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काशी में नहीं हो रही रामनगर की प्रसिद्ध रामलीला फिर भी जुट रहे लीलाप्रेमी, जानें क्या है माजरा

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Published : Sep 22, 2021, 11:02 AM IST

लीला प्रेमी लखन लाल जौहरी बताते हैं कि यह लीला लगभग ढाई सौ वर्ष पुरानी है. लोगों की आस्था है कि लीला देखने 30 दिनों तक स्वयं भगवान अपने सभी भाइयों और मां सीता के साथ यहां विराजते हैं. भले ही रामनगर की विश्व प्रसिद्ध लीला न आयोजित हो रही हो, इसके बावजूद वे लोग आ रहे हैं.

बनारस में नहीं हो रही 250 वर्ष पुरानी विश्व प्रसिद्ध रामनगर की रामलीला
बनारस में नहीं हो रही 250 वर्ष पुरानी विश्व प्रसिद्ध रामनगर की रामलीला

वाराणसी : रानगर की विश्वप्रसिद्ध रामलीला कोरोना के चलते इस बार भी आयोजित नहीं हो सकेगी. काशीराज परिवार के कुंवर अनंत नारायण सिंह ने रामलीला स्थगित होने की जानकारी स्वयं पुलिस आयुक्त को दी. इसमें कोरोना का कारण बताकर रामलीला स्थगित किए जाने की बात कही गई है. इससे रामलीली प्रेमी काफी मायूसी हैं.

बनारस में नहीं हो रही 250 वर्ष पुरानी विश्व प्रसिद्ध रामनगर की रामलीला
बनारस में नहीं हो रही 250 वर्ष पुरानी विश्व प्रसिद्ध रामनगर की रामलीला

बता दें कि विश्व में अपनी तरह की अनोखी रामलीला अनंत चतुर्दशी से प्रारंभ होकर 30 दिनों तक चलती है. हालांकि इस वर्ष भी रामलीला के स्थगित कर दिए जाने की आशंका पहले से ही थी. शायद इसी के चलते रामलीला में भगवान के स्वरूप बनने के लिए पात्रों का चयन नहीं किया गया. फिर प्रथम गणेश पूजन और द्वितीय गणेश पूजन भी नहीं हुआ लेकिन रामनगर दुर्ग की तरफ से कोई सूचना न दिए जाने से लोगों में संशय बना रहा.

बनारस में नहीं हो रही 250 वर्ष पुरानी विश्व प्रसिद्ध रामनगर की रामलीला

30 दिनों तक चलता है वाराणसी का प्रसिद्ध रामलीला

रामनगर की रामलीला अपने आप में इस लिए अनोखी है क्योंकि इसका मंचल एक-दो दिन नहीं बल्कि पूरे 30 दिनों तक विभिन्न स्थानों किया जाता है. रामनगर में 5 किलोमीटर के क्षेत्र में अलग-अलग स्थानों पर रामलीला का मंचन होता है. अशोक वाटिका, किष्किंधा, लंका, अयोध्या, जनकपुर, पंचवटी जैसे प्रतीकात्मक स्थानों को यहां बनाया गया है.

बनारस में नहीं हो रही 250 वर्ष पुरानी विश्व प्रसिद्ध रामनगर की रामलीला,
बनारस में नहीं हो रही 250 वर्ष पुरानी विश्व प्रसिद्ध रामनगर की रामलीला,

सदस्य पूर्व आयोजक मंडल सुरेश मिश्र ने बताया कि रामनगर की प्रसिद्ध रामलीला लगभग 250 वर्ष पुरानी है. लोगों की श्रद्धा और परंपरा का केंद्र है. लीला प्रेमी तो ऐसे हैं जो पूरे महीने यहां लीला देखते हैं. पिछले 2 वर्ष लीला स्थगित रही, फिर भी लोगों की श्रद्धा देखिए, लोग आ रहे हैं.

खास बात यह है कि 250 वर्ष पहले जिस रूप में रामलीला को शुरू किया गया (तब डिबरी और लालटेन की रोशनी में रामलीला होती थी) उसी रूप में आज भी परंपरा का निर्वहन करते हुए विश्व प्रसिद्ध रामलीला को पुराने स्वरूप में जीवंत रखा है.

