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Research of BHU Professor: ज्ञानवापी मस्जिद पहले था मोक्ष लक्ष्मी विलास, गुंबद के नीचे मौजूद है भगवान आदि विश्वेश्वर

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Published : Aug 8, 2023, 6:57 PM IST

वाराणसी स्थित ज्ञानवापी परिसर का कोर्ट के आदेश के बाद एएसआई सर्वे हो रहा है. वहीं, काशी हिंदू विश्वविद्यालय के एक शोध में मंदिर होने का दावा किया गया है. इस स्पेशल रिपोर्ट में जानिए शोध में क्या सामने आया है?

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गुंबद के नीचे मौजूद है भगवान आदि विश्वेश्वर

काशी हिंदू विश्वविद्यालय के ज्योतिषाचार्य प्रोफेसर पंडित शत्रुघ्न त्रिपाठी ने दी जानकारी

वाराणसी: ज्ञानवापी को लेकर के अलग-अलग दावे किए जाए रहे हैं. हिंदू पक्ष मन्दिर होने के दावे को मजबूती से सामने रखने की बात करता है. अब इसी दावे पर ASI की मुहर लगाने के लिए सर्वे हो रहा है. तमाम तर्कों के बीच पुरानी मान्यताओं के साथ मंदिर के तहखाने से लेकर वजुखाने में शिवलिंग मिलने तक मंदिर होने के प्रमाण बताए जा रहे हैं. इस बीच वाराणसी के प्रसिद्ध ज्योतिषाचार्य ने शोध करते हुए ज्ञानवापी का वास्तु नक्शा तैयार किया है.

काशी हिंदू विश्वविद्यालय के ज्योतिषाचार्य प्रोफेसर पंडित शत्रुघ्न त्रिपाठी का दावा है कि जिसे वर्तमान में मस्जिद की संज्ञा दी जा रही है, वह प्राचीन में भगवान आदि विशेश्वर का स्थान है. इसे मोक्ष लक्ष्मी विलास कहा जाता था. ज्ञानवापी का पूरा परिसर वास्तु के अनुसार बना था. वास्तु के अनुसार ज्ञानवापी के मुख्य गुंबद के नीचे भगवान आदि विशेश्वर मौजूद हैं. वहीं पर गर्भगृह है. भगवान विशेश्वर के साथ-साथ भगवान ब्रह्मा और विष्णु की प्रतिमाएं भी मौजूद हैं.

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बीएचयू का शोध ज्ञानवापी मस्जिद पहले था मोक्ष लक्ष्मी विलास


मोक्ष लक्ष्मी विलास नाम से जाना जाता था स्थान: पंडित शत्रुघ्न त्रिपाठी कहते हैं कि 'काशी सर्वविद्या की राजधानी रही है. जिस समय इस मंदिर का निर्माण हुआ, हम उसे मस्जिद की संज्ञा नहीं दे सकते. यह काशी विश्वेश्वर का स्थान रहा है. इसे हमारे पुराणों में मोक्ष लक्ष्मी विलास नाम से बताया गया है. खासकर काशी खण्ड में इसका वर्णन है. काशी खण्ड पूरी काशी के वैभव का वर्णन करता है. उसमें भगवान विश्वेश्वर का जो स्थान है, उसे मोक्ष लक्ष्मी विलास नाम के प्रसाद को बताया गया है. इसे आज के समय में तथाकथित लोग ज्ञानवापी मस्जिद कहते हैं'.

पंडित शत्रुघ्न त्रिपाठी ने मानचित्र तैयार किया.
पंडित शत्रुघ्न त्रिपाठी ने मानचित्र तैयार किया.
मंदिर निर्माण के समय चरम पर था वास्तु शास्त्र: उन्होंने अपने शोध के आधार पर बताया कि 'अगर इसकी निर्मिति यानी निर्माण की कला को देखें तो पता चलता है कि जिस देश में चौथी शताब्दी से वास्तुशास्त्र और खासकर देवालय वास्तु 17वीं शताब्दी तक अपनी चरम स्थिति पर था. इसके बीच के कालखण्ड में निर्मित होने वाला मंदिर वास्तु शास्त्र से अछूता रहा होगा? मैंने ज्योतिष शास्त्र में जो वास्तु शास्त्र वर्णित है, प्रसाद की जो शैली है, उसके आधार पर अपना शोध शुरू किया. इसमें पाया कि बाबा विश्वेश्वर का जो स्थान है वह मूल रूप से यहीं था. जो इसकी मूल रूप से निर्मिति है, जो वास्तु शास्त्र के ढंग से रही है उसे जानने में कई ग्रंथों की मदद ली'.
पंडित शत्रुघ्न त्रिपाठी के शोध में ये बातें सामने आईं.
पंडित शत्रुघ्न त्रिपाठी के शोध में ये बातें सामने आईं.
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वास्तु के हिसाब से ज्ञानवापी और बाबा का स्थान अलग-अलग: पंडित शत्रुघ्न त्रिपाठी ने कहा कि 'वास्तु का शास्त्र का राजा भोज द्वारा मंडित समरांगणसूत्रधार, आचार्य मंडन का मंडन सूत्रधार का देवमूर्ति प्रकरण, देवालय चंद्रिका, प्रसादमण्डनम ये सभी वास्तु के ग्रंथ इस शैली का वर्णन करते हैं. इसके साथ ही काशी खण्ड, त्रिस्थलीय सेतु, कुबेरनाथ शुक्ल का वाराणसी वैभव का अध्ययन करने के बाद हमने पाया कि वास्तु शास्त्र के हिसाब से इस मंदिर का निर्माण हुआ था. चाहे वह विश्वनाथ मंदिर का स्थान हो, जिसे आज ज्ञानवापी मस्जिद कहा जाता है. या ज्ञानवापी हो. इन दोनों में अन्तर भी है. ज्ञानवापी अलग था और बाबा विश्वेश्वर का स्थान अलग था'.

