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ये है काशी का सबसे प्राचीन मंदिर, जानिए क्या है मान्यता

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Published : Aug 16, 2021, 6:36 AM IST

वाराणसी के कर्दमेश्वर महादेव मंदिर को सबसे प्राचीन माना जाता है. इतिहासकारों की मानें तो यह मंदिर 12वीं सदी का है और काशी की प्रसिद्ध पंचकोशी यात्रा का यह पहला पड़ाव भी है.

स्पेशल रिपोर्ट
स्पेशल रिपोर्ट

वाराणसी: काशी को जीवंत शहर भी कहा जाता है. आस्था और विश्वास की नगरी काशी अपने अंदर सैकड़ों वर्ष पुराने इतिहास को संजोए है. बाबा विश्वनाथ की नगरी काशी में कई ऐसे शिवालय हैं जो सदियों पुराने हैं. इनमें सबसे प्राचीन है कर्दमेश्वर महादेव मंदिर (Kardmeshwar Mahadev Temple). कर्दमेश्वर महादेव मंदिर अपने आप में बेजोड़ है यह मंदिर एक दो नहीं बल्कि 12वीं सदी का है और काशी की प्रसिद्ध पंचकोशी यात्रा का पहला पड़ाव भी है.

प्राचीन काल में कर्दम ऋषि ने यहां शिवलिंग की स्थापना की थी, जिनके नाम पर इस शिवलिंग का नाम कर्दमेश्वर महादेव (Kardmeshwar Mahadev) पड़ा. एक और मान्यता यह भी है कि जब भगवान श्री राम ने रावण का वध किया था तो उन्हें ब्रह्म हत्या का पाप लगा था. जिसके निवारण के लिए उन्होंने गुरु वशिष्ठ की आज्ञा से पंचकोशी यात्रा की और यहां अपने परिवार के साथ दर्शन पूजन किया था. इस मंदिर के पास एक सरोवर भी है. पौराणिक मान्यताओं के अनुसार ऋषि कर्दम जब तपस्या में लीन थे तब उनकी आंखों में आंसू आ गया और उन आंसुओं से ही सरोवर का निर्माण हुआ. ऐसी मान्यता है कि सरोवर में जिसका भी प्रतिबिंब बन जाता है उसकी आयु लंबी हो जाती है.

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वास्तु शिल्प कला और मूर्ति कला के आधार पर यह मंदिर बहुत ही रोचक है. इस मंदिर का नक्काशीदार शिखर बेहद खूबसूरत है. मंदिर का मुख्य द्वार 3 फीट 5 इंच चौड़ा तथा 6 फीट ऊंचा है. मंदिर के गर्भ गृह में भगवान कर्दमेश्वर विराजमान हैं, जिनपर लगातार जलधारा गिरती रहती है. मंदिर के विखंडित कुर्सी या खंभों की स्थिति देखकर यह प्रतीत होता है कि मंदिर का अर्ध मंडप एक बेहतर निर्माण रहा होगा. शिखर पर आधुनिक तरह की छत और लकड़ियों के आधार पर सादे पत्थरों द्वारा तैयार शिखर भी इस तथ्य को और स्पष्ट करते हैं. आधार की अपेक्षा खंबे भी काफी हद तक सादे हैं पत्तियों की नक्काशी सजावट में काफी खंभों पर है. 15 वीं शताब्दी के 2 स्तंभों पर अभिलेख हैं. जो 14वीं और 15वीं शताब्दी से हैं. जिनके स्पष्ट होता है कि अर्ध मंडप का निर्माण पुरानी सामग्री को पुनः प्रयोग में लाया गया है.

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सरोवर में स्नान का है विशेष मान्यता



प्राचीन कर्दमेश्वर महादेव मंदिर (Kardmeshwar Mahadev Temple) की कुछ आकृतियां जैसे दक्षिणी पर बनी उमा महेश्वर की मूर्ति खजुराहो के मंदिर में बनी आकृतियों की तरह है. इस प्रकार उत्तर तरफ निर्मित रेवती और ब्रह्मा की मूर्ति की सजा गुप्तकालीन मूर्ति कला से प्रभावित है. मंदिर पर बनी आकृतियां पुष्प और चेहरे पर भी प्रभावी मुस्कान के लिए हैं. पहली बार जब आप मंदिर को देखेंगे तो लगेगा यह खजुराहो के मंदिर का हिस्सा है.



चंदेल वंश के राजाओं ने कराया होगा निर्माण

काशी के धार्मिक परंपराओं में यात्रा के दौरान काशी खंड स्थित शिवालयों में दर्शन पूजन का विशेष महत्व है. इतिहासकारों के अनुसार चंदेल वंश के राजाओं ने यहां मंदिर का निर्माण कराया था. मंदिर के पास एक कुंड है जिसमें लोग स्नान करने के बाद ही महादेव के दर्शन करते हैं और जल अर्पित करते हैं. सावन, महाशिवरात्रि पर यहां पर विशेष भीड़ होती है और दूर-दूर से लोग दर्शन करने के लिए आते हैं.

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क्षेत्रीय पुरातत्व अधिकारी डॉ. सुभाष चंद्र यादव ने बताया अभी तक हम लोगों को ज्ञात है बनारस में सबसे पुराने मंदिर कर्दमेश्वर महादेव का मंदिर है जो कंदवा गांव में स्थित है. यह मंदिर पंचकोशी यात्रा का प्रथम पड़ाव है. 12 वीं सदी में बना हुआ यह मंदिर काशी के धार्मिक परंपरा का बड़ा ही महत्वपूर्ण मंदिर है. इसमें सभी संप्रदायों का समन्वय काशी के समिति व धार्मिक परंपरा से मेल खाता है. शिव को समर्पित इस मंदिर के बाहरी दीवारों पर शैव, वैष्णव, शाक्य, सभी देवी देवताओं के मूर्ति आकृति है. यह मंदिर अभी पूरी तरीके से सुरक्षित है. सबसे प्राचीन भी है.



पंडित हरेंद्र उपाध्याय ने बताया यह कर्दम ऋषि की तपोस्थली है. इसी वजह से कर्दमेश्वर महादेव मंदिर का नाम पड़ा है. काशी खंड पुस्तक में इसका वर्णन है. काशी की प्रसिद्ध पंचकोशी यात्रा का यह पहला पड़ाव है. मान्यता यह है कि लंका विजय के बाद भगवान श्रीराम ने काशी में पंचकोशी यात्रा कि थी. अपने इष्ट महादेव के प्रसन्नता हेतु यहां पर दर्शन किए थे. कर्दमेश्वर महादेव के दर्शन मात्र से पापों का नाश होता है. भक्त आस्था से पूजा और आराधना करता है. वह व्यक्ति अपने जीवन में कर्मठता को प्राप्त होता है.

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