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ज्ञानवापी विवाद: हिंदू पक्ष ने कोर्ट में पेश किया नया सबूत, अंग्रेजों ने बताया था इसे मंदिर का हिस्सा

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Published : Jun 2, 2022, 6:02 PM IST

वाराणसी कोर्ट में 30 मई की सुनवाई में वादी पक्ष की तरफ से अदालत के सामने एक नया तथ्य पेश किया गया है. यह 1936 में ब्रिटिश कोर्ट का फैसला है, जिसमें इस बात का जिक्र है कि पूरा परिसर मंदिर का परिक्षेत्र है. इसकी पूरी जानकारी के लिए ईटीवी भारत की टीम 1991 में ज्ञानवापी मामले में वादी और वरिष्ठ अधिवक्ता विजय शंकर रस्तोगी के पास पहुंची. देखिए यह खास रिपोर्ट.

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वरिष्ठ अधिवक्ता विजय शंकर रस्तोगी

वाराणसी: जिला अदालत में ज्ञानवापी मामले की सुनवाई चल रही है. 30 मई को सुनवाई के बाद 4 जुलाई नई तारीख दी गई है. लेकिन 30 मई की सुनवाई में अदालत के सामने एक नया तथ्य रखा गया है. यह 1936 में ब्रिटिश कोर्ट का फैसला है. इस फैसले को महिला वादियों ने अदालत के सामने पेश किया और इसमें दिए गए बयान का हवाला देते हुए कहा कि मस्जिद वक्फ की संपत्ति नहीं है. यह जमीन काशी विश्वनाथ की है.

महिला वादियों की तरफ से दिए गए दलील के बाद यह सवाल उठ रहा है कि आखिर 1936 का मामला क्या था? जिसके फैसले का हवाला वर्तमान में चल रहे ज्ञानवापी मामले में दिया गया है. यह जानने के लिए ईटीवी भारत की टीम ज्ञानवापी प्रकरण मामले के पहले वादी और वरिष्ठ अधिवक्ता विजय शंकर रस्तोगी के पास पहुंची. इस दौरान वरिष्ठ अधिवक्ता विजय शंकर रस्तोगी ईटीवी भारत से खास बातचीत में कई हैरान करने वाले तथ्यों का खुलासा किया.

ईटीवी भारत से बातचीत करते हुए वरिष्ठ अधिवक्ता विजय शंकर रस्तोगी
1936 के केस में ब्रिटिश हुकूमत ने हिंदुओं का दिया था साथ: वरिष्ठ अधिवक्ता रस्तोगी बताते हैं कि 1936 में 3 मुसलमानों ने व्यक्तिगत वाद के जरिए ब्रिटिश कोर्ट में एक याचिका डाली थी, जिसमें उन्होंने कहा था कि उन्हें नमाज करने का अधिकार ज्ञानवापी परिसर में दिया जाए और पूरा परिसर उनके अधीन रहे. इस पर अंग्रेजी हुकूमत में आपत्ति जाहिर की थी. उन्होंने मंदिर परिक्षेत्र का नक्शा अदालत में दिखाया था, जिसमें यह स्पष्ट था कि पूरा परिसर मंदिर परिक्षेत्र का है. इसके बाद अदालत ने अपना फैसला दिया था. अदालत ने अपने फैसले में कहा था कि यह एक व्यक्तिगत वाद है सार्वजनिक नहीं, इसलिए इस फैसले का सिर्फ उन्ही तीन मुसलमानों पर व्यक्तिगत असर पड़ेगा, जिन्होंने वाद दाखिल किया है.
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1936 में अंग्रेजी हुकूमत की तरफ से पेश मंदिर परिसर का नक्शा

कोर्ट ने कहा कि पूरा ज्ञानवापी परिसर मंदिर का परिक्षेत्र है, इसलिए पूरे परिसर में नमाज नहीं अदा की जा सकती. जो विवादित ढांचा है सिर्फ उसमें तीनों मुसलमानों को नमाज अदा करने की अनुमति होगी. उन्होंने बताया कि इस मुकदमे में न ही हिंदू पक्ष वादी था और न ही इंतजामिया कमेटी वादी थी, जो अब वादी के रूप में सामने आई है. इसमें तीन मुसलमानों के साथ अंग्रेजी हुकूमत मौजूद थी. इन तीनों मुसलमानों ने 1937 में फैसले के बाद इसे हाईकोर्ट में भी चुनौती दी और अपील किया, जिसे हाईकोर्ट के जज ने भी खारिज कर दिया.

नारायनभट्ट के नक्शे का दिया था प्रमाण,मंदिर का है पूरा परिक्षेत्र: विजय शंकर रस्तोगी ने बताया कि पूरा मंदिर परिक्षेत्र स्वयंभू ज्योतिर्लिंग विश्वनाथ का है. 1585 में अकबर के समय राजा टोडरमल और मानसिंह ने नारायण भट्ट के सहयोग से इस मंदिर का नवीनीकरण कराया था, जिसमें मंदिर को अष्टकोण स्वरूप में बनाया गया और इस नक्शे को ब्रिटिश शासन ने 1936 के मुकदमे में कोर्ट में पेश किया था. अंग्रेजी हुकूमत में अपने प्रति वाद पत्र में इस बात का जिक्र भी किया है कि इस मंदिर परिसर को उस समय औरंगजेब की धार्मिक कट्टरता के कारण नुकसान पहुंचाया गया है. यह पूरा का पूरा परिसर मंदिर परिक्षेत्र का है, इस पर मस्जिद हो ही नहीं सकती.

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1991 के पहले हिन्दू करते थे पूरे क्षेत्र की परिक्रमा: विजय शंकर रस्तोगी ने बताया कि इस नक्शे के अनुसार पूरा का पूरा मंदिर परिक्षेत्र विश्वनाथ मंदिर का है. 1936 से लेकर के 1991 तक यहां सभी लोग पूजा-अर्चना किया करते थे. लेकिन बाबरी विवाद के बाद उस समय की वर्तमान सरकार के सहयोग से इस पूरे क्षेत्र को पहले लकड़ी की बैरिकेडिंग से और फिर लोहे के बैरिकेडिंग से कवर करा दिया गया. ये परिक्रमा पथ था. जहां लोग पूजा अर्चना करने के बाद पूरे मंदिर परिसर की परिक्रमा किया करते थे.

वर्तमान में इस फैसले का मुस्लिम पक्ष को नहीं होगा लाभ: वर्तमान में चल रहे ज्ञानवापी केस में उन्होंने कहा कि वर्तमान में अदालत के इस फैसले का हवाला दिया गया है. इससे हिंदू पक्ष को कोई नुकसान नहीं होने वाला है. अदालत ने पहले ही अपने फरमान में इस बात का जिक्र कर दिया है कि पूरा परिसर स्वयंभू ज्योतिर्लिंग विश्वनाथ का है. यहां पर मस्जिद नहीं हो सकती है.

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