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जैन धर्म के महापर्व पर्युषण का हुआ समापन, मनाया गया क्षमावाणी पर्व

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Published : Sep 21, 2021, 10:02 PM IST

जैन धर्म के महापर्व पर्युषण का आज क्षमावाणी पर्व के साथ समापन हो गया. वाराणसी में भगवान पार्श्वनाथ की जन्मस्थली कल्याण वाहक में बीते 10 दिनों से इस महापर्व का आयोजन चल रहा था.

जैन धर्म के महापर्व पर्युषण का हुआ समापन
जैन धर्म के महापर्व पर्युषण का हुआ समापन

लखनऊ : शिव की नगरी काशी में जैन धर्म के महापर्व पर्युषण का आज क्षमावाणी पर्व के साथ समाप्त किया गया. यह पर्व पिछले 10 दिनों से भेलूपुर स्थित भगवान पार्श्वनाथ की जन्मस्थली कल्याण वाहक में मनाया जा रहा था. यह महापर्व जैन धर्म के प्रमुख पर्व में से एक है. आज इस महापर्व के समापन के मौके पर पूरे विधि-विधान से श्री 1008 पार्श्वनाथ का अभिषेक पूजन मंत्र का उच्चारण सायकाल तक किया गया.



यह पर्व पूर्ण शुद्धि के लिए मनाया जाता है. हर व्यक्ति अपनी क्षमता के अनुसार इस व्रत को जप-तप, संयम और समाधान के साथ पूर्णता करता है. जैन धर्म में शादगी पूर्ण अहिंसा वादी जीवन जीने का प्रेरित करता है. केवल आत्मा उत्थान ही नहीं यह धर्म पूर्ण वैज्ञानिक दृष्टि से भी व्यक्ति को शुद्ध प्रदान करता है. इस पर्व के दौरान फल, सब्जी का त्याग कर उच्च प्रोटीन आहार लेते हैं. भादव माह में हर सब्जी फल में कीड़े-मकोड़े पनपते हैं, जिसको खाने से व्यक्ति रोग का शिकार हो सकता है. इस व्रत को करने से पाचन तंत्र मजबूत होता है. इस व्रत को करने से मानसिक रूप से व्यक्ति मजबूत होकर नीति पूर्व जीवन जीने के लिए प्रेरित होता है जैन धर्म में तब की बहुत ही महत्व दिया जाता है. तप करने से व्यक्ति बौद्धिक क्षमता बढ़ती है. तप करने से व्यक्ति परमात्मा के समीप होकर सकारात्मक ऊर्जा प्राप्त करता है. यही वजह है कि यह महापर्व जैन धर्म के लिए बहुत ही महत्वपूर्ण हैं.

भगवान पार्श्वनाथ की जन्मस्थली
भगवान पार्श्वनाथ की जन्मस्थली

क्षमा से बड़ा कोई धर्म नहीं

क्षमावाणी पर्व पर अपना संदेश देते हुए आचार्य 108 विशद सागर ने कहा जो क्षमा मांगे वह वीर है, जो क्षमा कर दे वह महावीर है. भूल हो जाना मनुष्य का स्वभाव है, क्षमा करना देवीय स्वभाव है. हमारा अंहकार हमें क्षमा मांगने से रोकता है. तिरस्कार क्षमा देने में बाधक बनता है. अहंकार और तिरस्कार को त्याग कर क्षमा मांग लेने से ही मुक्ति का मार्ग प्राप्त होता है. क्षमा कल्पवृक्ष के समान है. क्षमा से बड़ा कोई धर्म नहीं है. पश्चाताप घड़ियां जीवन में हमेशा नहीं आया करती यह अपने स्वरूप तक ले जाने वाली घड़ियां क्षमा स्वरू प्राप्ति का प्रवेश द्वार है.

क्षमावाणी पर्व पर एक दूसरे मिलती जैन धर्म की महिलाएं
क्षमावाणी पर्व पर एक दूसरे मिलती जैन धर्म की महिलाएं



इस मौके पर श्रद्धालु आशा जैन ने बताया यह दस लक्षण पर्व है जिसको पर्युषण पर्व भी कहा जाता है. जिस प्रकार हम दीपावली में अपने घरों की सफाई करते हैं उसी प्रकार यह महापर्व 10 दिनों का होता है जब हम अपनी आत्मा की सफाई करते हैं. यह क्षमा पर्व से शुरू होता है और आज क्षमावाणी पर्व पर समाप्त होता है. जैन धर्म के अनुयायियों के लिए यह बहुत ही महत्वपूर्ण पर्व होता है. आज के दिन हम एक दूसरे के वर्षभर की गलतियों को बुलाकर उसे क्षमा करते हैं. यह वही पवित्र स्थान है जहां पर जैन के 23वें गुरु पार्श्वनाथ का जन्म हुआ था.

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श्रुति जैन ने बताया आज क्षमावाणी का पर्व है 10 दिनों तक कठोर परिश्रम के बाद आज इस महापर्व का समापन हो रहा है. 1 वर्ष में हमने जो भी गलतियां जाने अनजाने में की है. आज उसके लिए एक दूसरे से हाथ जोड़कर क्षमा मांगते हैं. बराबर वालों से गले मिलते हैं बड़ों का पैर छूकर माफी मांगते हैं.

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