ज्योतिषाचार्य प्रोफेसर पंडित शत्रुघ्न त्रिपाठी ज्ञानवापी को लेकर किया शोध.
ज्योतिषाचार्य प्रोफेसर पंडित शत्रुघ्न त्रिपाठी ज्ञानवापी को लेकर किया शोध.
भगवान शिव के साथ ब्रह्मा और विष्णु विराजान: पंडित शत्रुघ्न त्रिपाठी ने बताया कि ' हमने मानचित्र की दृष्टि से भी शोध किया. इसमें तीन तरह की बातें स्पष्ट रूप से मिली हैं. सबसे पहले सबसे प्राचीन ग्रंथ काशी खण्ड को आधार बनाया. इसमें बीच में भगवान शिव का स्थान, जिसे मस्जिद कहा जा रहा है, वह था. उसके दोनों तरफ ब्रह्मा और विष्णु विराजमान थे. दाएं दक्षिण में विष्णु जी का स्थान और बाएं में ब्रह्मा जी का स्थान था. इसके पीछे और सामने शिव का स्थान था, जिसे श्रृंगार मण्डप कहा जाता था. भगवान विश्वेश्वर के मंदिर का मुख्य द्वार पश्चिम की तरफ था, जहां द्वारपाल, प्रतिहार बनाए गए थे'.वास्तु के हिसाब से बीच का भाग भगवान का गर्भगृह: प्रो. पंडित शत्रुघ्न त्रिपाठी का कहना है कि 'आज जो स्थिति देख रहे हैं, वह पहले जैसी नहीं है. आज उस मंदिर का 9 मण्डप, जिसे कैलाशोनवभूमिक: कहा गया है. जिसे हमारे वास्तु में 9 मण्डप को कैलाश की संज्ञा दी गई है. कैलाश भगवान शिव का स्थान है. इस दृष्टि से 9 मण्डप बनाया गया, जिसमें से केवल 3 मण्डप के ही स्थान बचे हुए हैं. बाकी के 6 आतताइयों द्वारा तोड़ दिया गया है. इन्हीं 3 के ऊपर तीन गुंबद लगा दिए गए हैं. उसके आगे-पीछे और दाएं-बाएं का भाग तोड़ा गया है. मगर बीच का जो स्वरूप दिख रहा है वह गर्भगृह है. दाएं दक्षिण में मंदिर और बाएं मंदिर जो है उसके ऊपर गुंबद बनाया गया है. सर्वे में यह सब पता चल जाएगा'.
काशीखंड का पंचमंडप.
काशीखंड का पंचमंडप.
श्रृंगार मण्डप में मिलेंगे देवताओं के चित्रांकन: शत्रुघ्न त्रिपाठी ने बताया कि 'ज्ञानवापी परिसर में जो पश्चिमी दीवार दिख रही है. अगर उसे भगवान विश्वेश्वर के वास्तु के हिसाब से देखें तो गर्भगृह के बाद वाली दीवार ही बची है. इसका हमने मानचित्र भी बना रखा है. इसके पहले भी एक दीवार थी, जिसमें दो मण्डप थे. जो श्रृंगार मण्डप था वह पूरा टूट गया है. श्रृंगार मण्डप की अंतिम दीवार सभी के सामने है. वहीं से गर्भगृह का स्थान शुरू होता है. प्रथम दीवार पश्चिम की तरफ की टूटी हुई है और दूसरी दीवार पर भी देखेंगे तो तमाम देवताओं के चित्रांकन मिलेंगे. हमारे मंदिर निर्माण की शैली-परंपरा रही है, मंदिर को आध्यात्मिक स्वरूप देने की प्रक्रिया ये सब कुछ आपको दिख जाएंगे.यह भी पढ़े-भयानक था मुरादाबाद के दंगों का मंजर, ईदगाह में बिखरीं थीं लाशें, जिंदा को भी मुर्दों के साथ फेंका
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