वाराणसीः धर्म और अध्यात्म की नगरी काशी में भगवान धन्वन्तरी की अति प्राचीन मूर्ति है. यह मूर्ति एक दो नहीं बल्कि 300 साल पुरानी है. इस मंदिर में साल में एक बार ही धनतेरस को ही दर्शन की अनुमति होती है, लेकिन कोरोना संक्रमण के चलते इस बार मंदिर में जाकर श्रद्धालु दर्शन नहीं सके. हालांकि मंदिर प्रबंधन ने ऑनलाइन दर्शन की व्यवस्था जरूर की थी.
दर्शन मात्र से रोग से मिलती है मुक्ति
काशी के सूड़िया स्थित धन्वन्तरी भवन में सैकड़ों वर्ष पुरानी अनोखी प्रतिमा आज भी स्थित है. इस मंदिर में श्रद्धालु धनतेरस के दिन दर्शन करने पहुंचते हैं. रजत सिंहासन पर अष्ट धातु करीब ढाई फुट की ऊंची रत्नजीत मूर्ति साक्षात हरि के समान खड़े होने का आभास कराती है. एक हाथ में अमृत कलश, दूसरे में शंख, तीसरे में चक्र लिए भगवान धन्वन्तरी के दर्शन मात्र से कई कष्ट दूर हो जाते हैं. मान्यता है कि इस मूर्ति के दर्शन मात्र से व्यक्ति के हर प्रकार के रोग और व्याधि नष्ट हो जाते हैं और वह साल भर स्वस्थ रहता है.
राजवैद्य परिवार 300 साल से कर रहा सेवा
राजवैद्य परिवार के सदस्य समीर शास्त्री बताते हैं कि सैकड़ों वर्षों से हम लोग भगवान धन्वन्तरि की सेवा कर रहे हैं. गुरुवार को भी पूरे विधि-विधान से सिंगार करके भगवान का पूजन-अर्चन किया गया. यह अष्टधातु की ढाई फीट की प्रतिमा है, जो 300 से अधिक वर्षों से हमारे यहां विराजमान है. समीर शास्त्री ने बताया कि उनके दादा जी पूजा किया करते थे, फिर पिता जी ने किया और अब हम लोग इस परंपरा को आगे बढ़ा रहे हैं. शास्त्री ने बताया जब से काशी में राजवैद्य की परंपरा है, तब से उनका परिवार यहां रह रहा है और भगवान की सेवा कर रहा है. 9 पीढ़ियों के पहले से हमारे यहां यह उत्सव हो रहा है.