बनारस में नहीं हो रही 250 वर्ष पुरानी विश्व प्रसिद्ध रामनगर की रामलीला,
बनारस में नहीं हो रही 250 वर्ष पुरानी विश्व प्रसिद्ध रामनगर की रामलीला,

यही वजह है कि पेट्रोमैक्स की रोशनी में बिना माइक और साउंड के आज भी रामलीला का मंचन किया जाता है. रामलीला की लोकप्रियता का अंदाजा इसी से लगाया जा सकता है कि इसे देखने देश ही नहीं विदेशों तक से लोग आते हैं.

पात्रों को 2 महीने तक दी जाती है ट्रेनिंग

सुरेश मिश्र ने बताया कि लीला कई मायनों में खास है. यही वजह है कि पंच स्वरूप राम, लक्ष्मण, सीता, भरत और शत्रुघ्न के पात्र वेद पाठी ब्राह्मणों द्वारा किए जाते हैं. सीता के रूप में भी बटुक ही रहते हैं. 2 महीने तक किले में रखकर इन्हें विशेष ट्रेनिंग दी जाती है. इस दौरान यह पूरे सात्विक भोजन करते हैं.

काशी राजपरिवार पिछले 250 वर्षों से इस परंपरा का निर्वहन कर रहा है. पूरे 30 दिन तक चलने वाले इस रामलीला को देखने के लिए स्वयं काशी राजपरिवार के अनंत कुंवर नारायण सिंह हाथी पर बैठकर आते हैं. कुछ दिन के लिए काशी का रामनगर द्वापर का भारत लगने लगता है.

बनारस में नहीं हो रही 250 वर्ष पुरानी विश्व प्रसिद्ध रामनगर की रामलीला,
बनारस में नहीं हो रही 250 वर्ष पुरानी विश्व प्रसिद्ध रामनगर की रामलीला,

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30 दिनों तक आएंगे लीला स्थल

लीला प्रेमी लखन लाल जौहरी बताते हैं कि यह लीला लगभग ढाई सौ वर्ष पुरानी है. लोगों की आस्था है कि लीला देखने 30 दिनों तक स्वयं भगवान अपने सभी भाइयों और मां सीता के साथ यहां विराजते हैं. भले ही रामनगर की विश्व प्रसिद्ध लीला न आयोजित हो रही हो, इसके बावजूद हम लोग आ रहे हैं.

यहां जिस लीला का मंचन जिस दिन रहता है वह लोग वहां जाते हैं. भगवान को नमन करते हैं. इस बार वह लोग लीला को बहुत ही मिस कर रहे हैं. लीला देखने आने वाली उनकी यह पांचवीं पीढ़ी है. अन्य दिनों में वह लोग यहां आकर राम नाम और भजन-कीर्तन करते थे. इस वर्ष उस पर भी रोक है तो केवल भगवान को प्रणाम करने आते हैं.


अनोखी होती है रामनगर की रामलीला

वैशाली मिश्र ने बताया कि उन लोगों ने भी पिछले कुछ सालों से लीला देखनी शुरू की थी. आज के युग में ऐसी लीला नामुमकिन है. रामनगर की विश्व प्रसिद्ध रामलीला को वह लोग बहुत ही मिस कर रहे हैं क्योंकि यह अनोखी लीला है. इसमें आज के समय में भी लाइट और साउंड का प्रयोग नहीं होता.

विजय शंकर ने बताया की वैश्विक महामारी के दौर में महाराजा बनारस ने लीला को स्थगित करा दिया ताकि पूरे समाज को किसी प्रकार की दिक्कत न हो और कोविड ज्यादा न फैले. रामलीला के दौरान यहां छोटी-छोटी दुकानें लगती हैं जिनमें चना, बदाम, काजू किशमिश, रेवड़ी, चूड़ा, चाट-गोलगप्पा, घिसियवान शाहू प्रसिद्ध देसी घी का पूरी कचौड़ी, यहां पर दुकान लगाते थे.

इसमें ये लोग एक महीना कमाकर 6 महीने तक खाते थे. लेकिन पिछले 2 वर्ष से काफी दिक्कत हो रही है. फिर भी कुछ लीला प्रेमी आते हैं तो कुछ सामान बिक जाता है. कहा कि लॉकडाउन और उसके बाद लीला न होने के चलते उनकी माली हालत बिगड़ती जा रही है. कर्ज मांग कर घर चल रहा है.

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