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वैज्ञानिकों का दावा, अंडमान के आदिवासी समूहों को कोविड-19 से ज्यादा खतरा

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Published : Oct 14, 2021, 8:58 AM IST

वैज्ञानिकों का दावा है कि कोरोना वायरस से अंडमान के आदिवासी समूहों को ज्यादा खतरा है. हाल ही में हुए एक अध्ययन से पता चला था कि कोविड-19 से ब्राजील का आदिवासी समूह बुरी तरह प्रभावित हुआ है.

अंडमान के आदिवासियों को कोरोना से खतरा
अंडमान के आदिवासियों को कोरोना से खतरा

वाराणसी: कोरोना वायरस ने दुनियाभर के विभिन्न मानव समूहों को प्रभावित किया है. ब्राजील में लोगों पर हालिया अध्ययन में यह बात सामने आई है कि वहां के आदिवासी समूह इस वायरस से बड़े पैमाने पर प्रभावित हुए हैं. ब्राजील के आदिवासी समुदायों में मृत्यु दर दोगुनी थी. अभी तक किए गए शोधों में सामने आया कि इस महामारी के कारण कई आदिवासी समुदाय विलुप्त होने के कगार पर पहुंच गए हैं. काशी हिंदू विश्वविद्यालय के वैज्ञानिकों का दावा है कि कोरोना वायरस से अंडमान के आदिवासी समूहों को ज्यादा खतरा है.

भारत में भी बहुत से आदिवासी समुदाय हैं, जिनमें से कई ऐसे हैं, जिनकी कुल जनसंख्या 1000 से भी कम है. अंडमान द्वीप समूह के आदिवासी लोग इनमें प्रमुख हैं. यह रिसर्च एक पत्रिका में प्रकाशित हुआ था.

अंडमान के आदिवासियों को कोरोना से खतरा.
प्रो. ज्ञानेश्वर चौबे ने बताया कि सीएसआईआर-सीसीएमबी हैदराबाद के डॉ. कुमार सामी थंगराज और बीएचयू वाराणसी वैज्ञानिक सह-नेतृत्व में एक महत्वपूर्ण शोध में देश भर के 13 संस्थानों के 11 वैज्ञानिकों ने भारतीय आबादी का जीनोमिक विश्लेषण किया है.

प्रोफेसर चौबे ने बताया रिसर्च में पाया कि पाया है कि कुछ समुदायों के जीनोम में समान प्रकार के डीएनए सेगमेंट (समयुग्मजी) पाए जा रहे हैं, जो उनको COVID-19 के प्रति अधिक संवेदनशील बनाती है. ऐसे जीनोम की कोविड-19 से संक्रमित होने की सबसे अधिक संभावना है. यह शोध आज विज्ञान की पत्रिका जीन्स एंड इम्युनिटी में प्रकाशित हुआ है.

प्रमुख वैज्ञानिक डॉ. कुमारसामी थंगराज, अंडमान द्वीप वासियों की उत्पत्ति का पता लगाने के लिए जाने जाते हैं उन्होंने कहा कि उनकी शोध टीम ने 227 समुदायों के 1600 से ज्यादा व्यक्तियों के उच्च रेसोलुशन वाले जीनोमिक डेटा में उस डीएनएकी जांच की जो कोविड-19 जोखिम को बढ़ा देता है. टीम ने ओंगे और जरावा (अंडमान जनजाति) में सबसे ज्यादा जोखिम पाया.

शोधकर्ताओं की टीम ने ACE2 जीन का अध्ययन करते हुवे कोविड-19 के जोखिम का भी आकलन किया और पाया कि यह म्युटेशन जारवा और ओन्गे में सबसे ज्यादा पाया गया, जो उनके लिए कोविड-19 के खतरे को बढ़ा देता है.

बीएचयू के मॉलिक्यूलर एंथ्रोपोलॉजी के प्रोफेसर ज्ञानेश्वर चौबे ने कहा कि अभी तक इस विषय पर की कोविड-19 का प्रभाव किसी भी समुदाय पर कैसे पड़ेगा, इसके बारे में कोई भी पुख्ता जानकारी नहीं थी. इस तरीके के पहले शोध में हमारी टीम ने यह दिखाया है कि जेनोमिक डाटा का इस्तेमाल करते हुए कैसे हम किसी भी समुदाय को कोविड-19 के जोखिम स्तर को पता कर सकते है.

इस अध्ययन से प्राप्त परिणाम बताते हैं कि हमें आइसोलेटेड आबादी के लिए उच्च प्राथमिकता वाली सुरक्षा और अत्यधिक देखभाल की आवश्यकता है, ताकि हम आधुनिक मानव विकास के कुछ जीवित किंवदंतियों को न खोएं. यह हमारे लिए एक महत्वपूर्ण धरोहर है और इसीलिए हम लोगों ने यह रिसर्च किया है, ताकि सरकार इनके प्रति संवेदनशीलता दिखाते ऐसे लोगों को पूरी मेडिकल सुविधा दी जाए. समय-समय पर जांच की जाए.

अध्ययन में शामिल वैज्ञानिक
इस अध्ययन के अन्य वैज्ञानिक प्रज्जवल प्रताप सिंह, प्रो. वीएन मिश्रा, प्रो. रोयाना सिंह और डॉ. अभिषेक पाठक बीएचयू, वाराणसी अमृता विश्वविद्यालय, केरल से डॉ. प्रशांत सुरवझाला, सीएसआईआर-सीसीएमबी, हैदराबाद से प्रत्यूसा मच्चा, कलकत्ता विश्वविद्यालय से डॉ. राकेश तमांग, सऊदी अरब से डॉ. आशुतोष राय, एफएसएल मध्य प्रदेश से डॉ. पंकज श्रीवास्तव और अलबामा विश्वविद्यालय अमेरिका से प्रोफेसर केशव के. सिंह थे.

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