मचारी प्रभु स्वामी ने दी यह जानकारी.


दरअसल, काशी के जंगमबाड़ी मठ के बारे में यह कहा जाता है कि 1400 साल पुराने इस मठ का इतिहास अपने आप में काफी रोचक है. इस मठ के वर्तमान पीठाधीश्वर जगतगुरु चंद्रशेखर शिवाचार्य महास्वामी हैं और इस मठ में स्थापित कोटि-कोटि शिवलिंग जिसकी कोई गिनती ही नहीं है. ऐसी मान्यता है कि काशी में स्थापित 7 करोड़ शिवलिंग में से एक करोड़ शिवलिंग अकेले इस स्थान पर स्थापित हैं. इसकी बड़ी वजह यह है कि यहां हर रोज सैकड़ों की संख्या में शिवलिंग की स्थापना होती है.

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काशी के कण-कण में शिव.


इस बारे में इस मठ के मैनेजर और देखरेख करने वाले ब्रह्मचारी प्रभु स्वामी का कहना है कि वीरशैव समुदाय अपने आप में एक ऐसा सनातन धर्म में समुदाय है जो शिवलिंग को महत्व देता है. लिंगायत समुदाय से जुड़े इस विशेष धर्म को मानने वाले लोग भगवान शिव के उपासक होते हैं और वह अपने गले में भी एक लिंग को धारण करते हैं जिसका पूजन उनके द्वारा प्रतिदिन किया जाता है. ऐसी मान्यता है कि इस समुदाय से जुड़े लोगों की मृत्यु के बाद किसी गंगा तट या नदी सरोवर के किनारे इन का पिंडदान नहीं होता बल्कि यह अपने पितरों के नाम से इस काशी के मठ में आकर विधि विधान से ऐसे शिवलिंग की स्थापना करते हैं जिसमें भगवान शिव और उनका नंदी मौजूद होता है.


ऐसी मान्यता है कि इस समुदाय से जुड़े लोगों को स्वर्ग या पितृलोक नहीं बल्कि शिवलोक जाने का मन होता है और पिंडदान के बाद पितृलोक की बात की जाती है, लेकिन जब वीरशैव समुदाय के लोगों के द्वारा शिव की स्थापना की जाती है तो यह माना जाता है कि अमुक व्यक्ति मृत्यु के उपरांत आत्मा स्वरूप उस शिवलिंग के रूप में स्थापित हो गया है जिसने अपना शरीर त्यागा था इसी कामना के साथ काशी में हर रोज दक्षिण से आने वाले सैकड़ों श्रद्धालु अपने पितरों या दुनिया छोड़कर जाने वाले अपनों की याद में यहां पर शिवलिंग स्थापित करके उन्हें शिव स्वरूप मानकर शिवलोक भेजने की कामना करते हैं. सबसे महत्वपूर्ण बात यह है कि इस स्थान का सावन मास में विशेष महत्व माना जाता है. दक्षिण भारत के अलावा महाराष्ट्र से भी बड़ी संख्या में यहां लिंगायत समुदाय के लोगों का आना होता है.

लिंगायत समुदाय पर एक नजर
पुजारी के द्वारा बताया गया कि यह मठ वीरशैव स्थावरलिंग यानी एक ही जगह पर स्थापित होने वाले लिंग जिसे गले में भी पहना जा सके उसके रूप में इसकी पूजा की जाती है. पुजारी का कहना है कि इस मठ का इतिहास बहुत पुराना है काशी के अलावा इसकी अलग-अलग दक्षिण भारत और महाराष्ट्र में भी शाखा है लेकिन काशी के इस मठ का विशेष महत्व माना जाता है. दक्षिण भारत में आंध्र प्रदेश, तेलंगाना, कर्नाटका व महाराष्ट्र से बड़ी संख्या में यहां पर श्रद्धालुओं का आना होता है, जो अपनों की याद में यहां शिवलिंग की स्थापना करते हैं. जिसके लिए विधि विधान से पूरा अनुष्ठान संपन्न किया जाता है.

(नोटः यह खबर धार्मिक मान्यता पर आधारित है.)

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